20-Oct-2020 12:00 AM
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देश के सर्वाधिक चर्चित दलित नेता रामविलास पासवान अब नहीं रहे और देश-विदेश से सामाजिक न्याय के पक्षधर तमाम नेताओं और लोगों के शोक संदेश आ रहे हैं। जीवन में बाद के वर्षों में पासवान भले ही आरएसएस-भाजपा के साथ मिलकर सामाजिक न्याय विरोधी तमाम बड़े-बड़े कार्यों में सहभागी रहे हों लेकिन उनकी मूल रूप से छवि सामाजिक न्याय के योद्धा की ही रही। यही कारण है कि उनके तमाम विरोधी भी उन्हें सम्मान देते थे।
देश के प्रमुख दलित नेताओं में से एक केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का 8 अक्टूबर को निधन हो गया। वह 74 वर्ष के थे। पासवान कुल 8 बार लोकसभा का चुनाव जीते (7 बार हाजीपुर से, 1 बार रोसड़ा से)। लोकसभा का कुल 12 बार चुनाव लड़ा। हाजीपुर से पासवान कुल 9 बार लड़े जिसमें 7 बार जीते। पासवान 1969 में विधानसभा क्षेत्र अलौली से कांग्रेसी विधायक मिश्री सदा को हराकर पहली बार संसोपा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी) के टिकट पर चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा पहुंचे थे। उसी दरम्यान उनका चयन डीएसपी पद के लिए भी हो गया था। उनके पिताजी जामुनदास चाहते थे कि बेटा जेलभेजवा पार्टी से जुड़े रहने की बजाय रसूखदार और रोबदार पुलिस पदाधिकारी के रूप में समाज का नाम रोशन करे। उनके पिताजी और माताजी कबीरपंथी थे, और सात्विक विचार रखते थे।
बहरहाल, 1972 में पासवान विधायक का चुनाव हार गए। कोढा (कटिहार) से उपचुनाव लड़े, वहां भी हार गए। उसके बाद 77 में हाजीपुर से लोकसभा का चुनाव लड़े जिसमें जनता पार्टी की ओर से किसी और को उम्मीदवार (शायद रामसुंदर दास) बनाकर भेज दिया गया। तब जेपी ने एक बयान जारी किया, 'मुझे नहीं मालूम कि जनता पार्टी का उम्मीदवार कौन है, मगर हाजीपुर में जेपी का उम्मीदवार रामविलास पासवान है।Ó और वह चुनाव साढे चार लाख वोट से जीतकर उन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया, जिसे खुद ही 1989 में तोड़ा। भागलपुर में लोकदल के एक सम्मेलन में देशभर से आए नेताओं के बीच अपने संबोधन में कर्पूरी ठाकुर ने उनसे 'भारतीय राजनीति का उदीयमान नक्षत्रÓ कहा था। दोनों आपातकाल के दौरान नेपाल में भूमिगत थे। ये और बात है कि बाद के वर्षों में कर्पूरी ठाकुर के चित्त से पासवान और रामजीवन सिंह बुरी तरह उतर गए, और कर्पूरी ठाकुर ने दोनों को अपनी किताब 'कितना सच, कितना झूठÓ में जमकर कोसा।
अगस्त 1982 की लोकसभा में मंडल कमीशन पर हुई बहस में उनके शानदार हस्तक्षेप ने इंदिरा गांधी की सरकार को पानी-पानी कर दिया था। बहस पर टाल-मटोल हो रहा था। वे सोमनाथ चटर्जी के घर गए थे, और उनसे कहा था, 'कल अगर मंडल कमीशन की रपट पर बहस नहीं होगी, तो सदन में वो सीन क्रिएट होगा जो आज तक नहीं हुआ।Ó
1984 में इंदिरा गांधी के निधन के बाद उनके घर पर पथराव हुआ, कर्पूरी ठाकुर भी उनके ही घर पर ठहरे थे। दोनों ने किसी तरह जान बचाई शायद चौधरी साहब के घर जाकर। बहरहाल, चौधरी चरण सिंह ने बिजनौर के उपचुनाव में उन्हें बिहार से उप्र बुला लिया। मीरा कुमार और मायावती भी उम्मीदवार थीं। वे मीरा कुमार से तकरीबन 5 हजार मतों से कड़े मुकाबले में हार गए।
1989 में बनी नेशनल फ्रंट सरकार में मंडल कमीशन की रिपोर्ट जिस मंत्रालय के पास थी, उसकी लेटलतीफी देखते हुए सरकार के मुखिया वीपी सिंह ने रपट को देख-परख कर उस पर त्वरित निर्णय का जिम्मा उनके मंत्रालय पर डाल दिया, और बड़े मनोयोगपूर्वक उस काम को उन्होंने सेक्रेटरी पीएस कृष्णन की मदद से समय से पहले पूरा करके प्रधानमंत्री को दे दिया। उस वक्त उनका श्रम, रोजगार व कल्याण मंत्रालय आज के 6 छोटे-छोटे मंत्रालयों को मिलाकर एक बड़े मंत्रालय की शक्ल में था। पासवान जिस भी मंत्रालय में रहे, शानदार काम किया।
जनता दल में 1997 में हुए विभाजन के बाद 1998 के लोकसभा चुनाव में पूरे बिहार में लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल की लालटेन के आगे जनता दल का चक्र छाप बुरी तरह प्रभावहीन हुआ। उस आम चुनाव में जनता दल के टिकट पर पूरे बिहार की 54 सीटों में से जीतने वाले इकलौते उम्मीदवार पासवान थे, वो भी इसलिए कि समता पार्टी ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं दिया था। 1998 की 13 महीने की वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार चली नहीं। खुद लालकृष्ण आडवाणी उनके घर पर आए, और सरकार को बचा लेने के लिए आग्रह किया, मनचाहा मंत्रालय ऑफर किया, मगर वे टस से मस नहीं हुए, 1 वोट से सरकार गिरा दी। लेकिन 1999 के चुनाव में शरद की अगुवाई वाले उनके जनता दल ने एनडीए में जाना स्वीकार किया, जिससे रुष्ट होकर एचडी देवगौड़ा ने अपना अलग दल जनता दल (सेक्युलर) बना लिया।
6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया
रामविलास पासवान देश की समकालीन राजनीति के वे सबसे बड़े और चर्चित नेताओं में शुमार रहे। उन्होंने राजनीति में कई मुकाम हासिल किया है। पासवान ने 6 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। वीपी सिंह, एचडी देवगौड़ा, आइके गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की 7 सरकारों में पासवान ने क्रमश: श्रम, कल्याण व रोजगार, रेल व संसदीय कार्य, दूर संचार, रसायन, उर्वरक व इस्पात, और खाद्य व उपभोक्ता मामले का मंत्रालय संभाला।
- राजेश बोरकर