20-Nov-2021 12:00 AM
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मप्र के मंदसौर, नीमच और रतलाम की काली मिट्टी में काला सोना यानी अफीम होती है। यहां के करीब 35 हजार किसान अफीम की खेती करते हैं। मप्र से सटे राजस्थान के इलाकों में भी अफीम की खेती होती है। सरकार के पट्टे के बिना कोई किसान खेती नहीं कर सकता है। मंदसौर व नीमच जिले की प्रमुख फसल अफीम की खेती में अब बदलाव की आहट शुरू हो गई है। इसके तहत अब ऑस्ट्रेलिया की तर्ज पर खेती शुरू की गई है। फिलहाल लगभग चार हजार किसानों को 6-6 आरी के हरे पट्टे दिए गए हैं। इनके खेतों में फसल से निकलने वाले डोडों से सीधे मशीन से सीपीएस पद्धति से अफीम निकाली जाएगी। मूलत: ऑस्ट्रेलिया में अफीम की खेती में प्रयोग हो रही इस पद्धति के अच्छे रिजल्ट मिले हैं। अफीम की अच्छी गुणवत्ता के लिए केंद्र सरकार भी काफी समय से इसे लागू करने की कोशिश में थी, लेकिन इसमें डोडाचूरा व पोस्तादाना नहीं मिलने से किसान विरोध कर रहे हैं।
नई अफीम नीति मेें केंद्र सरकार ने मार्फिन का 4.2 किग्रा प्रति हेक्टेयर से अधिक का औसत देने वाले किसानों को ही परंपरागत खेती के लिए पट्टे दिए हैं। वहीं एक नया प्रयोग करने के लिए 3.7 प्रतिशत से 4.2 प्रतिशत तक औसत वाले अपात्र किसानों को 6-6 आरी के हरे पट्टे दिए गए हैं। ये किसान डोडे नारकोटिक्स विभाग को सौंपेंगे। इन डोडों से बिना चिराई के सीपीएस पद्धति से अफीम निकाली जाएगी।
भारत में यह पहली बार होगा। सीपीएस पद्धति में खेती के लिए मंदसौर जिले में 2237 किसान शामिल हैं। हरे पट्टे के लिए कागज भी हरे रंग का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। 2237 में से करीब 400 ऐसे किसान शामिल हैं, जिनके पट्टे 2019-20 व 2020-21 में कट गए थे। अब सीपीएस पद्धति के तहत पट्टे वितरण किए जा रहे हैं। निर्देश प्राप्त हुए उसके संबंध में किसानों को जानकारी दी जा रही है। सीपीएस में किसानों को हरे कागज पर पट्टा दिया जा रहा है इसलिए इस पट्टे को हरा पट्टा कहा जा रहा है।
मंदसौर-नीमच जिले के किसान नई पद्धति से खुश नहीं हैं, क्योंकि अफीम के सह उत्पाद डोडाचूरा व पोस्तादाना से किसानों को एक सीजन में दो से तीन लाख रुपए तक आय होती है। सीपीएस पट्टे की पात्रता के लिए दो मापदंड तय किए गए हैं। पहला जिन किसानों ने वर्ष 2020-21 में 3.7 से 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की औसत से मार्फिन दी। दूसरा 2019-20 तथा 2020-21 में पट्टे कटने वाले किसानों ने लगातार पट्टा रद्द होने वाले साल सहित पांच साल तक मार्फिन औसत 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के 100 प्रतिशत या उससे अधिक दी हो।
ऑस्ट्रेलिया में अफीम की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए डोडे से कांसन्ट्रेट पापीस्ट्रा (सीपीएस) पद्धति से ही अफीम निकाली जाती है। इसी कारण वहां की अफीम की मांग अमेरिका, जापान व अन्य देशों की मेडिकल कंपनियां ज्यादा करती हैं। इसमें डोडे से सीधे अफीम निकालने की प्रक्रिया होती है। अभी कुछ देशों में यही प्रक्रिया चल रही है। भारत में अभी तक डोडे से पुरानी पद्धति लुणी-चिरनी से खेत में अफीम निकालने और उसे एकत्र कर नारकोटिक्स विभाग को देने की प्रक्रिया चल रही है। नारकोटिक्स विभाग नीमच व गाजीपुर में स्थित अल्केलाइड फैक्टरी में इस अफीम को प्रोसेस कर कोडीन फास्फेट, मार्फिन व अन्य उपयोगी उत्पाद अलग-अलग करते हैं।
उधर नई अफीम नीति के खिलाफ किसानों ने मोर्चा खोल दिया है। इस नीति के विरोध में मालवा किसान संगठन के बैनर तले किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। गौरतलब है कि अफीम किसान अफीम नीति को तर्क संगत बनाने की मांग को लेकर पिछले डेढ दशक से संघर्ष और आंदोलन की राह पर हैं। हर बार अफीम नीति जारी होने से पहले किसान दिल्ली भी कूच करते हैं और वहां अपनी पीड़ा भी बताते हैं। अपनी समस्याओं को लेकर अफीम काश्तकार हर साल सांसद के पास भी पहुंच रहे हैं और उन्हें आश्वासन भी मिल रहा है, लेकिन हर बार अफीम नीति जारी होने के बाद किसान खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि बरसों से वे अफीम की खेती करते आए हैं। अब साल दर साल अफीम नीति को पेचीदा बनाकर केंद्र सरकार किसानों को इस खेती से दूर कर रही है। कभी औसत तो कभी घटिया और वाटर मिक्स अफीम बताकर किसानों के पट्टे काटे जा रहे हैं। नारकोटिक्स विभाग में भ्रष्टाचार के मामले पहले ही सामने आ चुके हैं। इन सब के बावजूद किसानों की सुनने वाला कोई नहीं है। डेढ दशक से किसानों की आस सिर्फ और सिर्फ नेताओं के आश्वासन पर टिकी हुई है।
किसानों को रास नहीं आई नई अफीम नीति
केंद्र सरकार की ओर से जारी नई अफीम नीति किसानों को रास नहीं आई है। किसानों का आरोप है कि हर बार उनकी अफीम को घटिया बताकर पट्टे काट दिए जाते हैं, लेकिन किसानों की अफीम घटिया नहीं है। किसानों ने बताया कि 11 अक्टूबर 2021 को घोषित नई अफीम नीति देश और किसान दोनों के साथ धोखा है। अफीम किसान संघर्ष समिति के संरक्षक मांगीलाल मेघवाल ने बताया कि किसानों की प्रमुख मांगों में वर्ष 1997-98 से 2021 तक घटिया, वाटर मिक्स, सस्पेक्टेड, औसत में कमी और कम मार्फिन जैसे कारण बताकर काटे गए पट्टे बहाल करने, अफीम का मूल्य अन्तरराष्ट्रीय मानकों पर तय करने, किसानों पर थोपा गया मार्फिन का नियम खत्म कर औसत आधार पर पट्टे जारी करने, वर्ष 2015 से 2021 तक नारकोटिक्स विभाग में हुए घपलों की सीबीआई जांच करवाने तथा एसीबी की ओर से पकड़े गए नारकोटिक्स विभाग के अधिकारियों का नारको टेस्ट करवाने की मांग शामिल है। इसके अलावा अफीम नीति 2021-22 निर्धारण में किसानों की सहभागिता से बनाने और सभी किसानों को एक समान दस-दस आरी के पट्टे देने की मांग शामिल है।
- विकास दुबे