विश्व शक्ति बनने का मौका
04-Jun-2020 12:00 AM 3520

 

कोरोना वायरस आफत के साथ संभावनाओं को भी लेकर आया है। जहां इस महामारी ने भारत में 15 करोड़ से अधिक लोगों को बेरोजगार कर दिया है, वहीं नई संभावनाओं का द्वार भी खोल दिया है। केंद्र हो या राज्य सरकारें सभी का फोकस गांवों पर हो गया है। इससे गांवों में ही रोजगार के अवसर निर्मित करने की योजना पर काम चल रहा है। वहीं यह कोशिश भी शुरू हो गई है कि विदेशी कंपनियों के लिए द्वार खोलकर भारत को विश्व शक्ति बनाया जाए।

कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण अमेरिका और चीन के बीच तलवारें खिंच गईं हैं। दोनों देशों के झंडे तले दुनिया दो खेमों में बंटने लगी है। अमेरिका ने आरोप लगाया है कि चीन ने उस पर कोरोना वायरस से हमला किया है, वो उसे सबक सिखाएगा। उधर चीन ने वर्ल्ड बैंक को 300 करोड़ डॉलर का अनुदान देकर अपने मनी पॉवर की धौंस जमाई है। मिलिट्री पॉवर का भी इस्तेमाल वो ऐसे दौर में भी कर रहा है। साउथ चाइना सी में चीन का मिलिट्री अभ्यास चल रहा है, हांगकांग की स्वायतता पर वो लगातार हमले बोल रहा है। अमेरिका ने कहा है कि वो चुप नहीं बैठेगा, हर चीज का हिसाब लेगा। ऐसे में आशंकाएं लाजिमी हैं कि कहीं कोरोना वर्ल्ड वार के बीच, असली युद्ध भी तो नहीं छिड़ने वाला। इन दो महाशक्ति के बीच चल रहे शीतयुद्ध में भारत के लिए तीसरी विश्व शक्ति बनने का मौका है। अगर भारत ने सुव्यवस्थित रणनीति से काम किया तो यह संभव भी हो सकता है।

गौरतलब है कि कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरे विश्व में 59,34,936 लोग संक्रमित और 3,67,166 की मौत हो चुकी है। वहीं भारत में 1,82,143 संक्रमित मिले हैं, जिनमें से 5,164 लोगों की मौत हुई है। लेकिन भारत ने जिस संयमित तरीके से कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, उससे पूरे विश्व की नजर भारत पर है। आलम यह है कि अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और ऑस्ट्रेलिया भारत को नेतृत्वकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित करने की कोशिश कर रहे हैं। भले ही उनकी मंशा भारत को चीन के खिलाफ मोहरा बनाने की हो, लेकिन अगर भारत कूटनीतिक रणनीति के साथ कोशिश करे तो वह विश्व की तीसरी महाशक्ति बन सकता है। बस जरूरत है समन्वय और समझदारी की। अभी तक भारत ने समझदारी का परिचय दिया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि बड़ी संख्या में चीनी कंपनियां भारत का रुख करने की तैयारी कर रही हैं। बस जरूरत है कि भारत सरकार अपनी नीति को लचीला बनाए। ताकि कंपनियों की स्थापना में कोई परेशानी न हो।

भारत के लिए वरदान

कोरोना वायरस को पैदा करने और तबाही फैलाने के आरोप से घिरे होने के कारण हजारों कंपनियां चीन से पलायन करने की तैयारी कर चुकी हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी भी मानते हैं कि दुनिया का चीन से नाराज होना भारत के लिए वरदान की तरह है। उनका मतलब यह था कि चीन से नाराज देश और कंपनियां अपनी फैक्ट्रियों को चीन से बाहर लाकर दूसरे देशों में लगाने की कोशिश करेंगी और भारत के लिए ये एक बड़ा मौका होगा।

कोरोना वायरस से दुनियाभर में हुई तबाही के बाद से भारत के मुख्यधारा के मीडिया और सत्तारूढ़ पार्टी के करीबी अर्थशास्त्री इस तरह की उम्मीदें जगाते आ रहे हैं। इस मुहिम को इस बात से भी बल मिलता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन के खिलाफ आलोचना तेज कर दी है। हाल के एक सर्वे के मुताबिक दो तिहाई अमेरिकी चीन को ही कोरोना महामारी का जिम्मेदार मानते हैं। ऐसे में भारत में ये उम्मीद करना कि चीन से बाहर निकलने वाली कंपनियां भारत का भी रुख करेंगी स्वाभाविक लगता है। ऐसे में भारत को इस कोशिश में जुट जाना चाहिए कि अधिक से अधिक कंपनियां भारत में स्थापित हों।

चाइना प्लस वन फॉर्मूला

विदेशी कंपनियों का फिलहाल फॉर्मूला है 'चाइना प्लस वनÓ यानी चीन में जमे रहो मगर एक कदम किसी दूसरी जगह भी रखो। इसका फायदा वियतनाम को हो रहा है। भारत के नाम केवल एप्पल का आईफोन-एक्सआर आया जिसकी असेम्बलिंग (प्रोडक्शन नहीं) चेन्नई में पिछले साल से शुरू हो गई है। भारत के आर्थिक विशेषज्ञ ये मानते हैं कि भारत के पास अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर के समय चीन में विदेशी कंपनियों को लुभाने का सबसे अच्छा मौका था। लेकिन ये अवसर हाथ से निकल गया। हैरानी इस बात पर है कि भारत का वाणिज्य मंत्रालय और दुनियाभर में भारतीय दूतावास पिछले ढाई-तीन सालों से चीन और इससे बाहर सक्रिय विदेशी कंपनियों को भारत में लाने की कोशिश कर रहे हैं, इसके बावजूद ये अवसर हाथ से निकल गया। वाणिज्य मंत्रालय की 'इन्वेस्ट इंडियाÓ एक अलहदा बॉडी इसीलिए बनाई गई है। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि 200 से अधिक कंपनियों ने भारत में कारखाने लगाने में दिलचस्पी दिखाई थी लेकिन कोरोना के फैलने के बाद अब 'अगले 18 महीनों तक इसमें कोई गतिविधि नहीं होने की संभावना है।Ó

कोरोना वायरस से चीन की बदनामी को भी एक अवसर के तौर पर देखा जा रहा है, मगर मोदी सरकार जानती है कि फिलहाल कोई बड़ी कंपनी चीन से भारत आने का इरादा नहीं रखती। चीन के स्तर का बुनियादी ढांचा मजबूत करने का, वैल्यू चेन का निर्माण करने का और सिंगल विंडो क्लीयरेंस की व्यवस्था को बनाने के लिए मोदी सरकार के छह साल और इससे पहले यूपीए सरकार के 10 साल काफी थे।

विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर ऐसा होता तो कोरोना और ट्रेड वॉर जैसे अवसरों के बिना भी कंपनियां भारत में प्रोडक्शन यूनिट्स लगातीं। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद 15 अगस्त को लाल किले से अपने पहले भाषण में विदेशी कंपनियों से कहा था, 'कम, मेक इन इंडिया।Ó  लेकिन अब तक मेक इन इंडिया एक कामयाब मुहिम नहीं रही है। सच तो ये है कि विदेशी कंपनियां अब भी भारत में आने से हिचकिचाती हैं। उनके लिए भारत के पक्ष में कुछ बातें हैं जैसे कि स्किल्ड वर्क फोर्स की एक बड़ी संख्या, विशाल घरेलू बाजार, लोकतंत्र और सस्ती जमीनें। लेकिन चीन की तुलना में भारत कई क्षेत्रों में काफी पीछे है।

वैल्यू चेन के अपग्रेडेशन में कमी

कच्चे माल को प्राप्त करने से लेकर बने माल को बाजार में लाने तक की प्रक्रिया को वैल्यू चेन कहते हैं। इसमें चीन का मुकाबला दुनिया की कोई इकोनॉमी नहीं कर सकती। उदाहरण के तौर पर आप रेडीमेड कपड़े को ले लें जिसमें कच्चे माल की खरीदारी से लेकर तैयार माल के सप्लाई करने तक सात चरणों से गुजरना पड़ता है। लिवाइस जैसे बड़े गारमेंट ब्रैंड के कपड़ों को शोरूम तक लाने के लिए इन सात चरणों से होकर गुजरते हैं। भारत, वियतनाम, बांग्लादेश में वैल्यू चेन के इन सातों चरणों से दो या तीन मौजूद हो सकते हैं लेकिन चीन में ये सातों एक जगह मौजूद हैं। अगर लिवाइस जैसी कंपनी हैं तो चीन में उत्पादन आसान भी होगा और सस्ता भी। दिल्ली के फॉर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में चीनी मामलों के विशेषज्ञ फैसल अहमद कहते हैं कि चीन से बड़े उत्पादों और फैक्ट्रियों को हटाने के लिए दुनिया के दूसरे देशों में मुकम्मल वैल्यू चेन है ही नहीं। वो कहते हैं, 'फिलहाल दुनिया की कोई भी ऐसी अर्थव्यवस्था नहीं है जहां या तो बड़े पैमाने पर उत्पाद के साधन हों या निर्यात का पूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर। उनके अनुसार भारत को अपनी वैल्यू चेन को मजबूत करने और टेक्नोलॉजी के आधुनिकीकरण की सख्त जरूरत है।

श्रम, बिजली और भूमि सुधार

सरकार के नजदीक माने जाने वाले आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों ने सुझावों में विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए लैंड, पावर और लेबर के क्षेत्रों में सुधार पर जोर दिया है। उन्होंने कहा- 'हमें उग्र गति से, जीएसटी परिषद के समान एक भूमि परिषद, एक श्रम परिषद और एक ऊर्जा परिषद बनाने की जरूरत है।Ó ये उन विदेशी कंपनियों के लिए रास्ता आसान करेगा जो कारखानों को स्थापित करना चाहते हैं या एक नया व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं या फिर एक ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट लाना चाहते हैं। भारत में औद्योगिक बिजली टैरिफ दुनिया में सबसे अधिक टैरिफ में से एक माना जाता है। इसे कम करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच कोई समझौता होना चाहिए।

सिंगल विंडो क्लीयरेंस

इसमें कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री ने इज ऑफ डूइंग बिजनेस पर काफी जोर दिया है और इसमें बेहतरी भी हुई है लेकिन बाहर की कंपनियां अब भी शिकायत करती हैं कि उन्हें योजनाओं की मंजूरी में कई सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। सरकार को दिए सुझाव में एक सुझाव ये है कि सिंगल विंडो क्लीयरेंस का निर्माण प्रधानमंत्री के दफ्तर में हो और विदेशी कंपनियों को पीएमओ के आलावा कहीं और जाने की जरूरत न पड़े। सुझाव ये भी है कि अगर चीन से मुकाबला करना है तो इन क्षेत्रों में काम बुलेट ट्रेन की रफ्तार से करना होगा। विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर प्रधानमंत्री को देश को पांच खरब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाना है और कोरोना के बाद वाली दुनिया में आगे बढ़ना है तो मौका है। वो कहते हैं, 'अभी करो, तेजी से करो।Ó

सुरक्षा चक्र मजबूत किया

विश्व व्यवस्था, क्षेत्रीय संतुलन और दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों, एशिया प्रशांत के देशों के सागरीय संप्रभुता से खिलवाड़ करने वाले चीन के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए भारत द्वारा यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया गया है। कोरोना महामारी के बीच पिछले माह ही भारत ने चीन और अन्य पड़ोसी देशों से सीधे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर अपना सुरक्षा चक्र मजबूत किया। भारत के इस कदम ने चीन को काफी कुपित किया। चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने इस संबंध में कहा था कि कुछ खास देशों से प्रत्यक्ष विदेश निवेश के लिए भारत के नए नियम डब्ल्यूटीओ के गैर-भेदभाव वाले सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं और मुक्त व्यापार की सामान्य प्रवृत्ति के खिलाफ हैं। मजे की बात यह है कि यह उस चीन की अपेक्षा है जिसने दुनिया को कोरोना महामारी का दंश दिया।

कोरोना आपदा की राजनीति

इस तरह कोरोना आपदा ने एक ऐसी बदलती विश्व व्यवस्था की दस्तक दे दी है, जहां आरोप-प्रत्यारोप के दौर के बीच पॉलिटिक्स ऑफ जेनरोसिटी यानी उदारता की राजनीति के जरिए वैश्विक छवि को निर्मित करने के प्रयास तो हो ही रहे हैं, साथ ही ताकत की राजनीति के जरिए कोरोना के बाद के काल में अपनी वैश्विक हैसियत को ऊंचा करने का संघर्ष भी देखा जा रहा है। कोरोना आपदा की राजनीति ने अमेरिका की कमजोरी और चीन के गैर-जिम्मेदाराना नजरिए को दुनिया के सामने उजागर कर दिया है। इससे भारत जैसे उन देशों की वैश्विक भूमिका बढ़ गई है, जिनकी सॉफ्ट पावर के रूप में छवि भी बेहतर है और हाल के वर्षों में जिन्हें महत्वपूर्ण आर्थिक, सैन्य और तकनीकी ताकत के रूप में देखा जाने लगा है।

अमेरिका कमजोर हुआ

वैश्विक राजनीति में भारत ने पहलकारी भूमिका की तलाश की है और इसी दिशा में हाल ही में अमेरिका के नेतृत्व में भारत सहित दुनिया के सात बड़े देशों की बैठक भी हुई जिसमें कोविड-19 की उत्पत्ति के प्रति पारदर्शिता लाने की मांग की गई है। हालांकि इसका मुख्य फोकस कोविड-19 को लेकर चीन की नकारात्मक भूमिका की आलोचना करना था। मगर भारत बखूबी जानता है कि कोरोना के चलते अमेरिका कमजोर हुआ है और अमेरिका के कमजोर होने से महत्वाकांक्षी चीन की वर्चस्ववादी नीतियों को और अधिक बढ़ावा मिलेगा। वहीं पिछले कुछ वर्षों से जिस प्रकार चीन भारत को उसकी सीमाओं व पड़ोस में घेरने की नीति अपनाता रहा है, ऐसे में चीन को मिलने वाली यह बढ़त भारत के सामरिक हितों को नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए भारत ने वैश्विक गठजोड़ की नई राहें पकड़ी हैं।

भारत की बिग ब्रदर की छवि

भारत अपनी छवि को सॉफ्ट पावर के रूप में और अधिक मजबूत आधार देने की कोशिश में जुटा है। जहां मेडिकल डिप्लोमेसी के जरिए भारत सार्क देशों को एक बार फिर एक मंच पर साथ लाने में कामयाब होता दिख रहा है, वहीं पाकिस्तान के इस मंच पर भी गैरजिम्मेदाराना व्यवहार को निशाना बनाने के जरिए भारत ने दक्षिण एशियाई देशों को यह संदेश दे दिया कि भारत के लिए उसका पड़ोस प्रथम है। पड़ोसी देशों में भारत की बढ़ती स्वीकार्यता का बड़ा उदाहरण नेपाल द्वारा 17 मई को भारत सरकार द्वारा दिए गए स्वास्थ्य सहायता के लिए धन्यवाद प्रेषण के रूप में देखा जा सकता है। यह भारत की परंपरागत बिग ब्रदर की छवि को बदलने का और पड़ोस प्रथम नीति को अधिक प्रभावी बनाने का सर्वोत्तम अवसर है। अफगानिस्तान को दी गई चिकित्सकीय सहायता भारत की प्रोएक्टिव विदेश नीति का ही प्रमाण है। इस महामारी के समय एक तरफ जहां तालिबान ने कुछ ही दिन पहले कहा था कि भारत पिछले चार दशक से अफगानिस्तान में नकारात्मक भूमिका निभाता आया है, तो वहीं अफगानिस्तान सरकार ने तालिबान को इसका जवाब देते हुए कहा है कि भारत वह देश है जिसने हमें सबसे ज्यादा दान दिया है और सबसे ज्यादा मदद की है। वास्तव में भारत ने अपने बुद्धिमत्तापूर्ण कदमों से उन राष्ट्रों का भी विश्वास जीता है जो भारत का समय-समय पर अवसरवादी मानसिकता के कारण विरोध करते रहे हैं।

भारत ने निभाया चिकित्सा धर्म

भारत ने विश्व समुदाय को चिकित्सकीय सहायता देकर यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि वैश्विक स्वास्थ्य को वह वैश्विक मानवाधिकार के रूप में देखता है। भारत ने अपने पड़ोसी देश श्रीलंका को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए 10 टन चिकित्सकीय सामग्री, नेपाल को 23 टन आवश्यक औषधि जिसमें हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन और पैरासिटामॉल आदि शामिल है व भूटान को व्यापक चिकित्सकीय आपूर्ति की खेप भेजी है। भारत ने बांग्लादेश को हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन की एक लाख गोलियां और 50,000 सर्जिकल दस्ताने व संयुक्त अरब अमीरात को हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन के 50 लाख टैबलेट प्रदान किए हैं।

फिलहाल भारत कोरोना वायरस से प्रभावित करीब 55 देशों को सहायता और वाणिज्यिक आधार पर हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन की आपूर्ति करने की प्रक्रिया में है। भारत ने अमेरिका, सेशेल्स और मॉरीशस समेत म्यांमार, ब्राजील व इंडोनेशिया जैसे देशों को भी यह दवा भेजी है। इन सभी देशों ने भारत का आभार व्यक्त किया है। इस बीच बदलते दौर में दुनिया में आर्थिक संरक्षणवाद जिस तरह बढ़ रहा है, उस स्थिति में कोरोना के बाद के काल में विश्व में भारत को अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था में बड़े संरचनात्मक सुधार करने होंगे। आज के विश्व में सफल घरेलू नीति ही विदेश नीति को अधिक ठोस आधार दे सकती है।

एक समान विकास की जरूरत

भारत में अभी विकास और औद्योगिकीकरण में असमानता देखने को मिलती है। अधिकतर देशी-विदेशी कंपनियों का रुख नोएडा, गुरुग्राम, तमिलनाडु, मुंबई, बैंगलुरू जैसे शहरों की ओर होता है। इस कारण इन शहरों पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता है। इसलिए केंद्र सरकार को सबसे पहले यह कोशिश करनी होगी कि वह देश के विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयां स्थापित करवाए। चीन या किसी और देश से आने वाली कंपनियों को मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बिहार आदि राज्यों में स्थापित करवाए। ताकि वहां के लोगों को उनके ही राज्य में रोजगार मिल सके।

योगी की पहल सराहनीय

कोरोना के इस संक्रमणकाल में चीन से कंपनियों के पलायन की खबर आते ही उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने दो मंत्रियों और कुछ अधिकारियों को इस काम में लगा दिया कि वे चीन से आने वाली कंपनियों को अपने यहां लाने का प्रयास करें। यही नहीं उन्होंने प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों में विदेशी कंपनियों के लिए भू-खंड भी आरक्षित करवा दिया। इसका प्रतिफल यह हुआ है कि कई कंपनियों ने उत्तरप्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों का भ्रमण किया है। इससे राज्य में औद्योगिक विकास की संभावना बढ़ी है। शायद यही वजह है कि योगी आदित्यनाथ ने विभिन्न प्रदेशों से पलायन करके उप्र पहुंचे मजदूरों के लिए माइगे्रशन कमीशन बनाने का निर्देश दिया है। प्रवासी मजदूरों एवं श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कदम उठाने वाला उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य है। यह आयोग प्रवासी मजदूरों को उनके कौशल के हिसाब से रोजगार उपलब्ध कराएगा। हाल के दिनों में अन्य राज्यों से करीब 23 लाख प्रवासी मजदूर उत्तरप्रदेश लौटे हैं। उत्तरप्रदेश सरकार की कोशिश है कि वह अपने प्रदेश के अधिक से अधिक श्रमिकों का पलायन रोके। यह तभी संभव है जब राज्य में औद्योगिक विकास होगा।

मौका मैदान मारने का

कोरोना संक्रमण का यह दौर मैदान मारने का मौका भी है। फिलहाल देश में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने यहां निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। देर से ही सही मध्य प्रदेश सरकार भी इस मौके का फायदा उठाने में जुट गई है। लेकिन सरकार की इस कोशिश को विपक्ष महज दिखावा बता रहा है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कहते हैं कि पूर्व में भाजपा की सरकार प्रदेश में औद्योगिक विकास के बड़े-बड़े दावे करती रही। लेकिन आंकड़ेबाजी के इस खेल की पोल खुल गई है। वह कहते हैं कि हमें नहीं लगता है कि मप्र सरकार चीन से पलायन करने वाली किसी कंपनी को आकर्षित कर पाएगी।

पूर्व मुख्यमंत्री की बात में दम भी लगता है। क्योंकि शिवराज सिंह चौहान के पूर्ववर्ती कार्यकाल में उद्योगों को आकर्षित करने के लिए करीब एक दर्जन इन्वेस्टर्स समिट आयोजित किए गए। हर समिट के बाद लाखों-करोड़ रुपए के औद्योगिक निवेश के दावे किए गए। जबकि हकीकत में यह तथ्य सामने आया कि निवेश करने वाली कंपनियों को यहां कायदे-कानून के चक्कर में इतने फेरे लगवाए गए कि उन्हें निराश होकर मप्र से मुंह मोड़ना पड़ा।

भारत के सामने बड़ा अवसर

चीन के प्रति विश्व में बढ़ते घृणा का भाव भारत के लिए बड़ा अवसर है कि वह आर्थिक संबंधों में चीन का विकल्प बन सके। ऐसे में जब विश्व की अधिकांश कंपनियां चीन से बाहर निकल रही हैं तो भारत उनके लिए बेहतर गंतव्य स्थल के रूप में खुद को स्थापित करने में लगा है। भारत द्वारा रक्षा कंपनियों के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की सीमा को बढ़ा दिया गया है तो दूसरी तरफ भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा आत्मनिर्भर भारत पर दिया जा रहा फोकस भी इसी उद्देश्य से प्रेरित है। वर्तमान आपदा के दौरान भारत की विदेश नीति में एक और महत्वपूर्ण बात जो देखी गई है, वह है गुटनिरपेक्ष देशों के संगठन का प्रभावी इस्तेमाल भारत की कूटनीतिक पहुंच और मानवतावादी प्रतिक्रिया को विश्व समुदाय के समक्ष रखने के लिए करना। भारतीय प्रधानमंत्री पर वर्ष 2016 और 2019 के 'नैम समिटÓ में भाग नहीं लेने और उसकी उपेक्षा के आरोप लगाए गए थे, लेकिन अब पीएम मोदी द्वारा महामारी से निपटने के लिए इसके वर्चुअल समिट को महत्व दिया गया है। भारत ने नैम के 59 देशों को चिकित्सकीय सेवाओं की आपूर्ति भी की है। अब देखना यह है कि विश्व शक्ति बनने के कगार पर खड़े भारत का भविष्य क्या गुल खिलाता है।

चुनौती के बीच अवसर

संकट के दौरान ही विकल्प भी निकलता है। कोरोना महामारी ने दक्षिण एशिया के देशों को आपसी सहयोग और मजबूत करने के लिए एक बेहतर मौका दिया है। पिछले सात दशकों से भी ज्यादा समय से संघर्षरत भारत और पाकिस्तान को कोरोना का संदेश है कि पुराने विवादों को भूलिए और सहयोग के नए युग की शुरूआत कीजिए। लेकिन सहयोग का यह संदेश सिर्फ पाकिस्तान और भारत के लिए नहीं है, यह संदेश दक्षिण एशिया के उन तमाम देशों के लिए भी है जो गरीब हैं और अब वैश्विक महामारी से जूझ रहे हैं। कोरोना संकट ने दक्षिण एशिया के देशों के अर्थव्यवस्था को भारी धक्का पहुंचाया है। इसलिए इन देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग की जरूरत और बढ़ गई है। एशियाई देशों के लिए एक सुखद स्थिति यह रही कि इन देशों में कोरोना महामारी मृत्यु दर यूरोपीय और अमेरिकी देशों के मुकाबले कम है। अगर दक्षिण एशियाई देशों में मृत्यु दर ज्यादा होती तो हालात गंभीर होते, क्योंकि ज्यादातर देशों में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा दयनीय स्थिति में है। यह भी सत्य है कि कोरोना ने सिर्फ कुछ देशों की ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ दिया है, ऐसे में अब गरीब देश किसी अमीर मुल्क से भी बहुत ज्यादा मदद की उम्मीद नहीं लगा सकते। अमीर मुल्क खुद गहरे संकट में हैं और अपनी अर्थव्यवस्था बचाने में लगे है। इस भंवर से निकलने के लिए अब दक्षिण एशियाई देशों के समक्ष एक ही रास्ता है, और वह है आपसी सहयोग का। भारत हमेशा से आपसी सहयोग का हिमायती रहा है। पाकिस्तान को छोड़कर सभी दक्षिण एशियाई देश भारत का नेतृत्व स्वीकारते रहे हैं। इसलिए भारत को अब कुशल नेतृत्वकर्ता बनकर सामने आने का समय आ गया है।

अब तुम्हारे हवाले वतन देशवासियों!

लॉकडाउन 5.0 बस नाम मात्र का ही समझिए। ये 1 से 30 जून तक लागू जरूर रहेगा और इसे अनलॉक 1.0  मान कर चल सकते हैं। महीनेभर की इस अवधि के लिए केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने गाइडलाइन जारी कर दी है। आसान भाषा में कहें तो रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी सभी चीजों के लिए छूट ही छूट है, लेकिन कुछ शर्तें लागू हैं। पहला हफ्ता यूं ही रहेगा लेकिन दूसरे हफ्ते से ज्यादातर मामलों में छूट मिलेगी। एक महत्वपूर्ण बात- अगर अब भी कोई कहीं फंसा हुआ है तो मुश्किलें खत्म समझे। अब आने-जाने की पूरी छूट है। यानी अब किसी तरह के पास या परमीशन की जरूरत नहीं होगी। सबसे अहम बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने गाइडलाइन तैयार करने के अलावा एक तरीके से सारी जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाल दी है और लोगों को अपनी सुरक्षा का खुद ख्याल रखना होगा ये बात हर वक्त याद रहे। मतलब साफ है। अब सभी को गांठ बांधकर समझ लेना होगा। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी- ये स्लोगन भले सड़कों पर लिखा देखने को मिला हो। भले ही सफर में दिखा हो, लेकिन अब इसे हर वक्त अच्छी तरह याद रखना है। सोशल डिस्टेंसिंग खत्म, दुर्घटना संभव है। मास्क लगाना भूले, दुर्घटना संभव है। दो गज की दूरी भूले, दुर्घटना संभव है। लक्ष्मण रेखा भूले, दुर्घटना संभव है। ऐसे में बहुत ही जरूरी है कि आप अपना अच्छी तरह ख्याल रखें। अगर आप अपना ख्याल रखते हैं तो समझिए एक साथ कई लोगों का भला होता है। एक तो आपका और दूसरे आप के इर्द-गिर्द के सब लोगों का।

आसान नहीं आर्थिक त्रासदी से मुक्ति की राह

अब यह किसी से छिपा नहीं है कि कोरोना महामारी ने दुनिया समेत भारत की अर्थव्यवस्था को त्रासदी की ओर धकेल दिया है। एक ओर जहां कल-कारखाने से लेकर सभी प्रकार के कार्यों में व्यापक बंदी है, वहीं सरकार को मिलने वाले आर्थिक लाभ मसलन जीएसटी व आयकर आदि भी हाशिए पर हैं। इस बीच सरकार लोगों की स्वास्थ्य रक्षा और जीवन मोल को देखते हुए 20 लाख करोड़ रुपए के आॢथक पैकेज का ऐलान कर चुकी है। लेकिन यह आर्थिक पैकेज राहत से ज्यादा बिना आय वाला योजनागत व्यय का ब्यौरा है। देखा जाए तो सरकार सारे इंतजाम कर रही है, पर समस्या इतनी बड़ी है कि सब नाकाफी है। देश में असंगठित कामगार इन दिनों पूरी तरह खाली हाथ हैं और लगातार उखड़ रही अर्थव्यवस्था के चलते उनकी राह में भूख और जीवन की समस्या भी स्थान घेर रही है। शहरों से मजदूर व्यापक पैमाने पर गांव की ओर जा रहे हैं। बरसों बाद यह भी पता चला कि भारत वाकई में गांव का ही देश है और जब सभ्यता व शहर पर गाज गिरती है, तब जीवन का रुख गांव की ओर ही होता है। सरकार के सामने अनेक दुविधाएं हैं। कोरोना से निपटना, आर्थिक त्रासदी से मुक्ति, ठप पड़ी व्यवस्था को सुचारू करना आदि। इसमें कृषि, उद्योग व सेवा संबंधी सभी इकाइयां शामिल हैं। कहा जाए तो लोक विकास के लिए नीतियां बनाने वाली सरकारें आज कोरोना महामारी के चलते चौतरफा समस्याओं से घिरी हुई हैं। नागरिकों पर भी गरीबी की गाज लगातार गिर रही है। सवाल यह है कि आॢथक त्रासदी से आॢथक सुशासन की राह पर गाड़ी कब आएगी?

चीनी कंपनियों के लिए अलग नीति बनाएगी मप्र सरकार

कोरोना संकट के कारण ठप हुई आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाने के लिए औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने की कोशिशें शिवराज सरकार ने शुरू कर दी हैं। इसी कड़ी में विगत दिनों प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों ने अमेरिका की बड़ी कंपनियों के उच्च अधिकारियों से वेबिनार के माध्यम से बात की। इस दौरान यह भी भरोसा दिलाया गया कि जो कंपनी चीन से पलायन करके मध्य प्रदेश में अपनी इकाई स्थापित करेगी, उनके लिए अलग नीति बनाई जाएगी और विशेष पैकेज भी दिया जाएगा। अमेरिका की जो कंपनियां प्रदेश आना चाहती है, उनको भी सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। कोरोना संकट की वजह से प्रदेश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई है। इसे फिर से खड़ा करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना संकट को अवसर के तौर पर देखते हुए अधिकारियों को अधिक से अधिक निवेश आकर्षित करने के निर्देश दिए हैं। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर अधिकारियों ने गत दिनों यूएस-इंडिया स्ट्रेटजी पार्टनरशिप फोरम के माध्यम से पेप्सी, केटरपिलर, क्युमिंस, वेरियन मेडिकल, नाइकी, वालमार्ट सहित अन्य कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ चर्चा की। इस दौरान कंपनियों के अधिकारियों को बताया गया कि मध्य प्रदेश में उद्योगों के अनुकूल माहौल है। भविष्य में जो भी अमेरिका की कंपनियां विश्व के किसी भी भाग से भारत आना चाहती है तो मध्य प्रदेश उनको जरूरत के मुताबिक सभी सुविधाएं उपलब्ध कराएगा। जो उद्योग चीन से पलायन करके मध्य प्रदेश में अपनी इकाइयां स्थापित करेंगे, उनके लिए शासन अलग नीति बनाएगा। इसके साथ ही विशेष पैकेज भी दिया जाएगा। इस पर काम चल रहा है।

- राजेंद्र आगाल

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