विकास कार्य ठप
03-Apr-2020 12:00 AM 465

कोरोना वायरस महामारी इस सदी का सबसे बड़ा वैश्विक संकट है। इसका विस्तार और गहराई बहुत ज्यादा है। इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से पृथ्वी पर 7.8 अरब लोगों में से हर एक को खतरा है। इस बीमारी ने पूरे विश्व के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है और सभी बाजारों को बाधित कर दिया है। कोरोना वायरस महामारी से पैदा वित्तीय और आर्थिक संकट 2008-2009 की बड़ी मंदी के प्रभाव से ज्यादा हो सकता है। बर्लिन की दीवार के गिरने या लेहमैन ब्रदर्स के पतन की तरह कोरोना वायरस महामारी भी एक बड़ी घटना है। इसके दूरगामी परिणामों की हम आज केवल कल्पना ही कर सकते हैं।

अगर भारत के संदर्भ में देखें तो कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन से देश की पूरी अर्थव्यवस्था ही लॉक हो गई है। विकास कार्य पूरी तरह ठप हो गए हैं। फैक्ट्री और निर्माण कार्य बंद होने से मजदूर पलायन कर रहे हैं। पलायन कर रहे मजदूरों को राहत पहुंचाने के लिए सरकार कई कदम उठा रही है। सरकारों ने मजदूरों के तीन महीने की खाने-पीने की व्यवस्था करनी शुरू कर दी है। मप्र सहित कई राज्यों ने मजदूरों के खातों में पैसे भी डाल दिए हैं। इससे मजदूरों की आर्थिक स्थिति तो सही हो जाएगी लेकिन देश का क्या होगा? 

लेबर फोर्स सर्वे के मुताबिक भारत में 37.2 करोड़ लोगों की श्रमशक्ति है। इनमें से 22.8 फीसदी वैतनिक कर्मचारी, 24.9 फीसदी अनौपचारिक मजदूर और बचे हुए 52.2 फीसदी लोग स्वरोजगार से जुड़े हैं। अगर संख्या की बात करें तो 8.5 करोड़ वैतनिक कर्मचारी, 9.3 करोड़ अनौपचारिक मजदूर और 19.4 करोड़ लोग स्वरोजगार से जुड़े हैं। कोरोना वायरस के कारण सबके काम प्रभावित हुए हैं। अगर 14 अप्रैल के बाद लॉकडाउन खत्म भी किया जाता है तो पलायन कर चुके मजदूरों को वापस आने में महीनों लग सकते हैं। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी।

मप्र में कोरोना वायरस के हमले से मेट्रो, स्मार्ट सिटी जैसे कई प्रोजेक्ट भी खतरे में पड़ गए हैं। एक दर्जन से ज्यादा स्मार्ट प्रोजेक्ट लॉकडाउन के कारण जहां पूरी तरह से ठप हो गए हैं। शहरभर में एक दर्जन से ज्यादा छोटे, बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इनमें से कई ऐसे प्रोजेक्ट हैं जिन्हें मई, जून और दिसंबर 2020 तक पूरे करने हैं, लेकिन कोरोना के कारण अब शायद ही दिसंबर तक प्रोजेक्ट पूरे हो पाए। जानकारों की मानें तो इससे उबरने में ही करीब 3 से 4 माह लगेंगे। केंद्र सरकार ने पहले चरण में स्मार्ट प्रोजेक्ट पूरे करने की समय-सीमा अपै्रल 2022 तक निर्धारित की है, लेकिन देशभर में जिस तरह से आर्थिक अस्थिरता का महौल बना है उसे देखते हुए विकास और निर्माण कार्य के लिए मिलने वाला आवंटन अब खटाई में पड़ता दिख रहा है।

कोरोनो वायरस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के उन आर्थिक दोषों को भी उजागर किया है, जिनकी अभी तक शांति काल में अनदेखी करना बहुत आसान था। कोविड-19 महामारी वैश्विक आर्थिक गति की दिशाओं को भले ही मौलिक रूप से नहीं बदलेगी लेकिन यह कुछ ऐसी प्रवृत्तियों की गति को और तेज कर देगी, जो पहले से ही चल रही हैं। कोरोना वायरस विश्व के औद्योगिक विनिर्माण के मौजूदा मूल सिद्धांतों को कमजोर कर रहा है। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं पहले से ही आर्थिक और राजनीतिक दोनों रूप से समस्याओं से घिरी हुईं थीं। कोविड-19 ने अब इनमें से कई सप्लाई लिंक्स को तोड़ दिया है। कोरोना प्रभावित क्षेत्रों में फैक्ट्रियां बंद होने से दूसरे निर्माताओं, अस्पतालों, फार्मेसियों, सुपर मार्केट और खुदरा स्टोरों में उत्पादों की कमी हो गई है। ई-कॉमर्स की दिग्गज अमेजन के प्लेटफार्म से जुड़ी केवल 45 प्रतिशत चीनी कंपनियां ही अभी सामानों की सप्लाई कर रही हैं। इसके कारण अमेजन ने इटली और फ्रांस में गैर जरूरी सामानों की आपूर्ति के आर्डर लेना रोक दिया।

वैश्वीकरण ने कंपनियों को दुनियाभर में विनिर्माण करने और वेयरहाउसिंग की लागतों को दरकिनार करते हुए अपने उत्पादों को बाजार में सीधे पहुंचाने की अनुमति दी है। कुछ दिनों से अधिक समय तक आलमारियों में पड़े रहने वाले सामानों को बाजार की विफलता माना जाता था। आपूर्ति किए जाने वाले सामानों को सावधानी से और वैश्विक स्तर पर निर्धारित स्थानों पर भेजना पड़ता है। कोविड-19 ने साबित कर दिया है कि वायरस न केवल लोगों को संक्रमित कर सकते हैं, बल्कि पूरी आर्थिक प्रणाली को ध्वस्त कर सकते हैं।

कोरोना वायरस महामारी के कारण अगर आने वाले समय में पश्चिमी देशों के व्यवसायों और एशियाई और अफ्रीकी देशों के श्रम बल की श्रृंखला कमजोर पड़ती है तो लंबी अवधि में  संभवत: वैश्विक अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता घट जाएगी। इसके बदलने से वर्तमान अंतरराष्ट्रीय प्रणाली बड़े दबाव में आ जाएगी। जो साफतौर पर पश्चिमी विकसित देशों के पक्ष में झुकी हुई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था का यह जोखिम विशेष रूप से विकासशील देशों, आर्थिक रूप से कमजोर श्रमिकों और गरीब लोगों के एक बड़े हिस्से के लिए बहुत अच्छा साबित हो सकता है। इससे उनके लिए नई संभावनाओं और अवसरों का मार्ग खुल सकता है। इसके परिणाम-स्वरूप वैश्विक पूंजीवाद में एक नाटकीय नया चरण आ सकता है। जिसमें आपूर्ति श्रृंखलाओं को आस-पास ही रखा जाता है और भविष्य के आपात व्यवधानों से बचने के लिए गोदामों को ज्यादा सामान से भरा रखा जाता है। यह कंपनियों के हाल के मुनाफे में कटौती कर सकता है, लेकिन पूरी आर्थिक प्रणाली को अधिक लचीला बना सकता है। महामारी के बाद ज्यादा से ज्यादा कंपनियां अब यह जानने का प्रयास करेंगी कि उनकी मूल आपूर्ति कहां से आती है। सरकारें भी घरेलू उद्योगों की घरेलू बैकअप योजनाओं और भंडार के लिए रणनीतिक उद्योगों पर विचार कर रही हैं। इससे लाभप्रदता में गिरावट जरूर आएगी, लेकिन आपूर्ति स्थिरता में वृद्धि होने का उद्देश्य पूरा होना चाहिए।

-  धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया

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