उप्र को 750 एमसीएम पानी देगा मप्र
20-Nov-2021 12:00 AM 558

 

केन-बेतवा लिंक परियोजना से उप्र को पानी देने की योजना पर मप्र सरकार कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव पारित कर मुहर लगाएगी। इसके तहत उप्र के बुंदेलखंड क्षेत्र को 750 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) पानी मप्र सरकार देगी। इस योजना को लेकर पहले ही दोनों सरकारों के बीच समझौता हो चुका है। मप्र के जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने कहा कि पानी बंटवारे को लेकर सहमति बन गई है। नए अनुबंध के तहत पानी बंटवारे को लेकर कैबिनेट की मंजूरी होना है। प्रस्ताव जल्द पारित हो जाएगा। जानकारी के अनुसार, नदी जोड़ो अभियान के तहत देश की पहली केन-बेतवा लिंक परियोजना की आधारशिला इस साल दिसंबर में रखी जा सकती है। इससे पहले पानी बंटवारे को लेकर हुए समझौते के तहत मप्र सरकार परियोजना से 750 एमसीएम पानी उप्र को देने का प्रस्ताव कैबिनेट से पारित करेगी। प्रस्ताव पारित होने के बाद परियोजना का भूमि पूजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर सकते हैं। कार्यक्रम संभवत: झांसी (उप्र) में होगा।

इस परियोजना से बुंदेलखंड के बांदा, झांसी, महोबा, ललितपुर और हमीरपुर जिलों को पानी मिलने से यहां के किसानों को फसल की सिंचाई में काफी सहूलियत मिलेगी। साथ ही इस परियोजना से इस क्षेत्र की करीब 21 लाख आबादी को 67 मिलियन क्यूबिक मीटर पीने योग्य पानी उपलब्ध कराया जाएगा। इस परियोजना से पानी के बंटवारे को लेकर दोनों राज्यों के बीच 15 साल से चल रहे विवाद का पटाक्षेप मार्च 2021 में हुआ। प्रधानमंत्री की मौजूदगी में परियोजना से उप्र को 750 एमसीएम पानी देने पर सहमति बन गई। अनुबंध पर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के हस्ताक्षर भी हो चुके हैं। समझौते के मुताबिक, मप्र सरकार को उप्र को पानी देने के प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर लगानी है। इसे लेकर तैयारी चल रही है। सूत्र बताते हैं कि समझौता हो चुका है, इसलिए कैबिनेट से मंजूरी मिलने में कोई दिक्कत नहीं होगी। कैबिनेट से प्रस्ताव पारित होने के बाद प्रधानमंत्री का कार्यक्रम तय होगा।

उल्लेखनीय है कि मप्र के पन्ना जिले में आकार लेने वाली परियोजना वर्ष 2005 में मंजूर हुई है। इसके तहत नजदीक से बहने वाली केन-बेतवा पर बांध बनेगा। शुरू में उप्र को रबी फसल के लिए 547 एमसीएम (547 अरब लीटर) और खरीफ फसल के लिए 1153 एमसीएम (1153 अरब लीटर) पानी देने का अनुबंध हुआ था। विवाद रबी फसल के लिए पानी देने को लेकर शुरू हुआ था। अप्रैल, 2018 में उप्र ने रबी फसल के लिए 700 एमसीएम (700 अरब लीटर) पानी की मांग की, जो बाद में 788 एमसीएम (788 अरब लीटर) तक पहुंच गई। सहमति के पहले ही उप्र ने जुलाई, 2019 में 930 एमसीएम (930 अरब लीटर) पानी का मांग रख दी। मप्र इतना पानी देने के लिए तैयार नहीं था। बांध से बिजली उत्पादन की भी योजना है। पूरी बिजली मप्र को ही मिलेगी। मंत्रालयीन सूत्रों के अनुसार केन-बेतवा लिंक परियोजना करीब 35,111 करोड़ रुपए की है। इसमें केंद्र सरकार 90 प्रतिशत राशि देगी, वहीं दोनों राज्य सरकारें पांच-पांच प्रतिशत राशि देंगी। केन बेसिन से उप्र में 2.27 लाख हेक्टेयर की सिंचाई होगी वहीं मप्र में 4.47 लाख हेक्टेयर की सिंचाई  होगी। जबकि बेतवा बेसिन से मप्र में 2.06 लाख हेक्टेयर सिंचाई होगी।

उधर छिंदवाड़ा के माचागोरा डैम की अथाह जलराशि ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्र को खेती में संपन्न तो बना दिया, लेकिन अब भी सिवनी और छिंदवाड़ा जिले की हजारों हेक्टेयर जमीन प्यासी है। जहां एक ओर तकनीकी खामी की वजह से नहरों के जरिए मिलने वाला पानी कई किसानों के खेतों तक नहीं पहुंच पा रहा तो वहीं भौगोलिक विषमता के कारण बांध से लगे करीब दर्जनभर गांव आज भी सिंचाई के साधनों की राह देख रहे हैं। दरअसल, खेतों तक सिंचाई के लिए नहर तो बना दी गई, लेकिन टूट-फूट और गुणवत्ताहीन काम की वजह से हर खेत तक पानी पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं है। शुरुआती दौर में ही कहीं नहर तो कहीं पुलिया के निर्माण में कई तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। वहीं वर्ष 2017 में ही टेस्ंिटग के दौरान नहर का कांक्रीट तक धराशायी होने का मामला सामने आ चुका है। बीते बारिश में कपुर्दा के समीप नहर का करीब एक किलोमीटर का हिस्सा धंस चुका है। इससे नहरों की गुणवत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है। वर्तमान में भी मुख्य नहरें क्षतिग्रस्त हैं। डिस्ट्रीब्यूटरी और सब-डिस्ट्रीब्यूटरी नहरें अब भी अधूरी हैं। हर बार सिंचाई से पहले नहरों को दुरुस्त करने का दावा जरूर किया जाता है, लेकिन यदि गुणवत्ता और तकनीकी पर जोर दिया जाता तो हर बार इसकी नौबत ही न आती। वहीं दूसरी ओर माचागोरा बांध की 20 से 25 किलोमीटर की परिधि में आने वाले करीब दर्जनभर गांवों के हजारों किसान भौगोलिक विषमता का दंश झेलने को मजबूर हैं।

बाणसागर के जल बंटवारे में इस साल कटौती

इस साल पिछले साल की तुलना में मप्र, उप्र और बिहार को बाणसागर का कम जल मिलेगा। वजह है, विंध्य क्षेत्र में कम बारिश। क्षेत्र में चालू वर्ष 2021 में जल का बंटवारा हो गया है। अफसरों की मानें तो हर साल 1 नवंबर की स्थिति में पानी का बंटवारा तीनों राज्यों के बीच हो जाता है। इसके अनुसार इस साल प्रदेश को बाणसागर से 1885.83 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) और उप्र-बिहार को 992.915-992.915 एमसीएम पानी दिया जाएगा। बता दें कि अंतरराज्यीय बाणसागर परियोजना के पानी में 3 राज्यों का हिस्सा है। बांध के अंदर भरे पानी में 50 प्रतिशत मप्र व 25-25 प्रतिशत पानी उप्र और बिहार को दिया जाता है। 15 अक्टूबर तक मानसून सत्र रहने के बाद 1 नवंबर को 3 राज्यों के मध्य पानी का बंटवारा किया जाता है। 1 नवंबर को बाणसागर का जलस्तर 339.97 मीटर था। जिसमें कुल 4417.24 एमसीएम पानी भरा था। गौरतलब है कि 1 नवंबर की स्थिति में बाणसागर का जो जलस्तर रहता है। उससे, 1 मीटर नीचे से बंटवारा किया जाता है। ऐसे में 339.97 मीटर जलस्तर होने पर 338.97 मीटर भरे पानी का विभाजन किया गया। जल स्तर के अनुसार बांध में 4417.24 एमसीएम की जगह 3971.66 एमसीएम पानी आया है, जबकि 446 एमसीएम पानी सालभर वाष्प से उड़ने के लिए छोड़ दिया गया। अंतत: 3971.66 एमसीएम बचे पानी का तीनों राज्यों में विभाजन कर दिया गया। इसमें मप्र को 1850.53 एमसीएम और उप्र-बिहार को 992.915-992.915 एमसीएम पानी मिला।

- बृजेश साहू

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