17-Mar-2021 12:00 AM
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भोपाल सहकारी दुग्ध संघ एक तरफ अपने उत्पादों को महंगा कर उपभोक्ताओं पर महंगाई का बोझ डाल रहा है, वहीं दूसरी तरफ संघ में वर्षों से मैन पावर सप्लाई करने वाले ठेकेदार को नियमों को ताक पर रख फायदा पहुंचा रहा है। अभी हाल ही में सांची का घी 25 रुपए महंगा कर दिया गया। इससे लोगों में आक्रोश है और उनका कहना है कि अगर संघ ठेकेदार को फायदा पहुंचाना बंद कर दे तो उत्पादों को महंगा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
भोपाल सहकारी दुग्ध संघ जो काम खुद कर सकता है, उसके लिए जबरन सालाना 10 करोड़ 80 लाख रुपए चुका रहा है। यह राशि मेसर्स गोपाल विश्वास लेबर कांट्रेक्टर नामक फर्म को दी जा रही है। फर्म संघ में 1100 से अधिक ठेका श्रमिक सप्लाई करती है। जिसे संघ सुविधा शुल्क के नाम पर यह राशि दे रहा है। संघ खुद श्रमिकों से काम लेने लगे तो सालाना 10 करोड़ 80 लाख रुपए की सीधी बचत होगी। महंगाई के दौर में इस राशि का फायदा सांची दूध व उत्पादों की कीमत कम करके उपभोक्ताओं को दी जा सकती है। साथ ही किसानों से खरीदे जाने वाली दूध की कीमत बढ़ाकर उन्हें भी राहत पहुंचाई जा सकती है। भोपाल सहकारी दुग्ध संघ रोजाना 3 लाख लीटर से अधिक दूध का कारोबार करता है। इसके लिए 1100 से अधिक ठेका श्रमिकों की सेवाएं ली जा रही हैं। संघ इन श्रमिकों को हर माह 80 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का मानदेय भुगतान करता है। यह राशि पहले निजी फर्म को दी जाती है और निजी फर्म उक्त राशि को श्रमिकों को भुगतान करता है। इसके बदले फर्म को सुविधा शुल्क का भुगतान संघ कर रहा है।
भोपाल सहकारी दुग्ध संघ ने एक ठेकेदार के ठेके की अवधि को बार-बार बढ़ाकर 66 करोड़ 8 लाख रुपए का फायदा पहुंचाया है। यह फायदा 10 साल में पहुंचाया गया है। ठेका फर्म मेसर्स गोपाल विश्वास लेबर कांट्रेक्टर है जो संघ को श्रमिक सप्लाई करती है। उक्त फर्म को संघ ने यह राशि सेवा शुल्क के नाम पर भुगतान की है। अभी भी उक्त फर्म को सेवा शुल्क भुगतान किया जा रहा है। बड़ी बात यह है कि संघ ने अकेले सेवा शुल्क के नाम पर 66 करोड़ 8 लाख रुपए दिए हैं, श्रमिकों के वेतन भुगतान की राशि अलग है, जो अरबों रुपए में है। बता दें कि भोपाल सहकारी दुग्ध संघ रोजाना 3 लाख लीटर दूध का कारोबार करता है। यह दूध किसानों से खरीदकर संघ में लाता है और यहां प्रोसेसिंग करने के बाद पैकिंग करके उपभोक्ताओं को पहुंचाता है। इसके काम के लिए 1000 से अधिक श्रमिकों की जरूरत पड़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि संघ यह काम खुद करे तो सेवा शुल्क में दी जाने वाली राशि बचेगी। इसका फायदा सांची दूध की कीमत कम करके उपभोक्ताओं को दे सकते हैं। किसानों से दूध खरीदी के दाम बढ़ा सकते हैं।
भोपाल सहकारी दुग्ध संघ इंदौर, उज्जैन, जबलपुर और सागर दुग्ध संघ से बचत करने के मामले में पीछे है। भोपाल संघ ठेका श्रमिक सप्लाई करने वाली मेसर्स गोपाल विश्वास लेबर कांट्रेक्टर फर्म को हर माह 10 फीसदी सेवा शुल्क चुका रहा है। यह तब है, जबकि इंदौर, जबलपुर, सागर दुग्ध सहकारी दुग्ध संघ इसी काम के लिए ठेकेदारों को सिर्फ 1 फीसदी और उज्जैन 1.5 फीसदी शुल्क देते हैं। दूसरे संघों की तुलना में भोपाल संघ 9 फीसदी अधिक सेवा शुल्क देकर ठेकेदार को फायदा पहुंचा रहा है। उक्त ठेका फर्म को श्रमिकों के कुल वेतन की राशि पर 10 फीसदी राशि देता है, जो हर माह 10.50 लाख रुपए से अधिक होती है। इसका असर भोपाल समेत आसपास के तीन लाख से अधिक उपभोक्ताओं पर पड़ रहा हैं। संघ बचत की राशि बेहिसाब खर्च कर रहा है और मुनाफे के लिए हर बार घाटा होने और लागत बढ़ने का हवाला देकर सांची दूध की कीमत बढ़ा देता है। संघ बचत करने लगे तो सांची दूध की कीमत बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
भोपाल सहकारी दुग्ध संघ ने शुरुआत में फर्म से कुछ सालों के लिए अनुबंध किया था जो खत्म होने के बाद दोबारा ठेका दे दिया गया। साल 2018 में ठेका खत्म हो चुका है। अब उसे हर माह बढ़ाया जा रहा है। बताया जा रहा है कि निजी फर्म ने रजिस्ट्रार को-आपरेटिव सोसायटी से स्थगन लाया है जिसे खारिज करने के लिए भोपाल सहकारी दुग्ध संघ ने भोपाल संभागायुक्त कवींद्र कियावत के निर्देशन में प्रक्रिया शुरू कर दी है। संघ चाहता तो पूर्व में भी स्टे को खारिज करने के लिए ऊपरी अदालत जा सकता था जो कि नहीं गया।
दरअसल इंदौर, उज्जैन समेत दूसरे संघों में ठेका श्रमिक सप्लाई करने वाली फर्म को सुविधा शुल्क नाम मात्र का दिया जा रहा है। वहीं भोपाल संघ मनमर्जी से करोड़ों रुपए भुगतान कर रहा है। सूत्रों की माने तो निजी फर्म कुछ ठेका श्रमिकों को तय मानदेय से कम राशि भुगतान करती है। साथ ही और रिकार्ड में बराबर राशि दिखाई जा रही है। विरोध करने वाले कुछ ठेकाकर्मियों को निकाला जा चुका है। उक्त फर्म का ग्वालियर में भी ठेका होना बताया जा रहा है जहां ठेकाकर्मियों के शोषण के प्रकरण सामने आते रहे हैं। सूत्रों की माने तो उक्त फर्म को संघ के एक अधिकारी द्वारा संरक्षण प्राप्त होना बताया जा रहा है। सांची दूध की कीमत बीते साल बढ़ी थी। अब दोबारा बढ़ाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। जबकि संघ सहकारी दुग्ध संघ है जिसका मकसद अनावश्यक खर्च कम करके उपभोक्ताओं को राहत देना होता है। सरकार की भी यही मंशा रही है। यही वजह है कि पूर्व में सरकार संघों को करोड़ों रुपए के नुकसान की भरपाई करती रही है।
किसानों को फायदा नहीं
संघ के पूर्व संचालक बलराम बारंगे का कहना है कि संघ घाटा बताकर किसानों से जब चाहे तब दूध खरीदी बंद कर देता है। वहीं निजी फर्मों को जबरन करोड़ों रुपए का फायदा पहुंचाया जा रहा है। यह ठीक नहीं है। यदि सालाना सुविधा शुल्क के नाम पर ठेका श्रमिक सप्लाई करने वाली फर्म को दिए जाने वाले 10 करोड़ 80 लाख रुपए बचाकर उसका फायदा किसानों को दे तो वे समृद्ध होंगे। उपभोक्ताओं को भी कीमत में राहत देनी ही चाहिए।
- सुनील सिंह