अब तक तो तारीख पर तारीख को लेकर परेशान थे, लेकिन कानूनी हथकंडों की वजह से निर्भया को इंसाफ मिलने की आस में लोग फांसी पर तारीख और तारीख बढऩे से हैरान हैं। बचाव के कागजी हथकंडे, दरिंदों की असली उम्र छुपाने की गफलत, कानून के प्रावधान, संवैधानिक विकल्प और प्रशासनिक पेचीदगियां। इन सबको मिलाकर जो सीरप बन रहा है वो शायद निर्भया के चारों सजायाफ्ता दोषियों को जिंदगी की चंद सांसें बढ़ा दे, लेकिन फांसी के तख्ते पर जाने से नहीं रोक सकता। पटियाला हाउस कोर्ट ने आखिरकार इन्हीं कानूनी मजबूरियों की वजह से फांसी की तारीख टाल दी। यानी 22 जनवरी के बजाय अगर कुछ कानूनी बाधा, रोक या अड़चन नहीं हुई तो 1 फरवरी सुबह 6 बजे इन चारों दोषियों को फांसी होगी। पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष अदालत में सुनवाई के दौरान भी यही सब सामने आ रहा है। खुद अदालत ने कहा कि हम इन कानूनी प्रावधानों और दोषियों को अपने बचाव के लिए मिले कानूनी और संवैधानिक अधिकारों की वजह से इनकी सजा पर अमल को टाल रहे हैं। लेकिन याद रहे सजा रद्द नहीं कर रहे। अगर सुप्रीम कोर्ट में उपचारात्मक याचिका या फिर राष्ट्रपति के पास दया याचिका लंबित होगी तो डेथ वारंट पर अमल नहीं किया जा सकेगा। फिलहाल चारों दोषियों की कानूनी और संवैधानिक अधिकारों की फाइलें अलग-अलग जगह हैं। मुकेश और विनय की सुधारात्मक याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो चुकी है। मुकेश ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका लगाई थी। वो भी दो दिन में सारी मेजों से होती हुई राष्ट्रपति के हाथों खारिज हो गई। इस बीच मुकेश ने अपने खिलाफ डेथ वारंट को भी टालने की अर्जी ट्रायल कोर्ट में लगाई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि जब दिल्ली सरकार भी इनको अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने की छूट देने को तैयार है तो फिर नई तारीख देनी ही पड़ेगी। फिर नई तारीख दी गई। कोर्ट ने कहा कि अब बचे दोषी क्यूरेटिव और दया याचिका लगाएंगे ही। दूसरी ओर बचे दो और दोषी अक्षय और पवन गुप्ता, इन दोनों की सुप्रीम कोर्ट से सजा-ए-मौत की पुष्टि वाले आदेश पर पुनर्विचार याचिका खारिज हो गई है। अब ये दोनों कई तरह के हथकंडों के जरिए पहले तो सुधारात्मक याचिका यानी क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने में ही हर संभव देरी करेंगे। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने मुकेश की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सख्त लहजे में पूछा भी कि जब 2017 में ही सुप्रीम कोर्ट ने आपकी रिट एसएलपी खारिज कर दी थी तो ढाई साल तक आप हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे रहे। इस दौरान आपने रिव्यू और क्यूरेटिव क्यों दाखिल नहीं की। जिनकी दया याचिका लग चुकी है वो तो आखिरी संवैधानिक विकल्प के मोड़ पर खड़े हैं। लेकिन मुकेश और विनय की क्यूरेटिव याचिका खारिज होने के बाद अब अक्षय और पवन के पास क्यूरेटिव लगाने का विकल्प है। क्यूरेटिव खारिज होने के बाद दया याचिका लगाने और उसके खारिज होने की स्थिति में भी एक बार फिर अदालत में चुनौती देने का अंतिम विकल्प है। यानी दया याचीज खारिज होने की हालत में भी डेथ वारंट को चुनौती देने का विकल्प भी है। अब देखिए! पवन ने सजा पर अमल में देरी के लिए एक और हथकंडा अपनाया। यानी क्यूरेटिव से पहले अपराध के समय अपने नाबालिग होने की दलील पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी को सुनवाई के बाद इसे खारिज कर दिया। ये तो विकल्प हैं। कानूनी और संवैधानिक लेकिन चूंकि हमारा संविधान और कानून दोनों वकीलों के लिए स्वर्ग हैं लिहाजा हथकंडे भी बहुत हैं फांसी टालने के। दोषियों के वकीलों का कहना है कि हमारे कानूनी तरकश में फिलहाल इतने तीर तो हैं कि दो साल तक हम फांसी टालने का माद्दा रखते हैं। जब तक ये हथकंडे चलेंगे कोई अदालत इनको फांसी तो नहीं दे सकती। अब एक ओर दोषियों के वकील एपी सिंह के दावे हैं दूसरी ओर संविधानिक और कानूनी छूट के बीच सहमे खड़े कानून और संविधान तीसरी ओर इंसाफ की आस में सूनी आंखों से न्याय की अंधी देवी को टकटकी लगाए निहारती देश की जनता और निर्भया के माता-पिता। सूनी पथराई आंखें उन आंखों को देख रही हैं जिन पर काली पट्टी भी बंधी है। जेल के नियम तोड़े जेल में बंद कैदियों को जेल के नियमों का पालन करना होता है, और पालन नहीं करने वालों को सजा भी दी जाती है। इन चारों आरोपियों ने तो जेल में भी सजा पाई, पिछले 7 सालों में इन सभी ने नियम तोड़े लेकिन सबसे कम नियम अक्षय ने तोड़े। उसे सिर्फ एक बार नियम तोडऩे पर सजा हुई थी। जबकि मुकेश को 3 बार, पवन को 8 बार और विनय ने जेल के नियमों का उल्लंघन करने पर 11 बार सजा मिली है। भारत में ये पहली बार होगा कि 4 कैदियों को एकसाथ फांसी दी जा रही हो। इन सभी को जेल में अलग-अलग सेल में रखा गया है और सीसीटीवी के जरिए इनकी मॉनीटरिंग की जा रही है। इनके व्यवहार पर भी करीब से ध्यान दिया जा रहा है। पता चला है कि डेथ वारंट जारी होने के बाद चारों दोषी काफी टेंशन में हैं। और इनमें से विनय सबसे ज्यादा परेशान है। उसके चेहरे पर डर देखा जा सकता है। वहीं उसका व्यवहार भी बदल रहा है। अब उसे जरा सी बात पर भी गुस्सा आ जाता है। हालांकि जेल अधिकारी व कर्मचारी बातचीत करके उसे सामान्य करने की कोशिश कर रहे हैं। वो 1 फरवरी तक सामान्य रहे इसके लिए विशेषज्ञों से उसकी काउंसिलिंग भी कराई जा सकती है। 3 साल पहले विनय ने भी राम सिंह की तरह ही जेल में आत्महत्या की कोशिश की थी। - अक्स ब्यूरो