04-May-2020 12:00 AM
3944
हाल ही में आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक आज भी दुनिया भर में लगभग 90 फीसदी महिलाएं और पुरुष, महिलाओं के प्रति किसी न किसी तरह का पूर्वाग्रह रखते हैं। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा दुनिया की 80 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले 75 देशों का अध्ययन करने के बाद तैयार की गई है। अध्ययन में सामने आया है कि आज भी दस में से 9 लोग महिलाओं के प्रति दकियानूसी सोच रखते हैं। गौरतलब है कि 'जेंडर सोशल नॉर्म्स इंडेक्स’ नाम से आई यूएनडीपी की अपनी तरह की यह पहली रिपोर्ट है। दुनिया की लगभग 80 फीसदी आबादी को लेकर हुए इस अध्ययन के आंकड़ों का विश्लेषण इस कटु सत्य से रूबरू कराता है कि महिलाओं को समानता हासिल करने के मामले में आज भी अनगिनत बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
बीते कुछ बरसों में बहुत कुछ बदल कर भी सोच और संवेदनशीलता के मोर्चे पर कुछ न बदलने की स्थितियों में कितनी ही परेशानियां आज भी आधी आबादी के हिस्से हैं। दुनिया के हर हिस्से की महिलाओं ने खेल और अंतरिक्ष से लेकर राजनीतिक पटल और कारोबार के संसार तक अपनी क्षमता और योग्यता को सिद्ध किया है। बावजूद इसके उनके प्रति पूर्वाग्रही सोच कायम है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की इस रिपोर्ट में शामिल लगभग 50 फीसदी लोगों के मुताबिक पुरुष श्रेष्ठ राजनीतिक नेता होते हैं। 40 प्रतिशत से ज्यादा लोगों का मानना था कि पुरुष बेहतर कारोबारी दिग्गज होते हैं। इतना ही नहीं, 28 फीसदी लोगों ने तो पत्नी की पिटाई तक को जायज माना है। अफसोस कि इनमें महिलाएं भी शामिल हैं। हालांकि अध्ययन में शामिल 30 देशों में महिलाओं के प्रति नजरिया बदला है। लेकिन दुनिया के बड़े हिस्से में आज भी गैर-बराबरी कायम है। इस फेहरिस्त में पाकिस्तान पहले नंबर पर है। वहीं हमारा देश छठे स्थान पर है।
दरअसल, सोच की दिशा न सिर्फ समाज में बदलाव की संभावना बनाती, बल्कि आमजन में बदलावों को लेकर सहज स्वीकार्यता भी लाती है। विचार की यह दिशा ही व्यवहार भी तय करती है। कार्यस्थल से लेकर घर-परिवार तक, राय बनाने का यह भाव महिलाओं के प्रति अपनाए जाने वाले व्यवहार में भी झलकता है। फिर बात चाहे घरेलू हिंसा की हो या कार्यस्थल पर होने वाले शोषण और दुर्व्यवहार की। विचार ही व्यवहार में तब्दील होकर महिलाओं के प्रति असंवेदशील परिवेश बनाते हैं। हमारे यहां पूरी सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था की धुरी होने के बावजूद औरतें ही असमानता की सोच की सबसे ज्यादा शिकार बनती हैं। आज भी शादी कर घर बसाने के फैसले में बेटियों की राय को बेटों की राय के बराबर नहीं माना जाता। अच्छी-खासी पढ़ी-लिखी और काबिल बेटियों के परिवार भी देहज देने को विवश किए जाते हैं।
पक्षपाती नजरिए का ही नतीजा है कि कई घरों में महिलाओं की राय और भागीदारी के कोई मायने नहीं समझे जाते। साथ ही, महिलाओं को कामकाजी मोर्चे पर भी अपनी क्षमता और योग्यता साबित करने के लिए कई अनकही-अनचाही परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। कहना गलत न होगा कि लैंगिक असमानता की सोच के चलते महिलाओं के जीवन का हर पहलू प्रभावित होता है। महिलाओं को कमतर आंकने की यह सोच हमेशा से पूरी दुनिया में देखी गई है। यही वजह है कि स्त्रियों को संबोधित अनगिनत योजनाओं और नीतियों के बावजूद उनके जीवन में आज भी असमानता का दंश कायम है।
यह अध्ययन बताता है कि पुरुष और महिलाएं दोनों समान रूप से मतदान करते हैं, लेकिन दुनियाभर में केवल 24 प्रतिशत संसदीय सीटों पर महिलाएं चुनी गई हैं। इतना ही नहीं, वैश्विक स्तर पर 193 देशों में से सिर्फ 10 में सरकारों की मुखिया महिलाएं हैं। चिंतनीय है कि शिक्षित और कामकाजी महिलाओं के बढ़ते आंकड़ों के बावजूद कार्यस्थल पर भी भेदभाव कायम है। यूएनडीपी की रिपोर्ट में सामने आया है कि विश्वभर में समान काम के लिए समान वेतन पाने का हक आज भी महिलाओं के हिस्से नहीं आया है। एक जैसा काम करने के लिए महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है। इतना ही नहीं, महिलाओं को वरिष्ठ पदों पर पहुंचने के भी कम अवसर मिलते हैं। निसंदेह, इन हालात के लिए स्त्रियों के लिए मौजूद सोच ही जिम्मेदार है। इसके चलते काबिलियत और क्षमता के मुताबिक नहीं, बल्कि एक महिला होने के नाते उनके बारे में विचार बनाए जाते हैं।
सुरक्षा की नई चिंताएं भी
चिंतनीय यह भी है कि महिलाओं की नई भूमिकाओं के साथ उनकी सुरक्षा की नई चिंताएं भी जुड़ गई हैं। घर की चारदीवारी से निकलकर उच्च शिक्षा, नौकरी या व्यवसाय के लिए अपनी राह बना रही महिलाओं के साथ हो रही आपराधिक घटनाओं के बढ़ते आंकड़े भी इस भेदभावपूर्ण सोच का ही नतीजा हैं। सशक्त और आत्मनिर्भर बनने के बावजूद घर और बाहर उपेक्षा, अपमान और असुरक्षा की स्थितियों की अहम वजह भी सोच का न बदलना ही है। हाल ही में 'ऑनलाइन एब्यूज’ को लेकर किए गए एक अध्ययन में 95वें भारतीय महिला नेताओं के लिए किए गए ट्वीट की समीक्षा में पाया गया कि 13.8 फीसदी ट्वीट या तो आपत्तिजनक थे या फिर अपमानित करने वाले। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के इस अध्ययन के मुताबिक ऐसी अभद्रता ऑनलाइन दुनिया में किसी विषय पर महिलाओं द्वारा रखी गई राय लोगों की प्रतिक्रिया भर नहीं होती, बल्कि योजनागत रूप से उन्हें प्रताड़ित करने की सोच लिए होती है। ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं कि पूर्वाग्रह पूर्ण सोच हर मामले में स्त्रियों के लिए बड़ी बाधा बन रही है। जबकि समानता के भाव के बिना सम्मान और सहजता दोनों ही मोर्चों पर कुछ कमी-सी रहती है।
- ज्योत्सना अनूप यादव