मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ एक बार फिर दोहरी भूमिकाओं में आ गए हैं। कमलनाथ को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दायित्व सौंपा गया है। वे कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी हैं। प्रदेश में कांग्रेस में फिर से पनप रही गुटबाजी को देखते हुए ये फैसला किया गया है। हालांकि मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष की दोहरी भूमिका के चलते ही कमलनाथ सरकार गिर गई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा के कमल से दोस्ती की और अपने साथ लंबी विधायकों की फौज भी ले गए। सिंधिया की महत्वाकांक्षा के कारण नाथ सरकार गिरी और फिर से शिवराज सिंह की कमल सरकार बनी। वर्तमान में प्रदेश की राजनीति में कमलनाथ के सुपुत्र नकुलनाथ, दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह और जीतू पटवारी की बढ़ती महत्वाकांक्षा के कारण आलाकमान ने कमलनाथ को ही नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है।
दरअसल कमलनाथ मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं और अब नेता प्रतिपक्ष भी चुने गए हैं। मप्र कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष के लिए कई दावेदार थे लेकिन किसी को ये मौका नहीं दिया गया। नेता प्रतिपक्ष की रेस में पहला नाम पूर्व मंत्री और लहार विधायक डॉ. गोविंद सिंह का था। डॉ. गोविंद सिंह ग्वालियर-चंबल अंचल का नेतृत्व करते हैं और भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट से लगातार 7वीं बार के विधायक हैं। ऐसे में माना जा रहा था कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया जा सकता है। लेकिन ये बात भी बेहद गौर करने की है कि गोविंद सिंह को दिग्विजय सिंह का करीबी माना जाता है। गोविंद सिंह के अलावा पूर्व गृहमंत्री बाला बच्चन भी नेता प्रतिपक्ष बनने की रेस में थे लेकिन वो कमलनाथ के करीबी हैं। अगर दोनों में से किसी एक को भी नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी जाती तो एक बार फिर दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के समर्थकों की पर्दे के पीछे से गुटबाजी शुरू हो जाती। ऐसे में कांग्रेस में जारी गुटबाजी के बीच कमलनाथ को चुना गया ताकि पावर सेंटर्स की आशंकाओं को खत्म किया जा सके।
इधर, युवा चेहरों पर फोकस रखते हुए दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह का नाम भी नेता प्रतिपक्ष के तौर पर सामने आ रहा था। लेकिन जयवर्धन और कमलनाथ के सुपुत्र नकुलनाथ में भी प्रतियोगिता चल रही है और दोनों को ही प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री कहकर प्रचारित किया जा रहा है। 9 जुलाई को दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह का जन्मदिन था। इस दौरान राजधानी भोपाल में उन्हें मध्यप्रदेश का भावी मुख्यमंत्री बताते हुए पोस्टर लगाए गए। इस पोस्टर के बाद राजनीति शुरू हुई। इसके तुरंत बाद कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ का सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हुआ। छिंदवाड़ा सांसद नकुलनाथ वायरल वीडियो में कह रहे थे कि मैं उपचुनाव में युवाओं का नेतृत्व करूंगा। पिछले मंत्रिमंडल में हमारे मंत्री जयवर्धन सिंह, जीतू पटवारी, सचिन यादव, हनी बघेल और ओमकार मरकाम अपने-अपने क्षेत्र में मेरे साथ युवाओं का नेतृत्व करेंगे। इसी वीडियो के बाद से प्रदेश में सियासी माहौल गरमाने लगा जिसकी गर्माहट अब तक बनी हुई है।
कमलनाथ को दोहरी भूमिका सौंपने के पीछे आलाकमान की एक मंशा ये भी है कि आने वाले उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी में किसी तरह की फूट नहीं चाहती है। मध्यप्रदेश में जब कमलनाथ मुख्यमंत्री थे, तब भी वो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। उस समय सिंधिया खेमे के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे थे। दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह का खेमा भी सक्रिय था। ऐसे में कांग्रेस ने प्रदेश के लिए नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की लेकिन यहां कांग्रेस की ये गलती कमलनाथ सरकार पर भारी पड़ गई। यही कारण रहा कि 73 वर्षीय कमलनाथ को ही नेता प्रतिपक्ष भी बनाया गया जबकि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी उनके पास पहले से है। दरअसल वजह साफ है कि केंद्रीय आलाकमान फिर से स्टेट कांग्रेस में दो पावर सेंटर नहीं बनाना चाहता और न ही गुटबाजी को हवा देना चाहता है। इसका परिणाम मध्यप्रदेश में पहले ही देख चुके हैं। मप्र में फिर से कोई सिंधिया न बने इसलिए कमलनाथ को ही नेता प्रतिपक्ष का अहम पद का निर्वाह भी कराया जा रहा है। जल्द विधानसभा का सत्र शुरू होने से पहले उनके सिर पर नेता प्रतिपक्ष का सेहरा बांध दिया गया है।
कांग्रेस का फैसला जरूरी था या फिर विकल्प?
मध्यप्रदेश में कमलनाथ के पास दोहरी जिम्मेदारी है। वो मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं और अब नेता प्रतिपक्ष भी चुने गए हैं। कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष के लिए कई दावेदार थे लेकिन मौका कमलनाथ को दिया गया है। नेता प्रतिपक्ष की रेस में पहला नाम पूर्व मंत्री डॉ. गोविंद सिंह का था। डॉ. गोविंद सिंह ग्वालियर-चंबल अंचल का नेतृत्व करते हैं। भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट से लगातार 7वीं बार विधायक हैं। ऐसे में माना जा रहा था कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया जा सकता है। गोविंद सिंह को दिग्विजय सिंह का करीबी माना जाता है। लेकिन कांग्रेस में जारी गुटबाजी के बीच कमलनाथ को चुना गया। दूसरी तरफ गोविंद सिंह के अलावा पूर्व गृहमंत्री बाला बच्चन भी नेता प्रतिपक्ष बनने की रेस में थे लेकिन वो कमलनाथ के करीबी थे। इस कारण उन्हें भी नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया गया। दरअसल, आने वाले उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी में किसी तरह की फूट नहीं चाहती है। ऐसे में पार्टी ने 73 वर्षीय कमलनाथ पर भरोसा किया। मध्यप्रदेश में जब कमलनाथ मुख्यमंत्री थे तब भी वो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। उस समय सिंधिया खेमे के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे थे, दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह का खेमा भी सक्रिय था ऐसे में कांग्रेस ने प्रदेश के लिए नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कमलनाथ को नेता प्रतिपक्ष इसलिए बनाया गया है कि पार्टी में खेमेबाजी ना हो।
- अरविंद नारद