20-Oct-2020 12:00 AM
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जिस टनल का सपना पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देखा, अटल बिहारी वाजपेयी ने मंजूरी दी, सोनिया गांधी ने आधारशिला रखी उसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 अक्टूबर को उद्घाटन किया। वक्त कुछ लंबा खिंचा; लेकिन लद्दाख के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अटल टनल अब हिमाचल के रोहतांग में बनकर तैयार है। चीन के साथ सैन्य तनाव के बीच इस सुरंग का बनकर तैयार होना भारतीय सेना के लिए एक सुखद खबर है। भले यह सुरंग नागरिक इस्तेमाल के लिए भी है, इमरजेंसी में रसद लेह-लद्दाख ले जाने के लिए भारतीय सुरक्षा बलों को अब एक कम दूरी वाला मार्ग मिल गया है। यह इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है कि बर्फबारी में यह रास्ता पहले महीनों बंद रहता था, लेकिन अब सालभर खुला रहेगा। जाहिर है कि आम जनता के लिए भी जिंदगी यहां सुगम होने जा रही है।
पिछले साल के आखिर में प्रधानमंत्री मोदी ने अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती के अवसर पर घोषणा की थी कि इस सुरंग का नाम अटल सुरंग होगा। करीब 9.02 किलोमीटर लंबी 3000 मीटर की ऊंचाई पर बनी यह सुरंग दुनिया की सबसे लंबी सुरंग है। प्रधानमंत्री मोदी ने अब इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया। सुरंग बनने से सभी मौसम में लाहुल स्पीति घाटी के सुदूर इलाकों में संपर्क सुगम हो गया। यही नहीं इस सुरंग के शुरू होने से मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो गई है। यह आम जनता ही नहीं सेना के लिए भी बहुत लाभकारी है।
रोहतांग दर्रे के नीचे रणनीतिक रूप से अहम एक सुरंग बनाने की कल्पना इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते ही कर ली गई थी। इसे मंजूरी मिली सन् 2000 में, जब अटल बिहारी देश के प्रधानमंत्री थे। वाजपेयी ने सुंरग के दक्षिणी हिस्से को जोड़ने वाली सड़क की आधारशिला 26 मई, 2002 को रखी। इसके बाद जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार बनी तो 2010 में सुरंग की भी आधारशिला रख दी गई। यह आधारशिला यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रखी, जिसके बाद सुरंग का निर्माण शुरू हो गया। तब इस सुरंग की अनुमानित लागत राशि 1500 करोड़ रुपए थी और इसे 2015 तक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि बीच में कई तरह की अड़चनें आने से इसका लक्ष्य आगे खिसक गया। अड़चन का सबसे बड़ा कारण था, सेरी नाले में रिसाव होना। इसके चलते इंजीनियरों ने यह लक्ष्य पांच साल आगे बढ़ा दिया। बनते-बनते इसकी लागत भी बढ़कर करीब 3500 करोड़ रुपए पहुंच गई।
यही नहीं, शुरू में इसकी लंबाई भी 8.8 किलोमीटर थी, जो अब 9.02 किलोमीटर हो गई है। इसका कारण सुरंग के दोनों छोर पर एवलांच विरोधी सुरंग बनना है। इसके कारण सुरंग की लंबाई 220 मीटर बढ़ गई है। अर्थात् पहले यह 8800 मीटर लंबी थी, जबकि अब यह 9020 मीटर लंबी हो गई है। यह क्षेत्र सड़क और पुल के लिहाज से सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के तहत है। हाल में बीआरओ के बड़े अधिकारी सुरंग के निर्माण के तमाम पहलुओं का जायजा ले चुके हैं। बीआरओ के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह कहते हैं कि केंद्र सरकार की मदद से बीआरओ ने समय-समय पर जरूरी सामान उपलब्ध कराया है। सभी के सहयोग से कार्य समय पर पूरा हुआ है। देश के लिए यह सुरंग एक बहुत महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है। निश्चित ही अटल सुरंग के निर्माण के रूप में बीआरओ के नाम एक ओर बड़ी उपलब्धि जुड़ने जा रही है। बीआरओ के खाते में इतनी उपलब्धियां हैं, जिनकी गिनती करना भी मुश्किल है। बीआरओ के रोहतांग सुरंग परियोजना के चीफ इंजीनियर केपी पुरशोथमन ने बताया कि बीआरओ ने अधिकतर कार्य पूरा करने में सफलता पाई है। सुरंग के नॉर्थ पोर्टल सहित दारचा में भव्य पुल बनकर तैयार है।
पूर्वी पीर पंजाल की पर्वत शृंखला में बनी 9.02 किलोमीटर लंबी यह सुरंग लेह-मनाली राजमार्ग पर है। यह करीब 10.5 मीटर चौड़ी और 5.52 मीटर ऊंची है। सीमा सड़क संगठन ने साल 2009 में शापूरजी पोलोनजी समूह की कंपनी एफकॉन और ऑस्ट्रिया की कंपनी स्टारबैग के संयुक्त उपक्रम को इस टनल के निर्माण का ठेका दिया। सुरंग का निर्माण किस कदर बड़े पैमाने पर था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एफकॉन ने इस सुरंग के निर्माण में करीब 150 इंजीनियरों और एक हजार श्रमिकों को लगाया। एफकॉन के हाइड्रो एंड अंडरग्राउंड बिजनेस निदेशक सतीश परेटकर ने कहा कि यह सुरंग घोड़े के नाल के आकार की है और इसने भारत के इंजीनियरिंग इतिहास में कई कीर्तिमान रचे हैं। इसमें बहुत से ऐसे काम हैं, जो सुरंग के लिहाज से देश में पहली बार हुए हैं।
बता दें अटल सुरंग में डबल लेन सड़क होगी। समुद्र तल से करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी दुनिया की सबसे लंबी वाहन योग्य सुरंग है। यह देश की पहली ऐसी सुरंग होगी, जिसमें मुख्य सुरंग के भीतर ही बचाव सुरंग भी बनाई गई है। इससे महत्व को समझा जा सकता है। परेटकर के मुताबिक, यह पहली ऐसी सुरंग है, जिसमें रोवा फ्लायर टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है।
अपनी तरह की अनोखी सुरंग
यह सुरंग कई मायनों में अनोखी है। इसमें प्रत्येक 150 मीटर की दूरी पर टेलीफोन लगे हैं। प्रत्येक 60 मीटर की दूरी पर अग्निरोधी यंत्र हैं जबकि हर 250 मीटर की दूरी पर ऑटोमैटिक इंसिडेंट डिटेक्टिव सिस्टम के साथ सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। हर एक किलोमीटर के बाद हवा की गुणवत्ता बताने वाले मॉनिटर लगाए हैं तो हर 500 मीटर पर आपातकालीन निकास द्वार हैं। प्रत्येक 2.2 किलोमीटर पर गुफानुमा मोड़ हैं, ताकि बीच में ही आपको वापस मुड़ना हो तो ऐसा कर सकते हैं। इसके अलावा मनाली की तरफ से सुरंग तक पहुंचने के लिए स्नो गैलरी बनी है। सुरंग शुरू होने से पूरा साल मनाली को कनेक्टिविटी मिलती रहेगी। सुरंग के भीतर इमरजेंसी एग्जिट का निर्माण भी किया गया है। सुरंग के भीतर अधिकतम 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार हो सकती है। इसमें से हर रोज करीब 1,500 ट्रक और 3,000 कारें गुजर सकेंगी।
- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया