मप्र का उपचुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए असली इम्तिहान है। सिंधिया के साथ जिन 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा है, उनकी जीत-हार ही सिंधिया का भविष्य तय करेगी। अगर सिंधिया सभी को जिता देते हैं तो वे भाजपा में मोदी और शाह के बाद सर्वमान्य नेता हो जाएंगे। वहीं हार होती है तो उन्हें हाशिए पर धकेल दिया जाएगा। इसलिए सिंधिया पूरे प्राण प्रण से चुनावी मैदान में डटे हुए हैं।
मप्र में उपचुनावों को लेकर बिहार चुनाव जैसी ही गहमागहमी बनी हुई है। ये बात अलग है कि चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव की तरह मध्यप्रदेश में उपचुनावों के लिए अभी तक कोई गाइडलाइन नहीं जारी की है। मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन में भूमिका निभाने वाले कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफे सहित 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने का इंतजार है। ये उपचुनाव इतने अहम हैं कि इनके नतीजों पर ही मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार और भाजपा में ज्योतिरादित्य सिंधिया का भविष्य टिका हुआ है। नतीजे मनमाफिक न आने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया कोई बहानेबाजी न कर सकें, इसलिए भाजपा नेतृत्व उनकी छोटी-छोटी बातों का भी ख्याल रखता आया है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा में इम्तिहान तो कायदे से अभी शुरू भी नहीं हुआ है। अभी तो सिर्फ तैयारी चल रही है। तैयारी तो जोरशोर से चल रही है, लेकिन उसमें लोचा नजर आने लगा है। नतीजे तो इम्तिहान के बाद ही आएंगे। लिहाजा भाजपा को पहले से ही रणनीति बदलनी पड़ी है। मध्यप्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही होने वाले हैं और इनमें से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल इलाके की हैं। ग्वालियर-चंबल अंचल सिंधिया परिवार का बरसों पुराना गढ़ है।
जिन इलाकों में उपचुनाव होना है वहां से भाजपा को फीडबैक मिल रहा है कि पार्टी कार्यकर्ता ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के बीच खुद को काफी असहज महसूस कर रहे हैं और यही वजह है कि सिंधिया को पीछे कर पार्टी ने मोर्चे पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भेजा है और सिंधिया को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ चुनाव प्रचार से जोड़ दिया है। सवाल ये है कि क्या सिंधिया खुद भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच एडजस्ट नहीं कर पा रहे हैं या फिर भाजपा कार्यकर्ता सिंधिया को नहीं पचा पा रहे हैं।
भाजपा ने मध्यप्रदेश उपचुनावों को लेकर बड़ा बदलाव ये किया है कि अब ज्योतिरादित्य सिंधिया सिर्फ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ ही चुनावी क्षेत्रों का दौरा करेंगे। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सिंधिया और शिवराज के ये दौरे भी तभी हो पाएंगे जब केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच माकूल माहौल तैयार कर चुके होंगे। भाजपा की डिजिटल रैली में अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की दिल खोलकर तारीफ की थी और तारीफों के मामले में तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी होड़ लगा ली थी, लेकिन ये सब सिर्फ ऊपर की बातें साबित हो रही हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर जमीनी कार्यकर्ताओं की शंकाओं का समाधान नहीं हो पा रहा था।
भाजपा को लगातार फीडबैक मिल रहा था कि पार्टी कार्यकर्ताओं का जब भी ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के साथ आमना सामना हो रहा है तो वे काफी संकोच महसूस कर रहे हैं। हो भी क्यों न जो कार्यकर्ता बरसों से कांग्रेस कार्यकर्ताओं के खिलाफ नारेबाजी और चुनाव मुहिम चलाते आ रहे हों, उनके लिए ये सब कितना मुश्किल हो सकता है वे ही समझ सकते हैं। ऐसी ही मुश्किलें 2015 में बिहार चुनाव के दौरान जेडीयू और आरजेडी कार्यकर्ताओं को हुई थी और 2019 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा कार्यकर्ताओं की भी। सच तो ये है कि जहां कहीं भी ऐसे बेमेल गठबंधन होते हैं या विरोधी दलों के नेता पाला बदलते हैं, कार्यकर्ताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होती है। अक्सर यही चुनौतियां भारी भी पड़ती हैं और चीजें कभी वो शक्ल नहीं ले पातीं जैसी उम्मीद होती है। फिलहाल मध्यप्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा ही हो रहा है, जाहिर है कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वाले कार्यकर्ताओं का भी यही हाल हो रहा होगा।
अगस्त, 2020 में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश का तूफानी दौरा किया था। ग्वालियर-चंबल से लेकर इंदौर तक जगह-जगह वो सीनियर भाजपा नेताओं से लेकर भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं से भी मिले, लेकिन लगता है वो उनके मन की बात नहीं पढ़ पाए और उसके हिसाब से उनका डर भी नहीं खत्म कर पाए। हाल ही में भाजपा के ही कई नेताओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी में आ जाने के बाद अपना हाल कश्मीरी पंडितों जैसा बताया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से तो शिवराज सिंह चौहान को भी ऐसे ताने सुनने को मिल रहे हैं कि कुर्सी के लालच में वो समझौता कर चुके हैं। अब दूसरों को क्या पता कि शिवराज सिंह चौहान कैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया के गले में हाथ डाल कर मुस्कुराते हैं। ये सिंधिया ही तो हैं जिनकी जिद के चलते वो मुख्यमंत्री होकर भी अपने कैबिनेट में चार से ज्यादा अपने मन के मंत्री तक नहीं बना पाए। वैसे शिवराज सिंह ऐसे अकेले नेता नहीं रहे बल्कि नरोत्तम मिश्रा से लेकर वीडी शर्मा और नरेंद्र सिंह तोमर तक सभी के लिए हाल एक जैसा ही रहा। मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने तो बोल भी दिया कि उनकी सिफारिशों को किसी ने तवज्जो नहीं दी। सिंधिया की हाल की नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ अकेले हुई मुलाकात ने तो क्षेत्रीय भाजपा नेताओं का डर और भी बढ़ा दिया था। बहरहाल, अब तय ये हुआ है कि जहां कहीं भी ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव प्रचार के लिए जाएंगे भाजपा कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाने के लिए वो शिवराज सिंह चौहान के साथ ही जाएंगे। दोनों स्टार प्रचारकों के इलाके में पहुंचने से पहले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ-साथ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा भी जगह-जगह कार्यकर्ताओं के बीच जाकर उनसे बातचीत कर रहे हैं और उनके मन में जो सवाल हैं, दूर करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
नरेंद्र सिंह तोमर मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं। 2008 और 2013 का विधानसभा चुनाव भाजपा नरेंद्र सिंह तोमर की ही अगुवाई में लड़ी थी। माना जाता है कि नरेंद्र सिंह तोमर का जमीनी नेटवर्क काफी तगड़ा है और बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ वो सीधे कनेक्ट रहते हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के जरिए भाजपा में आए वीडी शर्मा को संघ में भी भरोसेमंद माना जाता है। भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचकर नरेंद्र सिंह तोमर समझाते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अब भाजपा के परिवार का ही हिस्सा हैं और वे लोग भी जनता के बीच सिर उठाकर तभी चल सकेंगे जब उनको सेवा का मौका मिलेगा और ये मौका भी तभी मिलेगा जब पार्टी की सरकार होगी।
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में मंत्रिमंडल गठन से लेकर मंत्रियों के विभागों के बंटवारे तक में भाजपा नेतृत्व ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की ज्यादातर बातें मान ली और यही वजह है कि कहा जाने लगा था कि शिवराज सिंह चौहान तो सिर्फ मुख्यमंत्री हैं, मंत्रिमंडल तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के हिसाब से गठित हुआ है। बड़े जिगरे के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को हाथोंहाथ लेने वाली भाजपा के लिए मुश्किल ये हो रही है कि पार्टी के कई नेता अपना हाल कश्मीरी पंडितों जैसा बता रहे हैं -और ऊपर से नागपुर दरबार में अकेले हाजिरी लगाकर ग्वालियर के 'महाराज’ ने अलग ही हड़कंप मचा रखा है।
हाल फिलहाल सिंधिया मध्यप्रदेश में उपचुनावों को लेकर खासे एक्टिव देखे गए हैं। ग्वालियर के साथ-साथ इंदौर दौरे में भी सुमित्रा महाजन सहित तमाम भाजपा नेताओं से वो मिले हैं। साथ ही, सिंधिया समर्थकों का दावा है कि ग्वालियर-चंबल संभाग में भाजपा के सदस्यता अभियान में उनकी वजह से हजारों की तादाद में कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपा से जुड़े हैं। असल में राज्य की 27 में से 16 विधानसभा सीटें इसी इलाके से आती हैं जहां उपचुनाव होने हैं और उपचुनावों के नतीजों पर ही ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा में भविष्य तय होना है। चूंकि भाजपा में तरक्की का रास्ता नागपुर से ही तय होता है, इसलिए संघ मुख्यालय में ज्योतिरादित्य सिंधिया की हाजिरी उनको दी जाने वाली नई जिम्मेदारियों के लिए ग्रीन सिग्नल भी हो सकता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक उनके मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं और इस मुलाकात के बाद ये संभावना बढ़ी हुई लगने लगी है।
क्या विरोधी सिंधिया का करेंगे मन से समर्थन
असल में ज्योतिरादित्य सिंधिया जितने विधायकों के साथ भाजपा में आए हैं सभी को उन्हीं सीटों से टिकट दिया जाना है जहां से वे भाजपा उम्मीदवारों को हराकर चुनाव जीते थे। फिर तो भाजपा नेताओं को टिकट मिलने से रहा। बात सिर्फ टिकट न मिलने तक होती तो भी दर्द सहन हो जाता, ऊपर से आदेश ये मिल रहा है कि जिन कांग्रेस नेताओं से वे चुनाव हार गए थे अब उनके सपोर्ट में चुनाव प्रचार भी करना है। जयभान सिंह पवैया भी मध्यप्रदेश के उन भाजपा नेताओं में शुमार रहे हैं जो हमेशा ही सिंधिया घराने की राजनीति के आलोचक रहे हैं। जयभान सिंह पवैया के विरोध का जो रवैया माधवराव सिंधिया के जमाने में रहा वही अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के दौर में भी कायम है और ये बात खुले दिल से स्वीकार करने में भी उनको कोई गुरेज नहीं है। वैसे भी जयभान सिंह पवैया सिंधिया सीनियर और जूनियर दोनों ही के खिलाफ लोकसभा चुनाव के मैदान में भी दो-दो हाथ कर चुके हैं। पवैया के सामने सबसे बड़ी मुश्किल भाजपा आलाकमान का आदेश है, ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए प्रद्युम्न सिंह तोमर के लिए चुनाव प्रचार करना। ये मुश्किल उन सभी भाजपा नेताओं के सामने है जो उन सीटों पर 2018 में चुनाव हार गए थे जहां अब उपचुनाव होने हैं।
नरोत्तम क्यों रहे नदारद
नरोत्तम मिश्रा भी नरेंद्र सिंह तोमर की तरह मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में माने जाते हैं। फिलहाल नरोत्तम मिश्रा भाजपा की शिवराज सिंह सरकार में गृहमंत्री हैं। शिवराज सिंह की सरकार बनवाने में नरोत्तम मिश्रा की भी बड़ी भूमिका रही है। कांग्रेस के बागी विधायकों को सबसे पहले नरोत्तम मिश्रा के ही संपर्क में देखा गया था। ग्वालियर में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा नेता के तौर पर पेश किया जा रहा था तो शिवराज सिंह चौहान सहित सारे नेताओं की मौजूदगी के बावजूद लोगों को नरोत्तम मिश्रा की कमी खल रही थी। बाद में भी जब सिंधिया को पीछे कर तोमर और वीडी शर्मा को भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच समझाने के लिए भेजा गया तो भी नरोत्तम मिश्रा को सीन से गायब पाया गया। क्या नरोत्तम मिश्रा की ग्वालियर-चंबल इलाके से गैर-मौजूदगी किसी तरीके से ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी से जुड़ी हुई हो सकती है? ज्योतिरादित्य सिंधिया का ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कांग्रेस नेता के रूप में दबदबा रहा है तो नरेंद्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्रा का भाजपा नेताओं के तौर पर। ऐसे में नरोत्तम मिश्रा का मोर्चे से दूर होना एक स्वाभाविक सा सवाल और चर्चा का विषय बन रहा है। नरोत्तम मिश्रा से जुड़ी चर्चाओं को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा सीधे-सीधे खारिज करते हैं। कहते हैं, पार्टी जिसे जहां का जो काम सौंपती है, वो उसे वहां पहुंचकर पूरा करता है। नरोत्तम मिश्रा को भी सफाई देनी पड़ी है। नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि जिस कार्यक्रम को लेकर सवाल उठ रहा है उसमें भी वो हजारों कार्यकर्ताओं के बीच मौजूद थे और अब भी जहां पार्टी भेज रही है वहां का काम कर रहा हूं।
- कुमार राजेन्द्र