16-Sep-2024 12:00 AM
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सुलेमान बाहर, जैन-राजौरा-मिश्रा दौड़ में
मुख्य सचिव वीरा राणा का छह माह का एक्सटेंशन इसी महीने की 30 तारीख को खत्म हो जाएगा। सरकार ने उनका कार्यकाल बढ़ाने के लिए केंद्र को प्रस्ताव नहीं भेजा है। ऐसे में प्रदेश के अगले मुख्य सचिव के लिए कयासों का दौर शुरू हो गया है। इस बीच नए मुख्य सचिव के लिए नाम सामने आने के कयासों के बीच मोहन यादव सरकार ने 1989 बैच के आईएएस अधिकारी अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान को मंत्रालय के बाहर पदस्थ कर दिया है। अब वे कर्मचारी चयन मंडल के अध्यक्ष के रूप में काम करेंगे। हालांकि मोहम्मद सुलेमान मुख्य सचिव के लिए डिजर्व करते थे। लेकिन सरकार ने उन्हें मंत्रालय से बाहर कर अनुराग जैन, राजेश राजौरा और एसएन मिश्रा का रास्ता साफ कर दिया है।
वर्तमान स्थिति में मुख्य सचिव की दौड़ में सबसे आगे केंद्र में पदस्थ अनुराग जैन और मुख्यमंत्री कार्यालय के अपर मुख्य सचिव राजेश राजौरा का नाम है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार शायद ही अनुराग जैन को मप्र भेजे। ऐसे में राजौरा और एसएन मिश्रा मुख्य सचिव के लिए सबसे बड़े दावेदार हैं। वैसे तो अन्य दावेदारों में विनोद कुमार, जेएन कंसोटिया हैं। सोशल मीडिया के हवाले से एसएन मिश्रा का नाम भी लिया जा रहा है, परंतु श्री मिश्रा 30 जनवरी 2025 को रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में सरकार इतने अल्प समय के लिए मुख्य सचिव बनाना पसंद करेगी।
जैन गुड बुक में
मप्र में अगले मुख्य सचिव के लिए कवायद शुरू हो गई है। सूत्रों के अनुसार अनुराग जैन और राजेश राजौरा का नाम केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय दिल्ली भेज दिया गया है। इनमें अनुराग जैन की बात की जाए तो वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुड बुक में भी शामिल हैं। वहीं अपनी तेज तर्रार कार्यप्रणाली के कारण वे अच्छे अफसरों में गिने जाते हैं। अगर उन्हें मप्र का अगला मुख्य सचिव बनाया जाता है तो मुख्यमंत्री सचिवालय पर भी आंच नहीं आएगी, परंतु रोडे जरूर आड़े आएंगे, क्योंकि कमलनाथ की सरकार में श्री जैन अपर मुख्य सचिव थे। जब किसानों के ऋण माफी की बात आई थी, तो उन्होंने वित्तीय स्थिति का सहारा लेकर मना कर दिया था। जबकि किसानों की ऋण माफी में 35 हजार करोड़ खर्च होना था। सरकार चाहती तो 20 हजार करोड़ लोन ले लेती, परंतु श्री जैन ने अपना पच्चर मार दिया था। जबकि उसके बाद अभी तक सरकार डेढ़ लाख करोड़ का लोन ले चुकी है। अगर अनुराग जैन को केंद्र से थोपा जाता है तो वह केंद्र के खासमखास होंगे। ऐसे में सरकार को अपनी खुफियागिरी की भी चिंता रहेगी।
22-23 को तय हो जाएगा नाम
प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि प्रदेश का अगला मुख्य सचिव कौन होगा, यह तस्वीर 22 या 23 सितंबर को साफ हो जाएगी। वर्तमान मुख्य सचिव वीरा राणा की चिट्ठी तो दिल्ली नहीं जाएगी। उन्हें राज्य निर्वाचन आयोग में पुनर्स्थापित किया जा सकता है। इसी के साथ प्रदेश को नया मुख्य सचिव भी मिल जाएगा।
मुख्य सचिव के लिए राजौरा पहली पसंद
मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि डॉ. राजौरा को अगले दो महीने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ किया गया है, ताकि वे सरकार की प्राथमिकताओं से जुड़े फैसलों को लेकर सभी विभागों से समन्वय बना सकें। सूत्र ये भी कहते हैं कि छह महीने में डॉ. राजौरा का मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के साथ प्रशासनिक तालमेल बेहतर बना है। मुख्यमंत्री ने जब अपर मुख्य सचिवों के बीच संभागों का बंटवारा किया था, तब डॉ. राजौरा को उज्जैन संभाग की जिम्मेदारी सौंपी थी। उज्जैन में 2028 में सिंहस्थ का आयोजन होना है। जिसकी तैयारी सरकार ने शुरू कर दी है। 2004 में हुए सिंहस्थ के दौरान डॉ. राजौरा उज्जैन कलेक्टर थे। बता दें कि मुख्य सचिव के रिटायरमेंट से पहले नए मुख्य सचिव को मंत्रालय में ओएसडी बनाया जाता रहा है।
कमिश्नर की मनमानी से भूलभुलैया में मंत्रीजी...
प्रदेश सरकार के एक मंत्री दिनों अजब सी भूलभुलैया में पड़े हुए हैं। मंत्रीजी के पास प्रदेश की कुंजी और मालदार विभाग की जिम्मेदारी है। लेकिन मंत्रीजी के आसपास अफसरों का एक ऐसा कॉकस बन गया है कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि करें तो क्या करें। मंत्रीजी के पास प्रदेश के कमाऊ विभागों में से एक विभाग भी है। यह विभाग अपनी भर्राशाही, लापरवाही, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के कारण हमेशा चर्चा में रहता है। इस कारण मंत्रीजी अपने अधिकारियों के कारण इस कदर चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं कि उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या करें। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री सचिवालय उनके ओएसडी से नाराज हैं। वहीं मंत्रीजी अपने कमाऊ विभाग के कमिश्नर से नाराज हैं। सूत्र बताते हैं कि कमिश्नर मंत्रीजी को तनिक भी भाव नहीं दे रहे। आलम यह है कि विभाग में वे अपनी मनमानी कर रहे हैं। कमिश्नर की मनमानी से मंत्रीजी इस कदर तंग आ गए हैं कि उन्होंने प्रमुख सचिव से ताल ठोक कर कह दिया है कि अगर तबादले का कोई भी प्रस्ताव आता है तो उसे मना कर देना। लेकिन मंत्रीजी शायद यह भूल गए हैं कि तबादले का प्रशासनिक अनुमोदन उन्हीं को करना होता है। दरअसल, मंत्रीजी के विभाग के कमिश्नर तरह-तरह से पैसा कमाने की जुगत में लगे हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि चुनाव से पहले उन्होंने जो तबादले किए थे, उन तबादलों को फिर से हेरफेर रहे हैं। इसके लिए वे जिलों में पदस्थ उपायुक्त, सहायक उपायुक्त और उपनिरीक्षकों को बुलाकर उनकी पसंद की जगह भेजने की जुगत में लगे हुए हैं। इसके लिए वे उन अफसरों से मोटी कमाई कर रहे हैं। इससे मंत्री तो हैरान-परेशान हैं ही, लेकिन अब यह बात मुख्यमंत्री तक पहुंच गई है। बताया जाता है कि कमिश्नर की मनमानी से पहले के मंत्री भी परेशान और नाराज थे। वर्तमान मंत्री तो इस कदर नाराज हैं कि उन्होंने सरकार से साफ-साफ शब्दों में कह दिया है कि इन्हें यहां से हटाओ। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री मंत्री की बात को कितनी गंभीरता से लेते हैं और कमिश्नर के खिलाफ क्या कार्रवाई करते हैं। बताया जाता है कि कमिश्नर नियम-कायदों को ताक पर रखकर विभाग में अपनी मनमानी कर रहे हैं, इससे ठेकेदार भी परेशान हैं।
मंत्रीजी के तीन बंदर
अभी तक आप लोगों ने गांधीजी के तीन बंदरों के बारे में सुना और पढ़ा है, लेकिन अब हम यहां आपको मप्र सरकार के एक मंत्रीजी के तीन बंदरों (मंत्री स्टाफ) से अवगत कराते हैं। गांधी जी के बंदर जहां बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो का संदेश देते हैं, वहीं मंत्रीजी के तीनों बंदर के अंदर बुराईयों का पिटारा भरा हुआ है। ये तीनों मंत्रीजी के स्टाफ में पदस्थ हैं। मंत्री पदस्थापना के रसूख में ये तीनों किसी को कुछ नहीं समझ रहे हैं। यही नहीं ये आपस में भी एक-दूसरे को आंख दिखाने से बाज नहीं आते हैं। इनमें से एक महाशय मंत्री प्रभार में कार्यपालन यंत्री का काम देख रहे हैं। वे लोगों को चमकाकर मंत्री से मिलने बंगले पर बुला रहे हैं। वे मंत्रीजी की आड़ में उन लोगों से लक्ष्मीजी की उगाही कर रहे हैं। एक महाशय शिक्षाविद् हैं और अभी तक जहां-जहां मंत्री पदस्थापना में रहे हैं, वहां-वहां बंटाधार किया है। उनका मूल काम शिक्षा देने का है, पर वे अधिकतर समय मंत्रियों के यहां ही अटैच रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि माल पीटने में उनका कोई सानी नहीं है। यही नहीं उन्होंने मंत्री को भी विश्वास दिला दिया है कि उनके रहते उन पर लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। तीसरे बाबू हैं। ये भी उपरोक्त दोनों से कम नहीं हैं। ये दोनों का काम देखकर अपना काम दिखा देते हैं। इन तीनों से मंत्री के विभाग के अन्य अधिकारी-कर्मचारी परेशान हैं।
असली भारत की पहचान
अभी हाल ही में सरकार ने 2020, 2021 और 2022 बैच के आईएएस अधिकारियों की पदस्थापना की है। इन सभी की पदस्थापना ग्रामीण क्षेत्रों में की गई है। बताया जाता है कि इसके पीछे मुख्यमंत्री की मंशा है कि नवागत अधिकारी असली भारत को पहचानें। इसलिए इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थ किया गया है। दरअसल, मुख्यमंत्री नवागत अधिकारियों को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे सबसे पहले ग्रामीण भारत को अच्छी तरह से समझें। अगर उन्होंने ग्रामीण भारत और वहां की समस्याओं का ठीक ढंग से अध्ययन और परीक्षण कर लिया तो सरकार को योजनाएं-परियोजनाएं बनाने में परेशानी नहीं होगी। सूत्र बताते हैं कि अफसरों को ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थ करने के बाद मुख्यमंत्री ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि कोई भी मेरे पास ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए न आए।
काम कर रहे, भुगतान नहीं
जल विकास निगम की योजनाओं और परियोजनाओं को साकार करने वाले ठेकेदार इन दिनों परेशान हैं। परेशानी की वजह यह है कि उनसे काम तो खूब लिया जा रहा है, लेकिन भुगतान नहीं किया जा रहा है। ठेकेदार अपने काम का भुगतान पाने के लिए चक्कर पर चक्कर लगा रहे हैं। ठेकेदारों की परेशानी और अधिकारियों की भर्राशाही की खबर मुख्यमंत्री सचिवालय तक पहुंच गई है। जब इस मामले की पड़ताल की गई तो चौंकाने वाली असलियत सामने आई। दरअसल, निगम में फंड की कमी नहीं है। ठेकेदारों का भुगतान कमीशनखोरी के चक्कर में नहीं हो रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री सचिवालय में बात पहुंचने के बाद ठेकेदारों को उम्मीद है कि उनकी राह में खड़ी बाधा जल्द खत्म हो सकती है और उनका भुगतान जरूर हो जाएगा।
अच्छी पोस्टिंग की तलाश
प्रदेश में इस समय दो आईपीएस अधिकारी चर्चा में हैं। इसकी वजह यह है कि इन दनों अफसरों की चिंता खुद पीएचक्यू कर रहा है। ये दोनों अफसरों एक ही संभाग में पुलिस की दो बड़ी कुर्सियों पर पदस्थ हैं। ये जिस संभाग में पदस्थ हैं, वह कभी डकैतों के कारण कुख्यात रहा है। अब ये दोनों अफसर यहां की जगह दूसरी जगह पदस्थापना चाह रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी मंशा जाहिर कर दी है। ये दोनों आईपीएस अधिकारी स्वजातीय हैं। इसलिए इन दोनों में तो अच्छी खासी पट रही है। साथ ही इन दोनों की चिंता उच्च स्तर पर की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि दोनों ने अपनी नई पदस्थापना की मंशा जाहिर की तो खुद पीएचक्यू ने उनके लिए अच्छी पोस्टिंग की तलाश शुरू कर दी है। बताया जाता है कि इसके लिए उनकी जाति की बड़ी भूमिका है। अब देखना है, जाति का गणित उन्हें किस कुर्सी पर बैठाता है।
दो अफसरों में पावर की जंग
प्रदेश के कमाऊ विभागों में से एक परिवहन विभाग में इन दिनों दो अफसरों के बीच पावर की लड़ाई छिड़ी हुई है। एक अफसर कमिश्नर हैं तो दूसरे एडिशनल कमिश्नर। दोनों एडीजी स्तर के अधिकारी हैं, इसलिए ये एक-दूसरे को भाव नहीं देते हैं। सूत्रों का कहना है कि इनकी लड़ाई की मूल वजह है पावर की कमी और उपयोग। दरअसल, दोनों अफसर विभाग में अपनी-अपनी चलाना चाहते हैं। इस कारण आए दिन अधिकारों को लेकर उनके बीच टकराव की स्थिति बन जाती है। एक तो प्रदेश का सबसे कमाऊ विभाग होने के कारण हमेशा इस विभाग के अधिकारी शासन-प्रशासन की नजरों पर चढ़े रहते हैं। ऐसे में इन दोनों अधिकारियों के बीच पावर की लड़ाई इस मुकाम पर पहुंच गई है कि एडिशनल कमिश्नर विभाग से नौ-दो, ग्यारह होने की फिराक में हैं। सूत्र बताते हैं कि इसके लिए साहब ने नए अड्डे की तलाश शुरू कर दी है। अब देखना यह है कि दो वरिष्ठ अधिकारियों में छिड़ी वर्चस्व की यह जंग किस स्तर पर जाकर थमती है। उधर, दो वरिष्ठ अफसरों के बीच चल रहे शीतयुद्ध से विभाग के अन्य अधिकारी भी परेशान हैं।
- राजेंद्र आगाल