सज गया चुनावी रण
07-Oct-2020 12:00 AM 3782

 

बिहार के चुनावी अखाड़े में पहलवान अभी अपना पाला दुरुस्त करने में ही उलझे हैं कि चुनाव आयोग की सीटी बज गई। अब यह तय हो गया है कि 10 नवंबर को नई सरकार की सूरत सामने आ जाएगी। अब वह स्पष्ट होगी या धुंधली, यह समय ही बताएगा। अचानक तारीखों की घोषणा से बहुतों को संभलने का मौका भी नहीं मिल सका है, क्योंकि एनडीए और महागठबंधन में सीटों को लेकर अभी तक दलों के जुड़ने-टूटने का सिलसिला अभी जारी है। टीमें बन पातीं, इससे पहले ही यह घोषणा हो गई। अब इस घोषणा के बाद तेजी से समीकरण बदलने की उम्मीद है।

बिहार में चुनाव को लेकर तरह-तरह की अटकलें जारी थीं। एक कोने से यह हवा भी उड़ रही थी कि चुनाव टल भी सकते हैं। लेकिन जब किसान बिल के विरोध में विपक्षी दल अपने आंदोलन को धार देने में जुटे थे, उसी समय चुनाव आयोग ने तीन चरणों में चुनाव की घोषणा कर दी। चूंकि यह चुनाव कोरोनाकाल में हो रहा है, इसलिए तमाम नियम-कायदे व दिशा-निर्देश भी तय कर दिए गए हैं। द्वारे-द्वारे जाने व सभाओं को लेकर पुरानी प्रेक्टिस काम नहीं आने वाली। वर्चुअल रैली ही सहारा है। हालांकि सभी दलों ने इसको लेकर अपनी तैयारी कर रखी है। छोटे-छोटे वाट्सएप ग्रुप के जरिए मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने में लगे हैं, लेकिन इसकी सफलता को लेकर सभी में संशय बरकरार है।

बहरहाल चुनाव की घोषणा होते ही सभी ने इसका स्वागत किया है कि वे लड़ाई को तैयार हैं। आज से तीन महीने पहले यह समझा जा रहा था कि बिहार में लड़ाई आमने-सामने की होगी। एक तरफ एनडीए तो दूसरी तरफ महागठबंधन में अधिकांश दल लामबंद थे। एनडीए में लोजपा के ही थोड़े-बहुत नीतीश विरोधी स्वर उभर रहे थे, लेकिन उसे भी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था। समझा जा रहा था कि सत्तारूढ़ नीतीश को बनाए रखने और हटाने के मुद्दे पर ही चुनाव होगा। वैसी ही बिसात बिछी दिख भी रही थी, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा इस समीकरण पर भारी पड़ने लगी। बड़े दलों के आगे सीटों पर बात न बनने से किले दरकने लगे। महागठबंधन में तेजस्वी यादव का विरोध करके पहले हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा अलग होकर नीतीश के साथ जा बैठा और उसके बाद अब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी (रालोसपा) के उपेंद्र कुशवाहा तेजस्वी को नीतीश की टक्कर का न मानते हुए गत दिनों अलग राह निकल लिए।

एनडीए में लोक जनशक्ति पार्टी नीतीश विरोध पर तुली है और 143 सीटों पर अकेले लड़ने की बात कह रही है। लोजपा की मांग विधानसभा में 36 और विधान परिषद में दो सीटों की है। एनडीए में उनका मामला बिगड़ता देख रालोसपा ने अपनी संभावना टटोलने के लिए भाजपा से संपर्क साधा, लेकिन पांच से ज्यादा वहां भी मिलती नहीं दिख रही। जबकि इससे ज्यादा वह महागठबंधन में छोड़कर आई है।

अभी तक आमने-सामने के मोर्च पर डटे एनडीए और महागठबंधन में पड़ती दरारों से तीसरे मोर्चे की तस्वीर उभरती दिखने लगी है। इन बड़े दो गठबंधनों में आपसी खींचतान के बीच छोटे दल अपनी संभावनाएं तलाशने में जुट गए हैं। जनअधिकार पार्टी (जाप) के पप्पू यादव छोटी पार्टियों को एकजुट करने में जुटे हैं। वह पहले ही चिराग पासवान को मुख्यमंत्री का दावेदार बता उनकी महत्वाकांक्षा को हवा दे चुके हैं, जो अब गुल खिलाती नजर आ रही है और एनडीए में दरार का कारण बन रही है। वहीं महागठबंधन से दूरी बनाने और एनडीए में संभावनाओं के द्वार बंद होते देख रालोसपा का ठौर भी इनके साथ ही दिखने लगा है।

असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम पहले ही समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) देवेंद्र यादव की पार्टी से गठबंधन कर चुकी है। यह खेमा भी आगे इनके साथ जुड़ जाए तो ताज्जुब नहीं होगा। दरअसल छोटे दलों का एकमात्र मकसद सदन में अपनी छोटी ऐसी हिस्सेदारी का है, जिसके बिना सरकार का गठन मुश्किल हो। इन्हीं कवायदों के बीच चुनाव आयोग की बजी घंटी ने अस्त-व्यस्त पहलवानों को सावधान की मुद्रा में ला दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सप्ताहभर के सीमित समय में कौन से समीकरण बनते हैं और किसके बिगड़ते हैं?

टिकट की दौड़ में कई नौकरशाह शामिल

बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कई पूर्व आईपीएस व पूर्व आईएएस अधिकारी विभिन्न पार्टियों से टिकट पाने की दौड़ लगा रहे हैं। हाल में ही वीआरएस लेकर राजनीति में आए पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय की चर्चा हो रही है, लेकिन गुप्तेश्वर पांडेय अकेले पूर्व आईपीएस अधिकारी नहीं हैं, जिनके चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। इस बार उन्हीं के बैचमेट रहे पूर्व आईपीएस अधिकारी व पूर्व डीजी सुनील कुमार भी जदयू का दामन थाम चुके हैं। अब चर्चा यह है कि वो भी इस बार चुनाव लड़ेंगे। जानकार मानते हैं कि प्रशासनिक अधिकारियों का राजनीति से पुराना नाता रहा है। हालांकि, अभी पार्टियों की तरफ से टिकट मिलने की कहानी बाकी है, लेकिन राजनीति संभावनाओं और कयास का ही खेल है। प्रबल इच्छा ऐसी रही कि किसी पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर पूर्व आईपीएस अशोक कुमार गुप्ता ने निर्दलीय ही पटना साहिब से चुनाव लड़ लिया था, तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इस बार वो राजद का दामन थाम चुके हैं। ऐसे में उनके विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा डीजीपी रहे केएस द्विवेदी की भी भागलपुर से इस बार चुनाव लड़ने की चर्चा है। वहीं पूर्व आईएएस अधिकारी राघव शरण पांडेय के बगहा से दोबारा चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। वहीं, ट्रैफिक में काम लेकर चर्चा में आए पुलिस अधिकारी श्रीधर मंडल ने भी राजद का दामन थामा है, वो भी चुनाव लड़ सकते हैं।

- विनोद बक्सरी

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