मानसून की दस्तक के साथ ही रेत खनन पर प्रतिबंध लग जाएगा। लेकिन इससे पहले ही रेत की कालाबाजारी चरम पर पहुंच गई है। इससे रेत के भाव आसमान पर पहुंच गए हैं।
प्रदेश में अभी मौसम ने करवट लेने की तैयारी की ही है, लेकिन इसका असर रेत के दामों पर पड़ना शुरू हो गया है। हालात यह हो गए है कि प्री-मानसून की बौछारें पड़ते ही रेत महंगी हो गई है। मानसून की आहट की संभावना बनने के दस दिनों में ही एक ट्राली रेत पर करीब 1200 रुपए तक की वृद्धि हो चुकी है और यह दाम एक-दो दिन में 1500 रुपए तक बढ़ सकते हैं। यानी की अब तक रेत के दाम 350 रुपए प्रति 100 घन फीट तक बढ़ चुके हैं। मानसून की बारिश होते ही हफ्ते दस दिन में रेत की खदाने पूरी तरह से बंद हो जाएंगी। इसके बाद रेत के दाम आसमान छूने लगेंगे। इसकी वजह है सिर्फ भंडार कर रखी गई रेत ही बिक्री के लिए मिल सकेगी। यही नहीं रेत माफिया से लेकर ठेकेदार भी कमाई के हिसाब से बारिश व ठंड का शुरूआती कुछ समय कमाई के हिसाब से मुफीद मानते हैं। यही वजह है कि मंहगी रेत के साथ ही ढुलाई भी महंगी कर दी जाती है।
रेत के दामों में होने वाली वृद्धि का असर भवनों की निर्माण लागत पर भी पड़ना तय है। रेत के दामों में हो रही वृद्धि का इससे ही समझी जा सकती है कि 20 दिन पहले 650 घन फीट रेत का एक ट्रक रेत 28 से 29 हजार रुपए में मिलता था, वह अब 40 हजार रुपए तक में मिलने लगा है। कुछ स्थानों पर एक ट्रक रेत के लिए तो इससे अधिक रुपए देने पड़ रहे हैं। इसकी वजह से अब फुटकर में तो यही रेत साढ़े पांच हजार रुपए से लेकर छह हजार तक में मिल रही है। खास बात यह है कि जो रेत 100 घनमीटर बताकर दी जाती है वह उससे कम निकलती है, जिसकी वजह से वह और अधिक मंहगी हो जाती है।
गौरतलब है कि प्रदेश में सरकारी अनुमान के मुताबिक हर माह 55 करोड़ 80 लाख फीट (दो करोड़ घन मीटर) रेत की जरूरत रहती है। इसमें अगर भोपाल की बात करें तो शहर में रोज सवा सौ से लेकर डेढ़ सौ ट्रक रेत आती है। इसमें सर्वाधिक रेत नर्मदापुरम (होशंगाबाद) की खदानों के समूहों से आती है पर इन खदानों से करीब छह माह से रेत नहीं निकल रही है। दरअसल, समय से रॉयल्टी राशि न देने के कारण खनिज विभाग ने समूह का ठेका निरस्त कर दिया था। इसके खिलाफ ठेकेदार कोर्ट गया है और तब से खदानों से रेत निकालने पर रोक लगी है। यह बात अलग है कि अधिकृत रूप से रेत नहीं निकल रही है, लेकिन अनाधिकृत रूप से खुलेआम जमकर रेत निकाली जा रही है।
दरअसल मोटी कमाई की आस में मप्र में लागू की गई नई रेत नीति उलटा घाटे का सौदा बन गई है। अब तक राज्य सरकार को 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा हो गया है। यही नहीं, रेत का अवैध खनन भी बढ़ गया है। प्रदेश के 47 जिलों में रेत का भंडार है। इनमें से वर्तमान में 17 जिलों से रेत निकाली जा रही है। करीब 9 जिलों में रेत खदानें नीलाम होना है। जिन्हें अब जिला स्तर पर नीलाम किया जाएगा। इसके लिए अगले साल सरकार नई रेत नीति लाएगी। जिसमें रेत उत्खनन का पूरा काम जिलों को सौंपा जा सकता है। मोटी कमाई की आस में मप्र में लागू की गई नई रेत नीति उलटा घाटे का सौदा बन गई है। अब तक राज्य सरकार को 250 करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा हो गया है। यही नहीं, रेत का अवैध खनन भी बढ़ गया है। पहली बार ऐसे हालात बने हैं कि रेत खदानों वाले 41 जिलों में से 19 जिलों में वैध खदानें ठेकेदारों ने छोड़ दी है। यह सभी कोर्ट चले गए हैं। लिहाजा, इन खदानों से अवैध रेत खनन हो रहा है। सरकार इसे रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है। जबकि, वर्तमान में अधिकृत रूप से केवल 23 जिलों में रेत का वैध उत्खनन हो पा रहा है।
तत्कालीन कांग्रेस सरकार वर्ष 2019 में नई रेत नीति लाई थी। इसके तहत हुए 41 जिलों में 1200 करोड़ रुपए में रेत के ठेके हुए थे। बाद में स्थिति उलटी पड़ गई। कोरोनाकाल के चलते 40 फीसदी ठेकेदार भाग गए। हालांकि कांग्रेस का आरोप है कि ठेकेदारों को दवाब डालकर भगा दिया गया। अब इनमें से कई जगह भाजपा नेता अवैध रेत उत्खनन कर रहे हैं। हालांकि, खनिज विभाग का दावा है कि अब ऐसे जिलों में नए सिरे से टेंडर करवाए जा रहे हैं।
ठेकेदारों ने जब ठेके छोड़े तो राज्य शासन ने रेत नीति में कुछ संशोधन किए थे। इसके बाद फिर से टेंडर भी जारी किए गए, लेकिन ठेकेदारों ने रूचि नहीं दिखाई। वहीं, हाईकोर्ट के निर्देश पर जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट डीसीआर निरस्त होने से खदानें बंद पड़ी है। अब यहां फिर से टेंडर बुलाना पड़ेंगे। प्रदेश में होशंगाबाद, रायसेन, पन्ना, रतलाम, मंदसौर, शाजापुर, भिंड, छतरपुर, धार, राजगढ़, जबलपुर, दमोह, शिवपुरी, बड़वानी, अलीराजपुर, आगर-मालवा, टीकमगढ़, खरगौन में रेत खदानें नई सिरे से होना बाकी है।
सरकार को 250 करोड़ रुपए का लगा फटका
मोटी कमाई की आस में मप्र में लागू की गई नई रेत नीति उलटा घाटे का सौदा बन गई है। अब तक राज्य सरकार को 250 करोड़ रुपए से ज्यादा का घाटा हो गया है। यही नहीं, रेत का अवैध खनन भी बढ़ गया है। पहली बार ऐसे हालात बने हैं कि रेत खदानों वाले 41 जिलों में से 19 जिलों में वैध खदानें ठेकेदारों ने छोड़ दी है। यह सभी कोर्ट चले गए हैं। लिहाजा, इन खदानों से अवैध रेत खनन हो रहा है। सरकार इसे रोक पाने में नाकाम साबित हो रही है। जबकि वर्तमान में अधिकृत रूप से केवल 23 जिलों में रेत का वैध उत्खनन हो पा रहा है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार वर्ष 2019 में नई रेत नीति लाई थी। इसके तहत हुए 41 जिलों में 1200 करोड़ रुपए में रेत के ठेके हुए थे। बाद में स्थिति उलटी पड़ गई। कोरोनाकाल के चलते 40 फीसदी ठेकेदार भाग गए। हालांकि कांग्रेस का आरोप है कि ठेकेदारों को दबाव डालकर भगा दिया गया। अब इनमें से कई जगह भाजपा नेता अवैध रेत उत्खनन कर रहे हैं। हालांकि, खनिज विभाग का दावा है कि अब ऐसे जिलों में नए सिरे से टेंडर करवाए जा रहे हैं।
-राजेश बोरकर