रसूखदारों का मास्टर प्लान
21-Jul-2020 12:00 AM 600

 

देश के खूबसूरत शहरों में शुमार मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को किसकी नजर लग गई है और वो मास्टर माइंड (रसूखदार) कौन लोग हैं, जो एशिया की बड़ी झील के साथ ही भोपाल की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाले प्राकृतिक स्रोतों, पहाड़ियों और कोई पांच हजार एकड़ सरकारी ग्रीन लैंड को बर्बाद करने पर आमादा हैं। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (नगर तथा ग्राम निवेश) ने भोपाल का जो मास्टर प्लान 2031 तैयार किया है, बताते हैं वो शहर के कुछ बड़े रसूखदारों के इशारे पर तैयार किया गया है। जिसमें, बड़ी झील के हजारों एकड़ कैचमेंट एरिया और ग्रीन लैंड को आवासीय में तब्दील कर दिया गया है। हालांकि मास्टर प्लान-2031 को लेकर सरकार ने पुन: दावे-आपत्तियां और सुझाव मांगे हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि दावे-आपत्तियां बुलाना सिर्फ दिखावा है, सच्चाई तो यह है कि राज्य सरकार ने इस नए मास्टर प्लान को लागू करने की पूरी तरह से तैयारी कर ली है।

दरअसल, पिछले पंद्रह सालों में मास्टर प्लान में 213 संशोधन किए जा चुके हैं और एक बार फिर व्यापक स्तर पर भोपाल के मास्टर प्लान में संशोधनों का दौर शुरू हो गया है। यही नहीं पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह से भोपाल के नए मास्टर प्लान में तब्दीलियां की गई हैं, उसमें भोपाल की लाइफलाइन का गला घोंटा जाना लगभग तय हो गया है। नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम के तहत मास्टर प्लान में सबसे ज्यादा बदलाव कृषि भूमि को आवासीय करने के लिए किए जा रहे हैं। टीएंडसीपी के आंकड़ों के अनुसार इसके पहले 2001 से 2016 तक लगभग 2000 हेक्टेयर कृषि भूमि को आवासीय बना दिया गया। नतीजा राजधानी का 800 हेक्टेयर पहाड़ी क्षेत्र निर्जन हो गया। आगे नए मास्टर प्लान में बड़ी झील के हजारों एकड़ कैचमेंट एरिया और ग्रीन लैंड को आवासीय में तब्दील किए जाने से भोपाल का सौंदर्य पूरी तरह से खत्म हो जाएगा और शहर की खूबसूरत वादियां कांक्रीट के जंगल में तब्दील हो जाएंगी।

मास्टर प्लान में कैचमेंट एरिया में लो-डेंसिटी का प्रावधान कर एक दर्जन हाउसिंग प्रोजेक्ट को बड़ा फायदा पहुंचाया गया। मास्टर प्लान में लो-डेंसिटी एरिया खत्म करने की सिफारिश की गई थी, जिसे नजरअंदाज किया गया। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यदि लो-डेंसिटी एरिया खत्म कर दिया जाता तो झील के कैचमेंट में आने वाले भौंरी बकानिया, मीरपुर व फंदा इलाकों में हाउसिंग, कमर्शियल और तमाम बड़े प्रोजेक्ट्स पर पलीता लगना तय था। लेकिन अब यहां रसूखदारों के हाउसिंग प्रोजेक्ट्स लाने की तैयारी है। पब्लिक सेमी पब्लिक (पीएसपी) लैंडयूज को बदलने के लिए भी मास्टर प्लान में संशोधन कर दिए गए हैं। बड़ी झील के हजारों एकड़ कैचमेंट एरिया की कृषि भूमि को आवासीय में तब्दील किया जा चुका है। जहां कैचमेंट एरिया में साढ़े तीन हजार से ज्यादा निर्माण हो चुके हैं। दिलचस्प है कि इनमें एक हजार निर्माण वैध हो चुके हैं।

पीएसपी लैंडयूज के तहत स्कूल, अस्पताल आदि के निर्माण के साथ ही जनकल्याण केंद्र बनाए जा सकते हैं। इसका फायदा उठाकर रसूखदारों ने केरवा, कलियासोत से लेकर आगे कोलार डैम तक की सतपुड़ा रेंज में भी निर्माण कर लिए हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों की आशंका है कि प्रकृति के साथ ऐसे ही खिलवाड़ होता रहा तो भविष्य में यहां हरियाली की जगह कांक्रीट के पहाड़ ही दिखेंगे। टीएंडसीपी के सूत्रों के अनुसार आने वाले मास्टर प्लान-2031 को प्रदेश के बड़े जमीन के सौदागरों यानी मास्टर माइंड रसूखदारों के हिसाब और दिमाग से तैयार किया गया है। ये वो रसूखदार हैं, जिनकी नजर बड़ी झील के कैचमेंट एरिया और हजारों एकड़ ग्रीन लैंड पर लगी हुई है। इन रसूखदारों में बड़े राजनेता, बिल्डर, भूमाफिया और ब्यूरोक्रेट्स शामिल हैं।

बता दें कि आठ साल पहले भारतीय जनता पार्टी की सरकार के दौरान तत्कालीन महापौर कृष्णा गौर की अध्यक्षता वाली साधिकार समिति ने बड़े तालाब का मास्टर प्लान बनाने की जिम्मेदारी सेंटर फॉर एनवायरमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नालॉजी यूनिवर्सिटी (सेप्ट) को सौंपी थी। सेप्ट को इसकी शुरुआती रिपोर्ट 25 जुलाई 2012 तक सौंपनी थी। लेकिन सेप्ट ने करीब एक साल देरी से रिपोर्ट 2013 में सौंपी थी। इसके बाद ड्राफ्ट पर 11 सरकारी महकमों से सुझाव भी मांगे गए थे, जो कि समिति को प्राप्त ही नहीं हुए। वहीं विभागीय अधिकारी इस ओर ध्यान भी नहीं दे रहे हैं।

मास्टर प्लान के ड्राफ्ट में बड़ी खामियां

लैंडयूज को पूरी तरह खत्म करने से रसूखदारों को कहीं भी, कैसा भी निर्माण करने का मौका मिल जाएगा। लैंडयूज संपत्ति की तरह बेचा जा सकेगा, जिससे कहीं भी, कैसे भी निर्माण किए जाएंगे। पुराने भोपाल में लोगों को लैंडयूज बेचकर कमाई का रास्ता खोला गया, जबकि नए शहर में रहने वाले लोगों को इसका खरीदार बनाया गया। ग्राम सेवनिया गौड़ की ओर से तालाब के अंदर ही 30 मीटर की रोड प्रस्तावित है। चंदनपुरा मेंडोरर-मेंडोरी जैसे शहर से लगे वन क्षेत्रों में निर्माण की राह खोलने वाले प्रावधान किए गए हैं।

- कुमार विनोद

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