आगामी राज्यसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस में जिस तरह की सक्रियता देखी जा रही है, उससे यह साफ हो गया है कि पार्टी में राहुल गांधी को अध्यक्ष के तौर पर बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है। वहीं पार्टी के अंदर भी यह मांग लगातार तेज हो रही है कि राहुल गांधी को जल्द से जल्द पार्टी की कमान सौंप दी जाए।
राहुल गांधी को जल्द ही एक बार फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसका संकेत इसलिए भी मिल रहा है कि कांग्रेस में राहुल गांधी के करीबी नेताओं को राज्यसभा भेजने की तैयारी हो रही है। यह इस बात का संकेत है कि पार्टी नेतृत्व ने उन्हें रिलॉन्च करने की पूरी तैयारी कर ली है। अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी खराब सेहत के चलते सक्रिय राजनीति से दूर हैं। ऐसे में कांग्रेस राहुल गांधी की ताजपोशी के लिए पार्टी अधिवेशन बुलाएगी। ऐसी संभावनाएं हैं कि इस दौरान राहुल गांधी के नाम पर मुहर लगा दी जाएगी।
बता दें कि राहुल गांधी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मिली करारी हार के बाद 25 मई को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। पार्टी नेताओं ने उन्हें मनाने की काफी कोशिश की। लेकिन वे नहीं माने और 3 जुलाई को इस्तीफे से जुड़ी चिट्ठी ट्विटर पर पोस्ट कर दी। इसमें उन्होंने लिखा था- अध्यक्ष के नाते हार के लिए मैं पूरी तरह जिम्मेदार हूं, इसलिए अपने पद से इस्तीफा दे रहा हूं। सीडब्ल्यूसी को जल्द से जल्द बैठक बुलाकर नए अध्यक्ष का चुनाव करना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी की ताजपोशी दिसंबर 2017 में हुई थी।
हालांकि इस बार राहुल गांधी की राह शायद उतनी आसान नहीं रहेगी, जितनी की पहली बार रही थी। दरअसल पार्टी के कुछ शीर्ष नेताओं ने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने की मांग कर डाली है। संदीप दीक्षित ने पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने की मांग की थी। बता दें कि संदीप दीक्षित ने कहा था कि इतने महीनों के बाद भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नया अध्यक्ष नहीं नियुक्त कर सके। इसका कारण यह है कि वह सब यह सोच कर डरते हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? पूर्व सांसद दीक्षित ने कहा कि कांग्रेस के पास नेताओं की कमी नहीं है। अब भी कांग्रेस में कम से कम 6-8 नेता हैं जो अध्यक्ष बनकर पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं। वहीं संदीप दीक्षित के बयान का शशि थरूर ने भी समर्थन किया है। लेकिन पार्टी में जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उससे साफ है कि अगला अध्यक्ष राहुल गांधी ही होंगे।
गौरतलब है कि बीता साल कांग्रेस के लिए ज्यादा अच्छा नहीं रहा। जहां 2018 में तीन बड़े राज्यों में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी वहीं 2019 में तीन राज्यों में ठीक-ठाक सी टक्कर देकर कांग्रेस 2 राज्यों में सरकार में शामिल होने में कामयाब तो रही लेकिन आम चुनावों में पार्टी की हालत दयनीय हो गई। आम चुनावों में मोदी लहर के सामने कांग्रेस के कई बड़े दिग्गज और खासकर राहुल गांधी के तमाम करीबी युवा नेता अपने बड़े-बड़े नामों के साथ न्याय न कर पाए और चुनाव हार गए। और तो किसकी कहें, खुद राहुल गांधी अपनी परम्परागत अमेठी सीट से स्मृति ईरानी के सामने चुनाव हार बैठे। खैर पुरानी बातों को छोडि़ए, बात करें इस साल अलग-अलग समय में खाली होने वाली राज्यसभा सीटों की। चूंकि राहुल गांधी की युवा टीम के लगभग सभी खिलाड़ी आम चुनाव और कुछ तो विधानसभा चुनाव तक हार गए हैं, अब इनमें से ज्यादातर राज्यसभा जाने के जुगाड़ में लगे हुए हैं। इस सूची में ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, राजीव सातव से लेकर रणदीप सिंह सुरजेवाला तक शामिल हैं।
गौरतलब है कि मार्च-अप्रैल में कांग्रेस शासित प्रदेश राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की कुल 8 सीटें खाली हो रही हैं। राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में तीन-तीन और छत्तीसगढ़ में दो सीटें हैं। इनमें से 5 सीटें हर हाल में कांग्रेस के खाते में जाएंगी। वहीं महाराष्ट्र में सात और झारखंड में दो सीटें खाली हो रही हैं, यहां कांग्रेस साझा सरकार की भूमिका में हैं। ऐसे में महाराष्ट्र में कांग्रेस एक, बहुत ज्यादा करें तो दो सीटें जबकि झारखंड में अगर हेमंत सोरेन सरकार चाहे तो एक सीट कांग्रेस को मिल सकती है। हरियाणा की दो में एक पर और उत्तर प्रदेश की खाली हो रहीं 10 में से भी एक सीट कांग्रेस के नाम होना पक्का है।
बात करें राजस्थान की तो यहां राज्यसभा के लिए खाली होने वाली तीनों सीटों पर अभी उम्मीदवार तय नहीं है, लेकिन चर्चाओं में यहां से अविनाश पांडे, भंवर जितेंद्र सिंह और मुकुल वासनिक, गुलाम नबी सहित 7-8 का नाम मीडिया में बताया जा रहा है। वहीं मध्य प्रदेश की तीन में से दो सीटों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया और वर्तमान सांसद दिग्विजय सिंह का राज्यसभा जाना करीब-करीब पक्का माना जा रहा है। ऐसे ही हरियाणा की दो में से एक सीट से कुमारी शैलजा के फिर से उच्च सदन में जाना पूर्ण रूपेण पक्का है।
जानकारों की मानें तो इन सभी के बीच रणदीप सिंह सुरजेवाला जो कि हाल ही में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में कैथल से अपनी सीट न बचा सके थे, भी राज्यसभा जाने के इच्छुक बताए जा रहे हैं। यही वजह है कि सुरजेवाला अपने लिए भूमि तलाशने में लगे हैं, क्योंकि हरियाणा की कुल 5 राज्यसभा सीटों में से केवल 2 सीटें खाली हो रही हैं। ऐसे में 2 में से बमुश्किल अगर कांग्रेस के खाते में 1 सीट आ भी जाती है तो उस पर कुमारी शैलजा का नाम करीब-करीब फाइनल होने के चलते उनका यहां काम नहीं बनेगा। वहीं महाराष्ट्र में भी उनके भूमि तलाशने का कोई औचित्य नहीं है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पहले ही वर्चस्व की लड़ाई चरम पर है और वहां के कांग्रेस नेताओं का नंबर लग जाए तो वो ही बड़ी बात होगी। ऐसे में रणदीप सुरजेवाला की नजर अब राजस्थान पर है।
बता दें, सुरजेवाला पूर्व और भविष्य के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के काफी नजदीक हैं और अगर राहुल गांधी कहेंगे तो यहां के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राहुल गांधी की बात टालेंगे नहीं, ये भी पक्का है। बता दें, राजस्थान से राज्यसभा की इस साल खाली होने वाली 3 में से 2 सीटों का कांग्रेस के खाते में आना पक्का है। वर्तमान में यहां की 10 में से 9 सीटों पर भाजपा के सांसद काबिज हैं, वहीं भाजपा के मदन लाल सैनी के निधन के बाद खाली हुई सीट पर हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का चयन हुआ है।
राजस्थान में राज्यसभा की 3 सीटों के लिए कांग्रेस से अविनाश पांडे, मुकुल वासनिक, भंवर जितेंद्र सिंह, प्रियंका गांधी, गुलाम नबी आजाद, गौरव वल्लभ और रामेश्वर डूडी तक के नाम मीडिया की सुर्खियों में बने हुए हैं। लेकिन इन सभी नामों में एक नाम भी ऐसा नहीं है जिसको रणदीप सुरजेवाला के नाम के साथ रिप्लेस नहीं किया जा सकता हो, और वो भी तब जबकि सुरजेवाला के लिए राहुल गांधी निर्देश दें। वहीं मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के नाम के साथ छेड़छाड़ एक दम से नहीं की जा सकती है। दोनों के नामों पर मुख्यमंत्री कमलनाथ की हामी भी हो चुकी है। ऐसे में यहां किसी और के नाम की गुंजाइश नहीं बचती। ऐसे ही महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा की नाराजगी को दूर करना भी जरूरी है। ऐसे में राजस्थान ही सुरक्षित प्रदेश है जहां किसी का भी नाम कटे, विरोध होने की संभावना ना के बराबर है।
अब बात करें उत्तर प्रदेश की तो यहां जितिन प्रसाद का नाम कांग्रेस के दावेदारों में सामने आ रहा है। जितिन प्रसाद के बारे में तो ये भी कहा जा रहा है कि अगर उन्हें कांग्रेस की ओर से राज्यसभा का उम्मीदवार नहीं बनाया गया तो वे भाजपा में शामिल हो सकते हैं। यहां से उन्हें आसानी से उच्च सदन में भेजा जा सकेगा। छत्तीसगढ़ से पुराने नेताओं की ही दावेदारी प्रबल है। वहीं महाराष्ट्र से राहुल गांधी के दो करीबी नेता मिलिंद देवड़ा और राजीव सातव कड़े जुगाड़ में लगे हुए हैं ताकि अगले पांच साल आराम से राज्यसभा की कुर्सियों पर बैठकर निकाले जा सकें। बता दें, राजीव सातव गुजरात के प्रभारी भी हैं और राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। यहीं से रजनी पाटिल, मुकुल वासनिक और राजीव शुक्ला भी दावेदारी में लगे हुए हैं।
वहीं झारखंड की एक सीट पर अगर कांग्रेस को मौका मिलता है तो यहां से प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह को राज्यसभा भेजा जा सकता है। वे युवा नेता हैं और राहुल गांधी के करीबी भी। ऐसे में उन्हें अन्य नेताओं पर वरीयता मिल सकती है। हालांकि यहां झामुमो और कांग्रेस में सीट को लेकर तनातनी होना निश्चित है लेकिन स्थानीय नेताओं ने जिस तरह आरपीएन सिंह को विश्वास दिलाया है, उससे तो यही लग रहा है कि वे झारखंड जीत ही लेंगे।
कांग्रेस में नहीं होंगे अध्यक्ष चुनाव
अब कांग्रेस पार्टी ने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने की बात को सिरे से नकार दिया है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि दीक्षित और बयानबाजी करने वाले अन्य नेता ज्ञान देने की बजाय अपने क्षेत्र में ध्यान दें और इस बारे में सोचें कि वे चुनावों में क्यों हारे? इस बीच, पार्टी सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी एकमात्र दावेदार हैं और भविष्य में उनके जिम्मेदारी संभालने की प्रबल संभावना है। सुरजेवाला ने कहा कि मैंने संदीप दीक्षित का बयान नहीं देखा है, लेकिन मैं उन समेत सभी नेताओं से कहता हूं कि पहले वो यह देखें कि जब चुनाव लड़े तो कितने वोट आए और चुनाव क्यों हारे? इसमें मैं भी हूं। संदीप अगर ये सारी मेहनत अपने संसदीय क्षेत्र में लगा दें तो कांग्रेस जीत जाए। उन्होंने कहा, मैं इन नेताओं से कहना चाहता हूं कि पूरे देश को ज्ञान देने की बजाय अपने-अपने क्षेत्र में अपने काम से फायदा उठाएं। वहीं मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम ने राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने का समर्थन किया है।
युवा नेतृत्व को उभारने की कवायद हुई तेज
देशभर में कांग्रेस में जिस तरह राज्यसभा में भेजे जाने वाले चेहरे सामने आ रहे हैं उसमें अधिकांश वे नेता हैं, जिन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता है। अगर उन नामों को राज्यसभा में भेजा जाता है तो निश्चित तौर पर यहां कांग्रेस की आवाज प्रबल होगी। संख्या बल के मुताबिक नहीं बल्कि युवा चेहरों के अनुसार। देखा जाए तो राजस्थान सीट से वरिष्ठ नेता डॉ. मनमोहन सिंह उच्च सदन में हैं जो दो बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। लेकिन बढ़ती आयु के चलते उनकी आवाज सदन में उतनी प्रबल नहीं है। ऐसे में राज्यसभा में युवा शक्ति ढलती कांग्रेस की आवाज को न केवल मुखर कर सकती है बल्कि सदन में अपनी बातों को प्रबलता से रख भी सकती है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पिछले कई दशकों से पार्टी में बुजुर्ग नेताओं का वर्चस्व रहा है। इसलिए यह कोशिश की जा रही है कि पार्टी में युवा नेतृत्व को आगे किया जाए। इससे पार्टी में नए जोश और नई सोच का संचार होगा।
- इन्द्र कुमार