प्रदेश में सरकार बनने के एक माह बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 15 नगर निगमों सहित 297 नगरीय निकायों में पुरानी परिषद बहाल करने की घोषणा की थी। सरकार की घोषणा के बाद पूर्व महापौरों और अध्यक्षों सहित तमाम पार्षदों के चेहरे खिल गए थे। लेकिन इस घोषणा के लगभग एक माह बाद भी सरकार ने प्रशासकीय समितियों का गठन नहीं किया है। इससे नगरीय निकायों में अभी भी अफसर प्रशासक के रूप में पदस्थ हैं। वहीं महापौर और अध्यक्ष पावर मिलने का इंतजार कर रहे हैं।
गौरतलब है कि मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में नगर निगम और नपा अधिनियमों में संशोधन कर अध्यादेश के प्रारूप को मंजूरी दी गई। इसके तहत प्रशासकीय समितियां बनाकर महापौर, अध्यक्ष और पार्षदों को उसमें शामिल करना था। लेकिन अभी तक न तो समितियां बनीं और न ही समितियों के अधिकार और कर्त्तव्य तय हो पाए। इस कारण अभी भी संभाग मुख्यालय पर संभागायुक्त और जिला मुख्यालय पर कलेक्टर नगरीय निकाय के प्रशासक हैं। अन्य जगहों पर संबंधित एसडीएम को प्रशासक बनाया गया है।
समय पर चुनाव नहीं हो पाने के कारण कांग्रेस के शासनकाल में सरकार ने कार्यकाल समाप्त होने वाले नगरीय निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की थी। चुनाव की प्रक्रिया शुरू भी नहीं हुई थी कि कोरोना का संक्रमण फैलने लगा। ऐसे में सत्ता परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान ने नगरीय निकायों का कार्यकाल एक साल बढ़ाने की घोषणा कर दी। इसके लिए अधिनियम की धारा 328 व 423 में प्रावधान हैं। उसके आधार पर प्रशासक या प्रशासकीय समिति गठित करने की व्यवस्था है। लेकिन एक माह बाद भी प्रशासकीय समिति गठित नहीं हो पाई।
अगर सरकार प्रशासकीय समिति गठित कर अध्यादेश के माध्यम से उसे लागू कर देती तो नगर निगम में महापौर रहे और नगर पालिका व नगर परिषद में अध्यक्ष रहे व्यक्ति प्रशासकीय समिति के प्रमुख के रूप में एक तरह से महापौर व अध्यक्ष की हैसियत से ही काम करने लगते। सरकार अपनी इच्छानुसार पूर्व पार्षदों को भी समिति में सदस्य बना सकती थी। लेकिन अभी तक सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा पाई है। सरकार ने प्रशासकीय समिति गठित कर उसमें तत्कालीन महापौर, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों को शामिल करने की घोषणा की थी तो महीनों से घर बैठे नेता सक्रिय हो गए थे। लेकिन एक पखवाड़े के इंतजार के बाद भी जब समिति का गठन नहीं हो पाया तो सभी अपने घर बैठ गए।
सूत्र बताते हैं कि प्रशासकीय समिति गठित करने के मामले में सरकार में समन्वय नहीं बन पा रहा है। बताया जाता है कि वरिष्ठ अधिकारी इस पक्ष में नहीं हैं कि प्रशासक के तौर पर काम कर रहे अधिकारियों से अधिकार छीनकर महापौर या अध्यक्ष को फिर से अधिकार दिया जाए। बताया जाता है कि मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सरकार प्रशासकीय समिति गठित कर सकती है।
सूत्र बताते हैं कि नगरीय निकायों में पूर्व महापौर, अध्यक्ष और पार्षदों को प्रशासकीय समिति बनाकर फिर जिम्मेदारी सौंपने की घोषणा कर अभी अमली जामा पहनाया ही नहीं गया है कि सरकार सहकारिता के क्षेत्र में बड़ा बदलाव करने की तैयारी में जुट गई है। इसके तहत सांसद और विधायकों के लिए सहकारी संस्थाओं के रास्ते खुल जाएंगे। वे प्रशासक और अध्यक्ष भी बनाए जा सकते हैं। सहकारी अधिनियम में अभी तक इस पर प्रतिबंध है, लेकिन सियासी समीकरणों के मद्देनजर आयोग, प्राधिकरण और परिषदों के अलावा एक और विकल्प तैयार किया जा रहा है, जहां नेताओं को समायोजित किया जा सके। इसके लिए अधिनियम की धारा 48 (ए) में संशोधन प्रस्तावित किया जा रहा है। अब अधिनियम में संशोधन कर यह इंतजाम किया जा रहा है कि सांसद और विधायक भी प्रशासक बनाए जा सकते हैं। जब चुनाव होंगे तो वे भी अध्यक्ष बनने की पात्रता रखेंगे। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि प्रस्तावित संशोधन कैबिनेट में पारित होने के बाद जून-जुलाई में प्रस्तावित विधानसभा के मानसून सत्र में प्रस्तुत किया जाएगा। इसके पहले जरूरी हुआ तो राज्यपाल लालजी टंडन के अनुमति से अध्यादेश के जरिए भी इसे लागू किया जा सकता है।
अब जनता ही चुनेगी महापौर और अध्यक्ष
मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार कमलनाथ सरकार का एक और फैसला पलटने जा रही है। इस फैसले के तहत मध्य प्रदेश में मेयर के चुनाव अब प्रत्यक्ष प्रणाली से ही होंगे यानि मेयर चुनाव के लिए जनता ही वोट करेगी। ऐसा माना जा रहा है कि कैबिनेट का कोरम पूरा होने के बाद सरकार यह प्रस्ताव कैबिनेट में लेकर आएगी और फिर उसके बाद या तो विधानसभा में बिल लाकर या फिर अध्यादेश के जरिए इसे लागू कर दिया जाएगा। अपने कार्यकाल में कमलनाथ सरकार ने संशोधन करते हुए यह तय किया था कि प्रदेश में मेयर के चुनाव प्रत्यक्ष ना होकर अप्रत्यक्ष प्रणाली से किए जाएंगे। भाजपा ने उस समय भी इसका पुरजोर विरोध किया था और फैसले को वापस लेने की मांग की थी लेकिन कांग्रेस सरकार ने फैसले को यथावत रखा था। अब जबकि प्रदेश में भाजपा सत्ता पर काबिज हो गई है। लिहाजा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस प्रस्ताव को बदलने की सैद्धांतिक तौर पर सहमति दे दी है। कैबिनेट कोरम पूरा होने के बाद यह माना जा रहा है कि सरकार इस प्रस्ताव को कैबिनेट में लेकर आएगी उसके बाद अगर मानसून सत्र में देरी हुई तो फिर इसके लिए अध्यादेश भी लाया जा सकता है। मेयर चुनाव को लेकर अब एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने आ गई हैं। भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल का कहना है भाजपा लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में विश्वास करती है। लिहाजा जनप्रतिनिधियों का चुनाव जनता के द्वारा किया जाना ही बेहतर है। दूसरी तरफ कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता ने इसे मनमर्जी का फैसला बताया है। भूपेंद्र गुप्ता के मुताबिक जैसे प्रधानमंत्री का चयन सांसद और मुख्यमंत्री का चयन विधायक करते हैं उसी तरह मेयर का चयन भी पार्षदों के जरिए ही होना चाहिए।
- प्रवीण कुमार