05-Dec-2014 07:59 AM
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दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी इबोला का खतरा भारत में भी पैर पसार चुका है। लाइबेरिया से लौटे एक युवक को मेडिकल परीक्षण में इबोला से संक्रमित पाया गया है और उसे दिल्ली हवाई अड्डे पर अलग-थलग रखा गया है। यह युवक लाइबेरिया में इस बीमारी का शिकार हो चुका था और उसका इबोला संक्रमण के लिए इसका इलाज भी किया गया था, लेकिन दिल्ली हवाई अड्डे पर जांच के दौरान युवक के सीमेन में वायरस होने की पुष्टि हुई तो स्वास्थ्य विभाग सतर्क हो गया। यह इबोला का पहला पुष्ट मामला था।
लाइबेरिया सरकार ने उसके स्वस्थ होने का प्रमाण पत्र भी दिया है, लेकिन भारत रवाना होने से पहले उसका परीक्षण नहीं किया गया। जिसके कारण वह भारत में संक्रमित ही चला आया। मंत्रालय का कहना है कि चिंता की आवश्यकता नहीं है क्योंकि संक्रमित व्यक्ति स्वस्थ है और उसका इलाज हो चुका है। लेकिन इबोला की खासियत यह है कि यह संक्रमण के बाद स्वस्थ हो चुके व्यक्ति के शरीर से भी लगातार कई दिनों तक द्रव्यों- थूक, लार, कफ, मूत्र, मल, पसीना और वीर्य के माध्यम से निकलता रहता है। इस कारण दूसरे व्यक्तियों के शरीर में इसका संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है।
इबोला में 80-90 प्रतिशत मौतें हो जाती हैं। केवल मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग ही इस बीमारी से लड़ पाते हैं। खासकर मूत्र-नली या वीर्य में यह वायरस लंबे समय तक जीवित रह सकता है। यद्दपि स्वास्थ्य मंत्रालय कह रहा है कि यह देश में इबोला का पहला मामला है, लेकिन इस वायरस से संक्रमित मनुष्यों से मिलते-जुलते लक्षण वाले लोग भारत में पहले भी अस्पतालों में भर्र्ती हो चुके हैं। किंतु उन्हें डॉक्टरों ने बिना किसी परीक्षण के ही जाने दिया। जयपुर में सवाई मानसिंह अस्पताल में एक मरीज शरीर पर फफोले और बुखार से पीडि़त होकर भर्ती हुआ था, लेकिन उसे बगैर सेंपल के ही जाने दिया गया। वह रात भर अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में रहा और अचानक चला गया। कहां चला गया, इस विषय में डॉक्टरों को कोई जानकारी नहीं थी। किसी ने कहा कि उसे दिल्ली रेफर कर दिया गया है। इबोला जैसी खतरनाक बीमारी के संदिग्ध मरीज को लेकर इस तरह की लापरवाही महंगी पड़ सकती है। इबोला का आतंक खत्म नहीं हुआ है, अफ्रीकी देशों में यह बहुत खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। डॉक्टर अब तक पक्के तौर पर नहीं पता लगा पाए हैं कि इबोला वायरस आया कहां से। एक थ्योरी कहती है कि यह वायरस चमगादड़, बंदर और सूअर की आंतों में पाया जाता है।
संक्रमण के बाद यह वायरस शरीर में फैलने में 2 से 21 दिन लगाता है। जब इसके लक्षण दिखने लगें तो मरीज इस बीमारी का वाहक बन जाता है। इसके अगले 12 दिन बेहद संवेदनशील होते हैं। 7 से 10 दिन में वायरस जब विकसित होता है तब गले-आंखों में जलन, पेट में दर्द और उल्टियां होती हैं। सिरदर्द, थकान, बुखार, मांसपेशियों में जलन। त्वचा पर छोटे-छोटे सफेद व लाल धब्बे पडऩे लगते हैं। ये बाद में खरोंच का रूप ले लेते हैं। फिर फटना शुरू हो जाते हैं। इनमें से खून निकलने लगता है। 11 दिन में जीभ की ऊपरी सतह पूरी तरह से लाल हो जाती है। कई बार ये बाहर लटक जाती है या गले की तरफ चली जाती है। 12 दिन में वायरस नसों में खून जमा देता है। रंग काला पडऩे लगता है। खून जमने से लिवर, ब्रेन, फंेफड़े, आंतों समेत कई अंगों तक खून का बहाव रुकने लगता है। ये अंग काम करने बंद कर देते हैं। बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए ऐसे मरीज को 21 दिनों तक अलग-थलग रखा जाता है, जिसे वायरस से संक्रमित होने का खतरा रहता है। स्वास्थ्य सेवाओं के सिलसिले में इबोला वायरस से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते समय पूरी तरह सुरक्षित कपड़ों वाली किट पहननी चाहिए। इस दौरान दस्ताने, मॉस्क, चश्मे, रबर के जूते और पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनने चाहिए। अगर इबोला संक्रमित द्रव्य आपकी त्वचा के संपर्क में आता है तो इसे शीघ्रता से साबुन और पानी की मदद से धोया जा सकता है या अल्कोहल वाले हैंड सैनिटाइजर का इस्तेमाल किया जा सकता है। अस्पताल से निकलने वाले मरीज के कपड़ों और अन्य चीजों को जला देना चाहिए। सतह पर गिरे द्रव्य से संक्रमण का खतरा होता है। इबोला से उभरे लोगों को शारीरिक संबंध बनाने के दौरान 3 महीने तक कंडोम का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। इबोला संक्रमण से पूरी तरह ठीक होने के बाद भी लोगों के शुक्राणु में 3 महीने तक इस वायरस की मौजूदगी पाई गई है। इस वायरस की चपेट में आए व्यक्ति को हाथ मिलाना या उसके नजदीक आने से बचाव करना चाहिए। इसके साथ जंगली जानवर- जैसे बंदर, सांप और चमगादड़ आदि के मांस के सेवन से दूर रहे।