11-Nov-2014 06:52 AM
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अरसे बाद नोबल समिति ने एक नोबल सा फैसला किया। कैलाश सत्यार्थी निश्चित रूप से नोबल शांति पुरस्कार के सर्वोपयुक्त और सर्वश्रेष्ठ अधिकारी हैं। मलाला को मिला पुरस्कार भी एक दृष्टि से उचित ही है क्योंकि इसके पीछे उन बर्बर और वहशी लोगों को संदेश देने की कोशिश की गई है कि वे सभ्यता की मुख्य धारा में जुडऩा चाहें तो जुड़ सकते हैं, ऐसा करने से उन्हें कोई नहीं रोक रहा। उम्मीद है कि इन पुरस्कारों के बाद दुनिया कुछ बदलेगी। जिस तरह इस धरती पर खून की नदियां बहाई जा रही हैं और हर एक व्यक्ति अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए दूसरे धर्म से नफरत कर रहा है, उसके अंतर्गत टॉलरेंस खत्म होता जा रहा है। द्य जाहिद खान, दिल्ली
जमीन पर दिखे निवेश
6 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश होगा, यह कहना अत्यंत सरल है लेकिन जमीन पर इसकी हकीकत दिखनी चाहिए। यह अच्छी बात है कि इस आंकड़े के समर्थन में सरकार ने विस्तृत जानकारी मुहैया कराई, लेकिन सवाल यह है कि प्रदेश में किस जगह यह निवेश आने वाला है और इसका लाभ आम जनता तक कैसे पहुंचेगा? यदि इस निवेश से प्रदेश की बेरोजगारी में 20-30 प्रतिशत की भी कमी आ गई तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। उम्मीद है प्रदेश सरकार अगले एक-ढेढ़ वर्ष के भीतर वे आंकड़े भी जारी करेगी, जिनमें इस निवेश के फलस्वरूप हुए गुणात्मक परिवर्तनों का ब्यौरा होगा। द्य रमेश महाजन, इंदौर
चरित्रगत कमी
स्कूलों में शौचालय न होना हमारे मानस के दिवालियापन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। स्त्री शिक्षा को लेकर यह समाज बहुत देर से जागरूक हुआ है और यह जागरूकता समाज के बहुत बड़े हिस्से में अभी भी नहीं देखी जाती, इसीलिए केवल स्कूल ही नहीं तमाम सार्वजनिक स्थलों पर महिला शौचालय न के बराबर मिलते हैं। स्कूलों में तो सर्वाधिक भ्रष्टाचार है। सरकारी स्कूलों केे अध्यापक और जिम्मेदार अधिकारी स्कूल विकास की राशि खा जाते हैं। बच्चों को ट्यूशन के लिए बुलाते हैं। गांव के स्कूल का मास्टर अपने घर की सब्जी से लेकर म_ा, दूध, घी का प्रबंध छात्रों से ही कर लेता है। पढ़ाई से ज्यादा ध्यान इन्हें मध्यान्ह भोजन में डंडी मारने का रहता है। ऐसे में स्कूल के शौचालय जर्जर हैं तो इसमें आश्चर्य किस बात का है।
द्यसुमंत नामदेव, उज्जैन
अबूझ पहेली
सहकारी समितियां अबूझ पहेली हैं। इन समितियों में पनपता भ्रष्टाचार तो 90 के दशक में ही सामने आ गया लेकिन तब उस भ्रष्टाचार को दबा दिया गया और अब कहा जा रहा है कि इन समितियों की आड़ में भू-माफिया ने जमीनें हड़प ली हैं। जमीनें हड़पने वाले कौन हैं? उन्हें इतना ताकतवर किसने बनाया? किसकी शह से इन लोगों ने जमीनें हड़पीं? क्या भू-माफियाओं के कुछ पैरोकार हमारी विधानसभा से लेकर संसद में नहीं बैठे हैं?
द्यउमेश गुप्ता, भोपाल
व्यवस्था चरमराई
भोपाल शहर की कॉलोनियों की सड़कें अपनी बदहाली खुद कह देती हैं। सरकारी कॉलोनियों में तो सड़क है ही नहीं, क्योंकि वहां की सड़कें कागजों पर ही बनती हैं। फिर से चुनाव आ रहे हैं, जनता अपना गुस्सा अवश्य निकालेगी लेकिन जिन्हें विकल्प के रूप में चुना जाएगा, क्या वे इतने सक्षम हैं कि सड़कें बनवा सकेंगे? वे भी पांच साल तक अपनी जेबें भरने के बाद रवाना हो जाएंगे। जनता की पीड़ा बनी रहेगी।
द्यशिवम पांडे, भोपाल
कानून बने
देश में हर वर्ष कहीं न कहीं भगदड़ मच ही जाती है और निर्दोष लोग मारे जाते हैं। आज तक यह सुनने में नहीं आया कि किसी भगदड़ में किसी वीआईपी की मौत हुई हो, क्योंकि उनकी जान को सुरक्षित रखने के लिए पुलिस और प्रशासन मुस्तैद रहता है। आम आदमी मरता रहे, किसे परवाह है। कुछ जांचें होंगी, आरोप-प्रत्यारोप होंगे और मामला ठंडा कर दिया जाएगा। हर साल ऐसी घटनाएं होती रहती हैं इसलिए अब कानून बनाया जाना चाहिए कि जहां भी ऐसी घटना घटेगी वहां जिम्मेदार लोगों पर मुकदमा दर्ज किया जाएगा।
द्यकमलेश सिंह, रीवा
इसिस का खात्मा जरूरी
इसिस जैसे आतंकी संगठनों ने सारी दुनिया को आक्रांत कर रखा है। विभिन्न देशों की सत्ता पहले अपने निजी लाभ के लिए आतंकी संगठनों को पलने-बढऩे का मौका देती हैं और बाद में जब ये नाग बनकर फुंफकारने लगते हैं, तो इनके खिलाफ कार्रवाई की जाने लगती है। सारी दुनिया में हथियारों का बाजार इसी तरह से चल रहा है। लेकिन इसके लिए मजहब की आड़ लेकर मजहब को बदनाम करने की कोशिश हो रही है जो कि गलत है। अभय कुमार, जबलपुर
कठिन लक्ष्य नहीं
भारत में हजार-ढेढ़ हजार जनसंख्या वाले छोटे-छोटे ग्रामों को आदर्श ग्राम बनाना कोई कठिन लक्ष्य नहीं है, बस इच्छा शक्ति की जरूरत है। पहले चरण में छोटे ग्रामों को लाते हुए उनमें सुधार करते चलें और फिर इसी क्रम में मंझले और बड़े आकार के गांवों को सुधारा जाए। गांव की सबसे बड़ी समस्या शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार है। शिक्षा के लिए स्कूलों का जाल बिछाना होगा, स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाते हुए लोगों को भी स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना होगा। गांवों में जल-मल निकासी और बसावट के तरीके को बदलते हुए बहुत हद तक आदर्श ग्राम के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
द्य नागेश चंद्रवंशी, इंदौर