नियोक्ताओं को फायदा?
04-Oct-2014 06:44 AM 1234896

मध्यप्रदेश सरकार ने जिन 20 श्रम कानूनों को बदलने की घोषणा की है, उनमें से 17 तो केंद्र के हैं और 3 मध्यप्रदेश के हैं। प्रश्र यह है, कि क्या इन कानूनों में बदलाव से उद्योगों की दशा सुधरेगी या फिर ये परिवर्तन भी अंतत: नियोक्ता को ही फायदा पहुंचाएगा? भारतीय मजदूर संघ, इंटक और सीटू पहले ही इन संशोधनों से विरोध जताते हुए अलग-अलग प्रदर्शन कर चुके हैं और प्रदर्शन जारी हैं। 12 अक्टूबर को भारतीय मजदूर संघ के नेतृत्व में सारे मजदूर संगठन प्रदेश भर में प्रदर्शन करेंगे। भारतीय मजदूर संघ भाजपा समर्थित है लेकिन यह भी कुछ प्रावधानों के समर्थन में नहीं है। इस संगठन का कहना है कि पीएफ सहित स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर तमाम नियम-कायदों का पालन पहले से ही नहीं हो पा रहा है और अब ये नए कानून मजदूरों की दुर्दशा में वृद्धि ही करेंगे। सीटू, इंटक जैसे संगठन भी खुलकर विरोध में आ गए हैं जो सरकार के लिए परेशानी का सबब हो सकता है।
उधर सरकार इन बदलावों को जरूरी बता रही है। श्रम आयुक्त केसी गुप्ता का कहना है कि राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश दूसरा राज्य है, जिसने इन कानूनों में बदलाव स्थापित किया है। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट 1947 और फैक्ट्रीज एक्ट 1948 हैं।
इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट 1947 में जिस बदलाव के लिए केबिनेट ने सहमति दी है, उनके तहत श्रमिकों की छंटनी का, काम से हटाना तथा इकाइयों को बंद करना आसान हो जाएगा। गुप्ता बताते हैं कि इसके लिए किसी प्रकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। एक तरह से यह हायर एण्ड फायर की ही नीति है। कानून में परिवर्तन का लाभ सिर्फ उन्हीं इकाइयों को होगा जहां 300 से अधिक श्रमिक हैं। इससे पहले 100 या उससे अधिक कर्मचारी वाली इकाइयों पर यह कानून लागू होता था। कर्मचारियों को 12 माह तक उसी इकाई में कार्यरत रहना भी अनिवार्य था। कैबिनेट ने अनुत्पादक श्रमिकों की छंटनी को आसान करने और उत्पादक तथा उपयोगी श्रमिकों का विकल्प खुला रखने की दृष्टि से यह परिवर्तन किया है। गुप्ता का कहना है कि जिन श्रमिकों को नौकरी से वंचित किया जाएगा उन्हें बेहतर क्षतिपूर्ति मिल सकेगी। नियोक्ता हटाए जाने वाले कर्मचारियों को 3 माह का अग्रिम वेतन देकर ही हटा सकेंगे। इसके साथ ही कैबिनेट ने मध्यप्रदेश इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट (स्टैंडिंग ऑडर्स) एक्ट, 1691 में भी संशोधन को स्वीकृति दी है। इसके तहत छोटी और मध्यम इकाइयों को किसी भी कर्मचारी को बिना कारण बताए 3 माह के नोटिस और अग्रिम वेतन द्वारा हटाने का अधिकार रहेगा। यह उन लघु और मध्यम इकाइयों पर लागू होगा जिनमें कर्मचारियों की संख्या 50 से कम है। भारतीय मजदूर संघ के सुल्तान सिंह शेखावत कहते हैं कि एक तरह से थोड़ी अवधि के लिए जो ठेका श्रमिक लाए जाते हैं उनके हितों को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। वे सेल्फ सर्टिफिकेशन का भी विरोध कर रहे हैं।
ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 में भी संशोधन को स्वीकृति प्रदान की गई है। इसी तरह फैक्ट्री एक्ट 1960 में संशोधन करते हुए ओवरटाइम को 75 घंटे बढ़ाकर 125 घंटे कर दिया गया है, लेकिन इसके लिए श्रमिक की सहमति लेना अनिवार्य है और वर्किंग टाइम भी 60 घंटे से बढ़ाकर अधिकतम समय 72 घंटे कर दिया गया है। लघु उद्योगों के हितों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने उन्हें श्रमिक कानूनों में कुछ छूट दी है। विशेषकर कान्ट्रेक्ट लेबर (रैग्यूलेशन एण्ड एवोल्यूशन) एक्ट 1970, फैक्ट्रीज एक्ट 1948, इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट एक्ट 1961 और टे्रड यूनियन एक्ट 1926 में लघु उद्योगों की दृष्टि से कुछ सुविधाजनक सुधार किए गए हैं।

 

-Bindu Mathur

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