जानें देवी के नौ अवतारों को
17-Sep-2014 05:50 AM 1234795

महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती, ये तीनों देवियां क्रमश: महादेव, विष्णु और ब्रह्मा की शक्तियों के रूप में संसार में जानी जाती है। इन तीन देवियों के भी तीन-तीन स्वरूप है। अत: कुल मिलाकर नौ देवियां होती है। नवरात्रि के पहले तीन दिन मां दुर्गा के तीन स्वरूपों की आराधना की जाती है। इसके अगले तीन दिन तक देवी महालक्ष्मी के तीन स्वरूपों और अंतिम तीन दिनों में महासरस्वती के तीन स्वरूपों की आराधना की जाती है। महाकाली के रूप में मां दुर्गा की आराधना समस्त कष्टों और पापों से मुक्ति प्रदान कराती है। महालक्ष्मी के रूप में दुर्गा की आराधना धन, एश्वर्य और कीर्ति प्रदान कराती है। महासरस्वती के रूप में मां दुर्गा की आराधना भक्ति, ज्ञान, एवं मुक्ति प्रदान कराती है।
शैलपुत्री : मां दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैल पुत्री के रूप में जानी जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पर जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। यहीं नव दुर्गाओं में प्रथम है। नवरात्रि के प्रथम दिन इन्हीं की पूजा की जाती है। इनकी साधना और पूजा से साधक के समस्त दुर्गुणों, अज्ञान और पापों का नाश होता है।
ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी हैं। ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है। इनकी उपासना से मनुष्य में ताप, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
चंद्रघंटा : मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का स्वरूप चन्द्र घंटा हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा के इसी रूप की पूजा की जाती है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का चन्द्र, अर्धचन्द्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनकी कृपा से साधक के समस्त कष्ट और बाधाएं नष्ट होते हैं और साधक को मनोवांछित फल मिलता है।
कुष्मांडा : मां दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम मां कुष्मांडा है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इस देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। अत: यह ब्रह्मांड की आदि स्वरूपा, आदि शक्ति हैं।
इनकी आराधना से आयु, बल, यश और कीर्ति में वृद्धि होती है।
स्कंदमाता : मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप का नाम स्कंदमाता है। भगवान स्कन्द की माता होने का कारण इन्हें इसी नाम से जाना जाता है। स्कंदमाता की आराधना से साधक की समस्त मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं। इनकी उपासना से बल रूप भगवान स्कन्द की भी स्वत: ही पूजा हो जाती है।
कात्यायनी : मां दुर्गा का छटा स्वरूप मां कात्यायनी हैं। महर्षि कत्यायन के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इन्हे मां कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। मां कात्यायनी अमोघ फल दायनी हैं। मां कात्यायनी की उपासना से भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक और संताप नष्ट होते हैं।
कालरात्रि : मां दुर्गा का सप्तम स्वरूप कालरात्रि हैं। इनका स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक होता है, परंतु वह भक्तों का कल्याण करने वाली हैं। इनकी उपासना से ग्रह दोष दूर होते हैं और साधक पूर्णत: भय मुक्त हो जाता है। साधक को अग्नि भय, जल भय, मृत्यु भय और शत्रु भय नहीं होता है।
महागौरी : मां दुर्गा का अष्टम स्वरूप महागौरी हैं। इनका स्वरूप पूर्णत: गौर है। नवरात्रि में आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है। इनकी उपासना से साधक को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। इनकी उपासना से भक्तों के पूर्व जन्म और इस जन्म के सभी पाप का अंत होता है और साधक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षम पुण्यों का अधिकारी होता है।
सिद्धिदात्री : मां दुर्गा की नवी शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। इनकी उपासना से भक्तों को समस्त प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इस दिन शास्त्रीय विधि विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ मां की आराधना करने वाले साधकों की लौकिक और परलौकिक, सभी प्रकार की कामनाएं सिद्ध होती हैं।

 

व्यक्ति अपने से प्रेम करता है
न कश्चित् कस्यचित् प्रियो भवति,
आत्मन: प्रियाय हि सर्वं प्रियं भवति।
अर्थात् कोई किसी से प्रेम नहीं करता, प्रत्येक व्यक्ति केवल अपने से प्रेम करता है। यदि पति को पत्नी अपनेे लिए दु:खद प्रतीत होती है, तो वह उसे छोडऩे में देर नहीं लगाता। यदि पिता को पुत्र अपने प्रतिकूल लगता है, तो पिता उसे छोडऩे में संकोच नहीं करता। यही वास्तविकता है कि व्यक्ति को अपने को सुख देने वाली पत्नी व पुत्र आदि ही प्रिय लगते हैं।  गौतम द्वारा अहल्या का त्याग, श्रीराम द्वारा सीता का त्याग, विभीषण द्वारा रावण का त्याग तथा हिरण्यकशिपु द्वारा प्रह्लाद का त्याग-इसी तथ्य के उदाहरण हैं। वस्तुत: मनुष्य के लिए अपने प्राणों का महत्व सर्वाधिक है। सत्य भी यही है। यदि मनुष्य ही नहीं रहेगा, तो पत्नी और धन का होना किस काम का? जीवन बचेगा, तो पुरुष धन भी कमा लेगा और पत्नी भी ढूंढ़ लेगा। इसलिए यह उक्ति प्रचलित हुई है- आप मरे जग प्रलयÓ अपनी मृत्यु का अर्थ है-सारे संसार का विनाश। निष्कर्षत: जीवन में धन का महत्व है, किंतु धन से अधिक महत्व पत्नी का है और इन दोनों से भी कहीं अधिक महत्व व्यक्ति के अपने प्राणों का है, जिनके बिना धन और पत्नी का होना अथवा न होना एक समान है।

-चाणक्य नीति

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