31-Jul-2014 10:51 AM
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ऋतु परिवर्तन के साथ ही कुछ खास व्याधियां भी पनपने लगती हैं। अगर इनसे बचने का उपाय नहीं किया गया तो रोगग्रस्त होने की संभावनाएं अधिक बढ़ जाया करती हैं।

पेचिश : इस रोग में बार-बार शौच जाने की शंका बनी रहती है। दस्त अधिक मात्रा में नहीं होते जबकि उसमें चिकनाई युक्त आंव आता रहता है।
* फिटकरी को पानी में फुलाकर पीस लें और उसे खाली कैप्सूल में भर लें (खाली कैप्सूल कमिस्ट के दुकानों में मिल जाते हैं)। एक-एक कैप्सूल सुबह-शाम लेने से फायदा होता है। फिटकरी की मात्रा एक रत्ती लें।
* अधपके बेल के गूदे को पानी में उबालकर छान लें। इसमें उचित अनुपात में शहद मिलाकर देने से लाभ होता है। इन दोनों उपायों में से किसी एक का ही प्रयोग रोगी पर करना चाहिए।
डायरिया : इस रोग में रोगी को बार-बार पतले दस्त होते हैं एवं नाभि के आसपास या पेट के निचले भाग में मरोड़ होती है।
* सोंठ, पीपर, धनिया, बड़ी हरड़ और अजवायन समान मात्रा में लेकर पीसकर रोगी को पिलाने से अत्यन्त लाभ होता है।
* आंवला, आम और जामुन की कोमल पत्तियों का दो तोला रस निकालकर एक छटांक बकरी का दूध और थोड़ा-सा शहद मिलाकर पिलाने से रक्त मिश्रित डायरिया में फायदा होता है।
पीलिया : इसके होने पर अचानक भूख खत्म हो जाती है। जी मिचलाने लगता है। पेट के दांयें भाग में दर्द होने लगता है। मूत्र, आंख एवं त्वचा के साथ ही नाखून का रंग पीला होने लगता है। बाइलीरूबिन नामक पदार्थ के रक्त में सामान्य से अधिक हो जाने पर यह रोग हो जाता है।
* कलमी शोरा दस ग्राम तथा शक्कर पचास ग्राम लेकर दोनों को महीन पीस लें। इन दोनों पिसी वस्तुओं को बराबर मात्रा में बीस जगह बांट दें। दही में थोड़ी भुने जीरे की मात्रा (पीसकर) मिला दें। दही के इस घोल के साथ प्रतिदिन सुबह-दोपहर, शाम एक-एक पुडिय़ा को लेने से पीलिया समाप्त हो जाता है। * दस ग्राम हल्दी के चूर्ण को पचास ग्राम दही के घोल में मिलाकर कुछ दिनों तक पिलाने से पीलिया में राहत पहुंचती है।
बदहजमी : इस बीमारी में खाई-पीई वस्तु पचती नहीं है और पेट हमेशा भारी-भारी लगता रहता है। आवश्यकता से अधिक खाने से, अधिक चटपटा या गरिष्ठ भोजन करने से या भोजन के तुरन्त बाद संभोग करने से यह बीमारी हो
जाती है।
* पिसी हल्दी 20 ग्राम, काली मिर्च 20 ग्राम तथा काला नमक 20 ग्राम लेकर चूर्ण बनाकर रख लें। भोजन के तुरन्त बाद 2 ग्राम चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें।
मलेरिया : यह बुखार कभी ठंड देकर आता है तो कभी उष्णता के साथ। कभी बुखार कम होता है तो कभी अधिक। ज्वर के चढऩे-उतरने का समय निश्चित नहीं होता है। मच्छरों के काटने से मलेरिया बुखार होता है।
* तुलसी के पत्ते के रस में शहद बराबर मात्रा में मिलाकर दो ग्राम काली मिर्च के चूर्ण को मिलाकर दिन में तीन बार सेवन कराने से मलेरिया दूर हो जाता है।
त्वचा रोग : बरसात के दिनों में नमी तथा दूषित पानी की वजह से त्वचा रोग होने की संभावनाएं काफी रहती हैं। खुजली, फुंसी, बाल तोड़, पित्ती आदि के रूप में त्वचा के रोग हो जाते हैं जो काफी परेशान करते हैं।
* आंवला एवं गंधक को पीसकर ग्लिसरीन में मिलाकर लगाने से सूखी खुजली में लाभ पहुंचता है।
* गंधक एक भाग, तिगुना आंवला सार में मिलाकर नारियल तेल के साथ फेंटकर लगाने से गीली खुजली में लाभ पहुंचता है।
* घमौरियों (अम्हौरिया) को धोकर उस पर बारीक मैदा छिटक देने से लाभ होता है।
आई फ्लू : आंख का लाल-लाल होना, आंख में कीचड़ का जमना, प्रकाश सहन नहीं होना, सिरदर्द, कान के पास सृजन आदि लक्षण आई फ्लू के होते हैं। इसे आंख आना भी कहते हैं। निम्नांकित उपचार फायदेमंद होते हैं।
* हरड़ को मोटा-मोटा कूटकर पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर आंखों को धोने से आराम मिलता है।
* बेल के पत्तों को पीसकर पुलटिस बनाकर नेत्रों पर रखने से आराम होता है।
* बरसात में प्रतिदिन आंखों में गुलाब जल डालना लाभकारी है।
फ्लू : वर्षा ऋतु में सर्दी, खांसी एवं जुकाम कभी भी हो सकता है। नाक से पानी निकलना, खांसी होना, सिर में दर्द, आलस्य का आना, बदन में दर्द आदि प्रारम्भ हो जाता है। फ्लू को मामूली समझकर छोड़ देने से क्षय रोग एवं दमा भी हो सकता है।
* एक छोटी इलायची, एक टुकड़ा अदरक, दो रत्ती कपूर, पांच लौंग तथा छह तुलसी के पत्तों को पान के पत्ते में रखकर खाने से सर्दी-जुकाम में लाभ होता है तथा नाक से टपकने वाला पानी बन्द हो जाता है। बदन में चुस्ती आती है।
* बेर के कोमल पत्तों को गाय के घी के साथ भूनकर उसका चूर्ण बना लें। एक आना भर चूर्ण में दो रत्ती सेंधा नमक पिसा हुआ मिला दें। सुबह, दोपहर, शाम को प्रतिदिन पानी के साथ लेने पर खांसी जाती रहती है।