जो शिव है वही सत्य एवं सुंदर है
31-Jul-2014 09:12 AM 1236576

सत्य के कई अर्थ हैं। एक अर्थ में जो अविनाशी, चिरंतन और शाश्वत है वही सत्य है। दूसरे अर्थों में इंद्रियों द्वारा देखना, सुनना, जानना एवं अनुभव करना सत्य है। तीसरे अर्थ में इस चराचर प्राणी जगत के एक अंश के रूप में स्वयं के होने का एहसास ही सत्य है। इन तीनों अर्थों में ईश्वर सत्य है, सनातन है, अनुभव योग्य तथा कल्याणकारी है। तभी कहते हैं कि राम नाम सत्य है और जगत मिथ्या है।Ó जगत को मिथ्या इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह परिवर्तनशील, क्षणभंगुर और नाशवान है। परमात्मा की महिमा इसलिए है क्योंकि वह सत्य है, शिव है और सुंदर है। यहां सत्य और सुंदर का अर्थ तो हमने जाना, पर शिव क्या है? शिव शब्द का अर्थ है कल्याणकारी। जो कल्याणकारी है, वही सुंदर है और जो सुंदर है वही सत्य है। इस प्रकार सत्यम, शिवम, सुंदरमÓ जैसे मंत्र का उत्स या बीज शिव ही है अर्थात इस सृष्टि की कल्याणकारी शक्ति।
सुंदरता का तात्पर्य किसी दैहिक या प्राकृतिक सौंदर्य से नहीं है। वह तो क्षणभंगुर है। सुंदरता वास्तव में पवित्र मन, कल्याणकारी आचार और सुखमय व्यवहार है। इस सुंदरता का चिरंतन सोत शिव ही है। पर स्वयं शिव का सौंदर्य दिव्य ज्योति स्वरूप है, जिसे इन भौतिक आंखों से देखा नहीं जा सकता, उसे सिर्फ रूहानी ज्ञान, बुद्धि एवं विवेक से समझा व जाना जाता है। उनके गुणों तथा शक्तियों का अनुभव किया जा सकता है। ध्यान की अवस्था में मन को एकाग्र कर उसे ललाट के मध्य दोनों भृकुटियों के बीच ज्योति रूप में अनुभव किया जा सकता है।  गीता में प्रसंग है कि ईश्वर ने अपने विश्वरूप का दर्शन कराने के लिए अर्जुन को दिव्य चक्षु रूपी अलौकिक ज्ञान की रोशनी दी थी। परमात्मा को देखने के लिए स्थूल नहीं, आत्म ज्ञान रूपी सूक्ष्म नेत्रों की जरूरत होती है, जो योगेश्वर ने प्रदान किया। उन्होंने अर्जुन को समझाया कि कर्मेंद्रियों से मन श्रेष्ठ है, मन से बुद्धि श्रेष्ठ है और बुद्धि से भी आत्मा श्रेष्ठ है। यानी आत्मा सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए खुद को आत्मा रूप में निश्चय कर के ही तुम मेरे (मेरे परमात्मा रूप का) दिव्य स्वरूप का दर्शन कर सकोगे।
शिव शब्द परमात्मा के दो प्रमुख कर्तव्यों का द्योतक है। शÓ अक्षर का अर्थ पाप नाशकÓ है और वÓ अक्षर का भावार्थ है मुक्तिदाता।
अक्सर लोग शिव और शंकर को एक ही मान लेते हैं, लेकिन दोनों में अंतर है। शिव निराकार ज्योतिबिंदु स्वरूप, ज्योतिर्लिंग परमात्मा हैं। शंकर दिव्य मानवीय कायाधारी देवात्मा हैं। ज्योतिर्लिंग के रूप में लोग जिस जड़ लिंग प्रतिमा की आराधना करते हैं, वह शिव का ही प्रतीक है। इसीलिए धर्म ग्रंथों में राम और कृष्ण जैसे देवता भी शिवलिंग की पूजा-वंदना की मुद्रा में दिखते हैं। देवता अनेक हैं। लेकिन देवों के देव महादेव, निराकार परमपिता परमात्मा एक ही हैं। और वह शिव हैं।  शिव पुराण, मनुसंहिता एवं महाभारत के आदि पर्व में, शिव को अंडाकार, वलयाकार तथा लिंगाकार ज्योति स्वरूप बताया गया है। जो कि ज्ञान सूर्य के रूप में अज्ञानता रूपी अंधकार को नष्ट करते हैं। ज्ञान एवं योग की ये प्रकाश किरणें पूरे संसार में बिखेर कर वे समग्र मनुष्य, जीव एवं जड़ जगत का कल्याण करते हैं।  जैसे आत्मा रूप में ज्योति बिंदु है और ज्ञान, शांति, शक्ति, प्रेम, सुख, आनंद आदि उसके गुण स्वरूप हैं, वैसे ही परमात्मा शिव रूप में ज्योति बिंदु होते हुए भी आध्यात्मिक ज्ञान एवं शक्तियों में गुणों के रूप में अवस्थित हैं। जब मनुष्य आत्मा सांसारिक कर्म में आता है, तब उन्हीं की कृपा से उसके लोक एवं परलोक दोनों सिद्ध होते हैं। अपने मन, बुद्धि को ईश्वरीय ज्ञान एवं सहज राजयोग के आधार पर जगत के नियंता एवं केंद्र बिंदु परमात्मा शिव से जोड़ के रखने से ही मनुष्य अपने किए हुए विकर्मों एवं पापों को योग की अग्नि से भस्म कर देवात्मा पद को प्राप्त कर सकता है और मानव समाज तथा संपूर्ण प्राणी जगत को सतोप्रधान तथा सुखदायी बना सकता है।

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^