कावेरी जल विवाद पर कर्नाटक में तकरार
19-Feb-2013 10:46 AM 1234882

उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार कर्नाटक ने तमिलनाडु के लिए कावेरी नदी का पानी छोडऩा भले ही शुरू कर दिया है। किन्तु इस पर राजनीति जारी है। विपक्ष ने भी सरकार के इस कदम की तीखी आलोचना करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। इससे अल्पमत का खतरा झेल रही कर्नाटक सरकार मुश्किल में है। हालात यहाँ तक खराब हो गए हैं कि अब सरकार ने बाँध के आस-पास पर्यटन पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। उधर मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार ने मजबूरी जताते हुए कहा है कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार  पानी छोडऩे का निर्णय किया गया है।
येदियुरप्पा ने मांग की है कि शेट्टार को तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने कहा,भाजपा सरकार तमिलनाडु के एजेंट की तरह काम कर रही है। इसे पानी छोडऩा बंद करना चाहिए और कर्नाटक की स्थिति से अवगत कराने के लिए प्रधानमंत्री के पास प्रतिनिधिमंडल ले जाना चाहिए। बारिश न होने से कावेरी बेसिन के सभी जलाशयों में पानी कम हो गया है और राज्य पहले से ही पीने के पानी की किल्लत का सामना कर रहा है। विवाद की गंगा में हाथ धोते हुए विधानसभा में कांग्रेस के नेता विपक्ष सिद्धारमैया ने भी तमिलनाडु के लिए पानी छोडऩे की निन्दा की है। पिछले पांच वर्ष से कानून का उपहास उड़ा रहे केंद्र सरकार से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के फैसले की अधिसूचना जारी करने के लिए 20 फरवरी तक का समय दिया है । कोर्ट ने कहा कि सरकार के पास इस बारे में अब कोई कोई अधिकार या विकल्प नहीं है। शीर्ष अदालत ने कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए दो टीएमसी [करीब 56 सौ करोड़ लीटर] पानी छोडऩे का निर्देश दिया था । साथ ही केंद्रीय जल आयोग को इस मुद्दे पर आपस में झगड़ रहे इन दोनों राज्यों के जल की जरूरत पर एक रिपोर्ट पेश करने को कहा। शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार उस कानून से बंधी हुई है जिसके तहत वर्ष 1990 में पांच फरवरी को कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया गया था। इस न्यायाधिकरण ने पांच फरवरी 2007 को अपना अंतिम फैसला दिया लेकिन उस फैसले पर अमल नहीं हो पाया क्योंकि केंद्र सरकार ने अपने गजट में उसे अधिसूचित ही नहीं किया। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि उसके फैसले की अधिसूचना 20 फरवरी के पहले जितनी जल्द हो सके उतनी जल्द जारी कर दी जाए। इसके पहले सरकार ने अदालत को भरोसा दिलाया था कि वह 31 जनवरी तक न्यायाधिकरण के फैसले की अधिसूचना जारी कर देगी लेकिन इसके बाद सरकार ने इसके लिए और समय की मांग की थी। न्यायमूर्ति एनपी सिंह की अध्यक्षता वाले इस न्यायाधिकरण ने कावेरी में कुल 740 टीएमसी जल माना था। तमिलनाडु ने इसमें से 562 टीएमसी मांगा था लेकिन ट्रिब्यूनल ने उसे 419 टीएमसी, कर्नाटक ने 465 टीएमसी मांगा था तो उसे 270 टीएमसी, केरल को 30 टीएमसी और पुडुचेरी को सात टीएमसी पानी देने का फैसला किया था। पर्यावरण की रक्षा के लिए 10 टीएमसी पानी रिजर्व रखने का फैसला दिया था।
कावेरी नदी के बँटवारे को लेकर चल रहा विवाद 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ। उस वक्त ब्रिटिश राज के तहत ये विवाद मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज के बीच था। 1924 में इन दोनों के बीच एक समझौता हुआ। लेकिन बाद में इस विवाद में केरल और पांडिचारी भी शामिल हो गए और यह विवाद जटिल हो गया। भारत सरकार द्वारा 1972 में बनाई गई एक कमेटी की रिपोर्ट और विशेषज्ञों की सिफारिशों के बाद अगस्त 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते की घोषणा संसद में भी की गई। लेकिन इस समझौते का पालन नहीं हुआ और ये विवाद चलता रहा। इस बीच जुलाई 1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) के तहत इस मामले को सुलझाने के लिए आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार से एक न्यायाधिकरण के गठन किए जाने का निवेदन किया। केंद्र सरकार फिर भी इस विवाद का हल बातचीत के ज़रिए ही निकाले जाने के पक्ष में रही।  केंद्र सरकार ने 2 जून 1990 को न्यायाधिकरण का गठन किया। अब तक इस विवाद को सुलझाने की कोशिश चल रही है।  इस बीच न्यायाधिकरण के एक अंतरिम आदेश ने मामले को और जटिल बना दिया है। 1991 में न्यायाधिकरण ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक कावेरी जल का एक तय हिस्सा तमिलनाडु को देगा। हर महीने कितना पानी छोड़ा जाएगा, ये भी तय किया गया। लेकिन इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ।  इस बीच तमिलनाडु इस अंतरिम आदेश को लागू करने के लिए ज़ोर देने लगा। इस आदेश को लागू करने के लिए एक याचिका भी उसने उच्चतम न्यायालय में दाखिल की। पर इस सबसे मामला और पेचीदा ही होता गया।  इस विवाद पर कर्नाटक और तमिलनाडु, दोनों ही तटस्थ रवैया अपना रहे हैं। कर्नाटक मानता है कि अंग्रेज़ों की हुकूमत के दौरान वो एक रियासत था जबकि तमिलनाडु सीधे ब्रिटिश राज के अधीन था। इसलिए 1924 में कावेरी जल विवाद पर हुए समझौते में उसके साथ न्याय नहीं हुआ।  दूसरी ओर तमिलनाडु का मानना है कि 1924 के समझौते के तहत तय किया गया कावेरी जल का जो हिस्सा उसे मिलता था, वो अब भी जारी रखा जाना चाहिए।
धर्मेन्द्र कथूरिया

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