सट्टेबाजी का खेल
21-Jun-2014 04:34 AM 1234973


आईपीएल भले ही खत्म हो गया लेकिन जिन लोगों ने सट्टे में लाखों-करोड़ों रुपये डुबो दिये वे अपने जख्म अब भी सहला रहे हैं। आईपीएल विशुद्ध सट्टेबाजी का खेल बन चुका है और ऐसा लगता है कि सट्टेबाज ही आईपीएल खेलते हैं। इस बार भी देश के विभिन्न शहरों में सैकड़ों रुपये से लेकर लाखों रुपये तक का सट्टा आईपीएल पर खेला गया और हमारी सरकारें देखती रहीं। यदि आईपीएल इसी तरह सट्टेबाजी का खेल बना रहेगा तो इसे रोकना ही उचित होगा।

  • सुरेश यादव, इंदौर

खसरे सार्वजनिक हों

बीडीए जिन क्षेत्रों में योजनायें बना रहा है या अन्य ऐसी ही संस्थायें किसी क्षेत्र विशेष का विकास कर रही हैं तो उससे संबंधित खसरे की जानकारी वेबसाइट पर दी जानी चाहिये। साथ ही जो खसरे छोड़ दिये गये हैं उन्हें क्यों छोड़ा गया उसकी जानकारी भी वेबसाइट पर रहनी चाहिये। जिन खसरों को छोड़ा जाये वहां अगले 10 वर्ष तक किसी प्रकार के निर्माण की अनुमति न दी जाये। इससे जमीनों के बढ़ते दामों पर रोक लग सकेगी और बिल्डरों की मनमानी से भी ग्राहकों को निजात मिलेगी। कलेक्टर रेट भी जिस तरह से बढ़ाये जा रहे हैं वह चिंता का विषय है। कलेक्टर रेट बढऩे के कारण ही प्रॉपर्टी बाजार आम आदमी की पहुंच से दूर होता जा रहा है। इसे आम आदमी के दायरे में लाने की जरूरत है।

  • सुमन शाह, भोपाल

 

बेरहम समाज

उत्तरप्रदेश के बदायूं जिले में जो कुछ हुआ उसे बयान करने में भी शर्म आती है। भारत एक विकसित देश बनने की कगार पर है लेकिन लोगों की मनोवृत्ति को  विकसित करने और आधुनिक बनाने में सदियां लग जायेंगी। बदायूं में उन दो बहनों के साथ जो कुछ हुआ उसके पीछे समाज का बिगड़ता माहौल जिम्मेदार है। उत्तरप्रदेश में दलितों और सवर्णों का संघर्ष अभी भी जारी है। दबंगों द्वारा दलितों को रौंदने और उनकी महिलाओं के साथ कुकर्म करने की घटनायें जितनी प्रकाश में आती हैं उससे कहीं अधिक घटनायें तो पुलिस में दर्ज ही नहीं हो पाती हैं। पुलिस भी क्या करे? उसकी लाचारी है। सत्ता चाहे किसी की भी हो रहती दबंगों के हाथों में ही है। इसी कारण गरीबों और दलितों को इंसाफ नहीं मिल पाता। बदायूं में जो कुछ हुआ उसके बाद किसी को कड़ी सजा हो सकेगी इसकी ग्यारंटी नहीं है।

  • सुचित्रा सिंह, लखनऊ

 

सिर्फ आस्था का ही नहीं

गंगा के प्रति आस्था तो हर हिंदू प्रकट करता है लेकिन गंगा सिर्फ आस्था से पुनर्जीवित नहीं होगी। उसे नया जीवन देने के लिये हमें जागरुक बनना पड़ेगा। कुछ लोग नदी में फूल, पूजन सामग्री, दूध, नारियल, दिये और मुर्दों की राख यह सोचकर अर्पित करते हैं कि इससे नदी और देवता प्रसन्न होंगे। लेकिन इस सामग्री का नदी के जीवन पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है यह इन नादानों को नहीं मालूम। इसीलिये आस्था से ज्यादा जरूरी है लोगों को जागरुक बनाया जाये। ऐसी आस्था किस काम की। जिसके चलते नदी का जीवन ही नष्ट हो जाये।

  • सज्जन कुमार, इलाहाबाद
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