16-Apr-2014 08:38 AM
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तंत्र शास्त्र में काली हल्दी अर्थात कृष्णा हरिद्रा को चमत्कारी माना गया है। सही समय और सही विधि के अनुसार यदि तांत्रिक उपाय किए जाएं तो जातक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। किसी श्रेष्ठ मुहूर्त में नित्य कर्मों से निवृत्त होकर

इन उपायों को करना चाहिए।
* काली हल्दी, अक्षत और चांदी का एक टुकड़ा लेकर इन्हें किसी नवीन वस्त्र में बांधकर धूप-दीप से पूजा करें तत्पश्चात इसे अपने घर की अथवा दुकान की तिजोरी अथवा धन स्थान में रख दें। आय के साधनों में वृद्घि होगी।
* काली हल्दी को अच्छी तरह से साफ करके देवालय में भगवान श्री विष्णु और मां लक्ष्मी के समीप रख दें। प्रतिदिन धूप-दीप से उसकी पूजा करें। धन आगमन के रास्ते बनेंगे।
* बिजनेस घाटे में जा रहा हो तो शुक्ल पक्ष के पहले बृहपतिवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौडिय़ां बांधकर 108 बार ऊँ नमो भगवते वासुदेव नम: मंत्र का जाप करें। धन रखने के स्थान पर रख दें व्यवसाय में दिन दुगुनी रात चौगनी तरक्की होगी।
* धन धान्य से संपन्न होने के बावजूद निवेश न हो पा रहा हो तो शुक्लपक्ष के पहले शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिन्दूर को साथ में रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखने के स्थान पर रख दें। ऐसा करने से निवेश के साधन बनने लगेंगे।
* काली हल्दी को विधिवत साफ करके देवालय में भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी के स्वरूप के समीप रख दें। प्रतिदिन सुबह उसकी आराधना करें। आय के साधनों में वृद्घि होगी। धन आगमन के रास्ते बनेंगे।
कुण्डली मिलवाने के बावजूद तलाक क्यों?
सामाजिक मानसिक एवं दैनिक आवश्यकता है विवाह शास्त्रीय सोलह संस्कारों में एक महत्वपूर्ण संस्कार है विवाह। विवाह संबंध स्थापित करने से पूर्व जब वर वधू की कुंडली मिलवाई जाती है तो कैसे गुण ग्रह मिलते हैं। उस समय ज्योतिष ज्ञाता कहते हैं कि 26 गुण मिलते हैं। यह कुण्डली विष्णु लक्ष्मी जी जैसी है लेकिन कुछ ही समय के उपरांत यह विष्णु लक्ष्मी जी जैसी जोड़ी कोर्ट कचहरी के चक्कर काट रही होती है, आखिर क्यों?
जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में स्थित है उसके आधार पर कुंडली मिलान किया जाता है। जिसे आम भाषा में गुण मिलान भी कहा जाता है। इस विधि में वर एवं कन्या के नामाक्षर अथवा जन्म नक्षत्र की एक सारणी से मिलान करके परिणाम निकाला जाता है। इस गुण मिलान में त्रुटी हो जाए तो 36 में से 30 32 गुण मिलने वालों में भी तलाक की नौबत आ जाती है एवं कई बार कुंडली नहीं मिलने के बाद भी दंपति सुखी वैवाहिक जीवन का र्निवाह करते है।
गुण मिलान से अधिक महत्वपूर्ण है वर एवं वधु की कुंडली का पंचम भाव (पंचमेश) सप्तम भाव (सप्तमेश), नवम भाग (भाग्यदेश) एवं एकादश भाव (लाभेश) की विशेष रूप से जांच करना। पंचमेश भाव में से विद्या, पद, उन्नति एवं संतान के बारे में पता लगाया जा सकता है। वर तथा कन्या की वृद्धि का स्तर लगभग समान होना चाहिए। धार्मिक प्रवृति का विश्लेषण भी सफल विवाह के लिए आवश्यक होता है। यदि कन्या धर्मपरायण है और वर विपरित प्रवृति का है तो भी बैमनस्य उत्पन्न हो सकता है। अत: दोनों की कुण्डलियों में नवम भाव बृहस्पति गृह की स्थिति और बल का अवलोकन करना भी अति आवश्यक है। विवाह के उपरांत संतान की कामना भी स्वभाविक है। बृहस्पति गृह संतान का कारक ग्रह है। यदि वर का यह पक्ष दुर्बल है तो कन्या का दुर्बल होना चाहिए। पति पत्नि के आपसी रिश्तों की मजबूरी के कारण शुक्र तथा व्ययेश ग्रह है। इस पक्ष की ग्रहण विश्लेषण की आवश्यकता आज के युग में अति महत्वपूर्ण है।
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह की अनुकूलता से व्यक्ति भौतिक सुख पाता है। इसके अलावा शुक्र यौन अंगों और वीर्य का कारक भी माना जाता है। विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दष्टिपात कर लेना चाहिए। यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख में वृद्धि होती है।