02-Apr-2014 09:59 AM
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अनेक घोटालों की गंगोत्रीÓ और नेताओं से लेकर अधिकारियों के आर्थिक सशक्तिकरण का गृहउद्योगÓ व्यावसायिक परीक्षा मंडल के गठन के लिए अभी तक अधिसूचना ही जारी नहीं की गई है। व्यावसायिक परीक्षा मंडल का जन्म

1970 में मध्यप्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड द्वारा गठित प्री-मेडिकल टेस्ट बोर्ड के माध्यम से हुआ था। 1981 में प्री-इंजीनियरिंग बोर्ड का गठन हुआ। 1982 में सरकार के आदेश क्रमांक 1325-1717-42-82 (दिनांक 17.4.1982) द्वारा दोनों बोर्डों को मिलाते हुए प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड गठित किया गया था। जो कि एमईटी, प्री-एमसीए, प्री-पीजी, पीपीटी, पीईपीटी और पीएटी, पीएमटी, जीएनटीएसटी सहित लगभग एक दर्जन चयन परीक्षाओं को संचालित करता था। बाद में सन् 2007 में व्यावसायिक परीक्षा मंडल जिसे अंग्रेजी में मध्यप्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड कहा जाता है, अस्तित्व में आया। लेकिन बोर्ड का यह अस्तित्व जिस अधिनियम, मध्यप्रदेश प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड एक्ट 2007-के द्वारा निर्मित हुआ वह केवल हवा-हवाई ही है। वास्तव में देखा जाए तो इस अधिनियम के तहत बोर्ड के गठन के लिए न तो कोई बैठक आयोजित की गई और न ही बोर्ड का नोटिफिकेशन हुआ। जवाबदार यह कहते हैं कि वर्तमान में बोर्ड धारा 25 के तहत संचालित है। सवाल यह है कि जब प्रक्रिया पूरी ही नहीं की गई तो बोर्ड अस्तित्व में आया कैसे।
देखा जाए तो वर्ष 2007 से लेकर आज तक मुख्य सचिव से सीनियर आईएएस अधिकारी इस बोर्ड के चेयरमैन रहे हैं। जिसमें अजीत रायजादा, रणवीर सिंह, एमके रॉय, रंजना चौधरी, सुदीप सिंह, दिलीप सामंतरे, देवराज बिरदी जैसे अधिकारी कार्य कर चुके हैं। वहीं प्रदेश के मुख्य सचिव राकेश साहनी, अवनि वैश्य, आर परशुराम, एंटनी डि-सा जैसे विद्वान अधिकारियों ने भी मंडल के गठन का नोटिफिकेशन जारी करना प्राथमिकता के तौर पर उचित नहीं समझा। बोर्ड की धारा 1(3) बिंदु में साफ लिखा हुआ है कि यह बोर्ड ऐसी तारीख को प्रर्वत होगा जिसे राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा नियत करे इसका अर्थ यह है कि जब तक राज्य सरकार की अधिसूचना जारी नहीं होगी तब तक बोर्ड प्रवर्त नहीं किया जा सकता। उच्चाधिकारियों के पास इसका कोई जवाब नहीं है क्योंकि कोई भी अधिसूचना आज तक जारी हुई ही नहीं है। ऐसे में बोर्ड किस हैसियत से काम कर रहा है और किस हैसियत से इसने अब तक परीक्षाएं संचालित की हैं। यह सवाल उच्च न्यायालय जबलपुर ने खड़ा कर दिया है। इस सवाल का जवाब देने में बोर्ड के उच्चाधिकारियों और सरकार को अब पसीने छूट रहे हैं। इसी प्रकार बोर्ड की धारा-3 (1) में स्पष्ट लिखा हुआ है कि राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल के नाम से ऐसी तारीख से एक मंडल की स्थापना करेगी जैसा कि सूचना में विर्निदिष्ट किया जाए। इससे साफ है कि बोर्ड के गठन के लिए अधिसूचना जारी की जाएगी, लेकिन कब अधिसूचना जारी हुई इसका क्या रिकार्ड है। यदि अधिसूचना जारी नहीं हुई है तो बोर्ड को एक संवैधानिक बॉडी माना जा सकता है या इसे मंडल की संज्ञा दी जा सकती है। सभी निगम मंडलों के गठन की जो प्रक्रिया है उसमें अधिसूचना जारी होना एक अनिवार्य कदम कहा जाता है, लेकिन व्यावसायिक परीक्षा मंडल पूरी तरह निराधार है।
मंडल का अध्यक्ष धारा 6(1) के अंतर्गत नियुक्त किया गया व्यक्ति होता है, जिसे चेयरपर्सन कहा जाता है। यह राज्य सरकार द्वारा मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव की श्रेणी का कोई अधिकारी होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में 1984 बैच के प्रमुख सचिव एपी श्रीवास्तव प्रमुख बनाए गए हैं। सरकार की क्या मजबूरी थी कि इतने जूनियर अफसर को वहां पर काबिज किया गया। इसी कारण व्यापमं भी उसी सीबीआई के समान बिना किसी प्रवर्तन और अनुमोदन के संचालित हो रहा है और बात की जा रही है कि व्यापमं के समस्त घोटालों की जांच सीबीआई की दो जाए। जबकि दोनों संस्थाएं बिना नोटिफिकेशन के ही काम कर रही हैं जो कि संवैधानिक रूप से उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं होना चाहिए। सीबीआई के अस्तित्व को कुछ समय पहले एक कोर्ट में चुनौती दी गई थी। बाद में केंद्र सरकार ने इस प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया, लेकिन संसद में सीबीआई को एक मान्यता प्राप्त संस्था के रूप में गठित करने की प्रक्रिया अभी भी पूर्ण नहीं हुई है। यही हाल व्यापमं का है। यूं देखा जाए तो व्यापमं में चेयरपर्सन के अलावा कई शीर्ष अधिकारियों को बोर्ड में रखा जाता है, इसके अतिरिक्त नॉमिनेटेड सदस्य भी होते हैं, लेकिन व्यापमं के अधिकारियों ने कई बार नोटिफिकेशन के लिए लिखा पर किसी भी विद्वान उच्चाधिकारी ने तवज्जों देना उचित नहीं समझा।
व्यापमं में 25 सदस्यों का संचालक मंडल होना चाहिए जिसमें 15 सदस्य बाहर से होते हैं, लेकिन ये सदस्य कौन होंगे यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। इसी कारण भ्रम की स्थिति बनी हुई है। अध्यक्ष की शक्तियां तथा कर्तव्य स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं पर वह अध्यक्ष उस पद के अनुरूप तो होना चाहिए तभी वह अपने पद का सही उपयोग कर सकता है। लगता है इसमें किसी की रुचि नहीं है या लापरवाही जानबूझकर की जा रही है या व्यापमं जैसे महत्वपूर्ण मंडल के लिए कोई समय नहीं है। अभी अधिकारी व्यापमं के अधिनियम के बिंदु 25 के अंतर्गत धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन कुछ नियमों का हवाला देते हुए व्यापमं के संचालन को उचित ठहरा रहे हैं। दरअसल 2007 के अधिनियम में मंडल की स्थापना पर आगामी परिणाम शीर्षक से 25वें बिंदु में धारा 3 की उपधारा (1) को विस्तार से बताते हुए कहा गया है कि इस उपधारा के अधीन मंडल की स्थापना के लिए विनिर्दिष्ट तारीख से आगामी परिणाम होंगे और जो बिंदु (नीचे लिखे) हुए हैं उनमें कहा गया है कि उपरोक्त तारीख के ठीक पूर्व विद्यमान व्यावसायिक परीक्षा मंडल, मंडल में विलीन हो जाएगा। राज्य सरकार के विद्यमान व्यावसायिक परीक्षा मंडल की समस्त अस्तियां और दायित्व धारा 3 के अधीन स्थापना मंडल में निहित हो जाएगी। विद्यमान व्यावसायिक परीक्षा मंडल के या उसके नियंत्रण के अधीन समस्त कर्मचारी धारा 3 के अधीन स्थापित किए गए मंडल के कर्मचारी समझे जाएंगे, लेकिन आगे यह भी कहा गया है कि ऐसे कर्मचारियों की सेवा के निबंधन तथा शर्ते उपरोक्तानुसार उपांतरित नहीं की जाएंगी जो कि उनके लिए कम अनुकूल हों। इससे स्पष्ट है कि जो जिस पद के योग्य है वही उस पद पर विराजेगा। सवाल यह है कि क्या इस धारा का पालन वर्तमान में किया जा रहा है। जब यह मामला कोर्ट के संज्ञान में आ चुका है ऐसी स्थिति में व्यापमं को सही कानूनी रूप देने के लिए सरकार क्या कदम उठाएगी इसका आभाष संभवत: लोकसभा चुनाव के बाद हो।
निरस्तीकरण, बर्खास्तगी जारी
व्यापमं घोटाले की कलई ज्यों-ज्यों खुल रही है वैसे-वैसे विभिन्न विभागों में भ्रष्टाचार के दम पर नौकरी पा गए कर्मचारियों और मेडिकल सीट पैसा देकर हथियाने वाले विद्यार्थियों की बर्खास्तगी तथा निरस्तीकरण का दौर जारी है। व्यावसायिक परीक्षा मंडल ने पीएमटी 2013 में गड़बड़ी करके मेरिट में जगह बनाने वाले 24 छात्रों की परीक्षा निरस्त कर दी है और 8 छात्रों को संदिग्ध सूची में रखा है। बताया जाता है कि इन छात्रों के लिए बिहार से कोई स्कोरर बैठा था जिसने परीक्षार्थियों को अधिक नंबर लाने में सहायता प्राप्त की। इन्हें रोल नंबर भी बैठक व्यवस्था को ध्यान में रखकर जारी किए गए थे। खास बात यह है कि पीएमटी 2013 में 40 उम्मीदवार तो ऐसे हैं जिन्होंने अपने परीक्षा फार्म में एक ही पता लिखा है यह पता है काका देव कानपुर यहां कोचिंग इंस्टीट्यूट संचालित किए जाते हैं। ये सभी संदिग्ध उन 876 उम्मीदवारों में शामिल हैं जिनके नाम व्यावसायिक परीक्षा मंडल ने पात्रता निरस्त करने के लिए एसटीएफ को सौंपे थे। इस सिलसिले में आरोपियों तक पहुंचने के लिए एसटीएफ ने यह जांच पड़ताल भी की है कि क्या एक ही कियोस्क से इन लोगों की फीस भरी गई थी। उधर संजीव सक्सेना के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुका है और उनकी संपत्ति कभी भी कुर्क हो सकती है। इस बीच व्यापमं के जरिए वर्ष 2012-13 में हुई पुलिस सिपाही भर्ती में पैसे देकर पास हुए 7 सिपाहियों और 3 दलालों को जेल भेज दिया गया है। दो सिपाहियों को रिमांड के बाद जेल भेजा गया। एसटीएफ के पत्र पर कार्रवाई करते हुए विभाग ने पुलिस सिपाही भर्ती परीक्षा में पैसे देकर भर्ती हुए सिपाही आशीष शर्मा को बर्खास्त कर दिया है। कुछ और बर्खास्तगी भी हो सकती है। दलाली में गिरफ्तार सतीश कुमार शाक्य, डॉ. मन्नू पटेल और स्कोरर हेमंत सिंह जाट से एसटीएफ ने 1 लाख 35 हजार रुपए जब्त किए हैं, लेकिन पैसे लेकर स्कोरर मुहैया कराने वाला मुख्य सरगना अभी भी अप्राप्त है। उसकी तलाश में एसटीएफ की टीम बिहार गई हुई है। उधर बड़े लोगों को बचाने का खेल जारी है। नियुक्तियों में अपने-अपनों को स्थान दिलाने के लिए किन लोगों ने सोर्स लगाए और किन के पास सोर्स लगाए गए यह एसटीएफ के समक्ष खुलासा हो चुका है। इस सिलसिले में संघ के एक स्वर्गवासी बड़े पदाधिकारी का नाम भी सामने आया था। हालांकि जांच अभी की जानी बाकी है। जिस तरह आए दिन व्यापमं में खुलासे हो रहे हैं उसे देखते हुए लग रहा है कि आने वाले कुछ माह के दौरान इस पूरे घोटाले में अवश्य कोई नया मोड़ आएगा। विपक्षी दल कांग्रेस का विरोध जारी है।
मेरे कार्यकाल में व्यापमं के नोटिफिकेशन के संबंध में कोई मुद्दा नहीं उठा। सामान्यत: यह होता है कि जब तक नई बॉडी नहीं बनती पुरानी को जारी रखते हैं।
अवनि वैश्य, पूर्व मुख्य सचिव, मप्र