18-Mar-2014 10:40 AM
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रतनगढ़ में सात साल के भीतर दो बड़े हादसों पर सरकार का रवैया वही टालमटोल का है। पहले जांच आयोग ने रतनगढ़ में लापरवाही की पुष्टि करते हुए कुछ अनुसंशाएं की थी बाद में सरकार ने कैबिनेट उपसमिति का गठन किया जिसमेंं

जयंत मलैया, उमाशंकर गुप्ता, नरोत्तम मिश्रा थे। इस उपसमिति ने जो कुछ निष्कर्ष निकाला था उसके आधार पर अनुसंशाएं की गई थी। जांच आयोग ने भी निष्कर्ष निकालते हुए कहा था कि सुरक्षा उपाय नहीं किये गये थे। लेकिन इसके बाद कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई अब कैबिनेट की नई उपसमिति का गठन हो गया है इस समिति में पुराने चेहरों में से उमाशंकर गुप्ता की जगह वसुंधरा राजे को शामिल किया गया है। सवाल यह है कि यह नई उपसमिति पुरानी उपसमिति के निष्कर्षों को बदलेगी? यदि नहीं तो नई उपसमिति की आवश्यकता ही क्या है? और यदि हां तो पुरानी उपसमिति के निष्कर्ष गलत क्यों थे कि उन्हें बदलने की आवश्यकता पड़ रही है। नई उपसमिति में भी तकरीबन वही चेहरे हैं,ये लोग अपने ही पूर्व निष्कर्ष को झुठला कैसे सकते हैं? एक सवाल यह भी है कि चुनाव से पूर्व अचानक इतनी सक्रियता क्यों दिखाई जा रही है।
नई उपसमिति की एक बैठक 5 मार्च को विधानसभा में बाबूलाल गौर के कक्ष में हो चुकी है। इस बैठक में मात्र यह निर्णय लिया गया कि चर्चा आगे बैठक में की जाए। दूसरी बैठक 13 मार्च को रखने का निर्णय लिया गया। आदर्श आचार संहिता लगने के कारण उपसमिति की बैठक करने हेतु चुनाव आयोग से अनुमति मांगी गई थी, आयोग द्वारा बैठक न करने के निर्देश गृह विभाग को दिए गए। इस घटना को 7 वर्ष से अधिक हो गए हैं। सरकार को चुनाव के चलते हुए इतना उतावलापन क्यों है। अधिकारियों को बचाने के लिए या नापने के लिए 1 अक्टूबर 2006 को दुर्गा नवमी के अवसर पर रतनगढ़ वाली माता के मंदिर में प्रार्थना तथा पूजा करने हेतु सिंध नदी को पार करते समय 47 व्यक्तियों की डूबकर मृत्यू हो गई थी। सरकार के पूछने पर विभाग ने अभिमत दिया था कि कलेक्टर दतिया ने मेला व्यवस्था हेतु समीक्षा बैठक आयोजित कर अपर कलेक्टर दतिया को समस्त विभागों एवं सेवाओं के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया तथा सुरक्षा आदि के दायित्वों का निर्वाहन करने के लिए जिम्मेदारी अनुविभागीय अधिकारी राजस्व एवं पुलिस को दी गई किंतु समय-समय पर समीक्षा कर आवश्यकता अनुसार तैनात बल में वृद्वि भले ही की गई हो परंतु घटना को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त नहीं थी। बहाव की स्थिति पता होने के बाबजूद जिला कलेक्टर ने गंभीरता से व्यवस्था जमाने की चिंता नहीं की। इसी प्रकार पुलिस अधिक्षक दतिया ने भी सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ करने में लापरवाही की। खास बात यह है कि जल स्तर अचानक नहीं बढ़ा था बल्कि सिंध नदी पर मणिखेड़ा बांध तथा मोहनी पिकपवेयर से पानी की निरंतर निकासी की जा रही थी पर सभी तीर्थ यात्रियों को पर्याप्त सूचना देने के साधन नहीं जुटाये गये। उपसमिति ने भी यही निष्कर्ष निकाला था और कहा था कि ऐसे अवसरों पर पानी छोडऩे की जानकारी समय पर देने तथा सुरक्षा प्रबंध करने हेतु उत्तरदायित्व का निर्धारण किया जाना आवश्यक है। सवाल यह है कि नए सिरे से क्या निष्कर्ष निकाले जाएंगे और क्यों।
जैसा कि वर्ष 2005 में धाराजी हादसे के बाद प्रस्तुत प्रतिवेदन में भी कहा गया है कि घटनाओं की पुरावृत्ति रोकने के लिए यह आवश्यक है कि म.प्र. शासन, गृह विभाग के दिनांक 28.07.05 को जारी ज्ञापन का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें। ऐसी घटनाएं जिनमें अधिकारियों की नेतृत्वहीनता, उपेक्षा तथा लापरवाही के कारण मृत्यु होती है, को दंडनीय अपराध बनाये जाने के लिए विचार किया जाए। प्रत्येक जिले में तीन माह अवधि के अंदर कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक सहयोगी अधिकारियों के विचार विमर्श के बाद नियमित मेले आयोजन के संबंध में स्थायी व्यवस्था का प्रारूप तैयार करें एवं संभाग के कमिश्नर द्वारा स्वीकृत कराये। ये अनुशंसाएं 7 वर्ष तक धूल खाती रहीं अब फिर से मंत्रिमंडलीय समिति वही कवायद दोहराएगी। मंत्री जयंत मलैया कहते हैं कि बैठक में बहस के उपरांत पिछली अनुशंसाओं पर नई कमेटी पुन: विचार करेगी। उधर मंत्री बाबूलाल गौर का कहना है कि जब तक पटल पर नहीं रखी जाए तब तक कमेटी की अनुशंसा लागू नहीं होती। अब देखना है इस हादसे पर कोई ठोस कदम उठाया जाएगा या नहीं।
जब तक पटल पर न रखें तब तक एक्जीक्यूशन नहीं हो सकता। उस समय के हालात अलग थे और अभी के हालात अलग हैं। उस समय पुल नहीं था। इसीलिए नए तरीके से विचार करना होगा।
बाबूलाल गौर
समिति की बैठक में बहस के बाद तय होगा कि क्या किया जाए। पहले भी समिति ने अनुशंसा की थी। आवश्यकता पड़ी तो नई अनुशंसा की जाएगी।
जयंत मलैया
मुझे ज्यादा याद नहीं है पर संभवत: जांच समिति की अनुशंसा को लगभग मान लिया गया था।
उमाशंकर गुप्ता