30-Nov-2012 06:30 PM
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मध्यप्रदेश में वेलस्पन एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी द्वारा प्रस्तावित ताप विद्युतघर का विरोध दिनों-दिन तीव्रतर होता जा रहा है। दीपावली की रात जिले में उद्योग के लिए जमीन अधिग्रहित किए जाने से क्षुब्ध एक महिला ने आग लगाकर कथित रूप से आत्महत्या कर ली। कहा जाता है कि यह महिला पहले ही आत्महत्या करने की धमकी प्रशासन को एक शपथपत्र में दे चुकी थी, लेकिन उसकी धमकी पर कोई विचार नहीं किया गया।
कटनी जिले की बरही तहसील में वेलस्पन कंपनी का बिजली संयंत्र स्थापित किया जा रहा है इसके लिए बुजबुजा व डोकरिया गांव के किसानों की लगभग 14 सौ एकड़ जमीन अधिग्रहित की जानी है। इस अधिग्रहण से 230 परिवार प्रभावित हो रहे हैं जिनमें से 80 प्रतिशत किसी भी कीमत पर जमीन दिए जाने के पक्ष में नहीं हैं। किसानों का आरोप है कि प्रशासन उनसे जबरन जमीनें छीन रहा है। जबकि प्रशासन का कहना है कि वह जो भी जमीनें ले रहा है वह सारी जमीनें किसानों की सहमति से ही अधिग्रहित की जा रही है जिस महिला सुनिया बाई ने कथित रूप से आत्महत्या की है उसकी अन्य लोगों के साथ संयुक्त साझेदारी में जमीन थी कहा जाता है कि उसके साथ के लोग जमीन सरकार को देने के लिए राजी थे, लेकिन सुनिया बाई इसके पक्ष में नहीं थी इसीलिए आपसी तनातनी भी चल रही थी। अभी तक 1.79 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की जा चुकी है। किसानों का कहना है कि जमीन अधिग्रहण के बदले में उन्हें जो पैसा मिलना था वह मिला नहीं है। सुनिया की आत्महत्या के बाद किसान उसके शव को लेकर प्रदर्शन करने लगे, लेकिन बाद में पुलिस के हस्तक्षेप से सुनिया बाई का अंतिम संस्कार किया गया। पाक्षिक अक्स ने इस अधिग्रहण पर गांव वालों के माध्यम से जो अंदरूनी सच्चाई प्राप्त की है उसके अनुसार सुनिया बाई की आत्महत्या के बाद सुनिया के परिजन उसका अंतिम संस्कार करना चाह रहे थे, लेकिन गांव के ही कुछ प्रभावशाली लोगों ने अंतिम संस्कार रोकते हुए प्रदर्शन का सुझाव दिया और सारे गांव की राय के आगे सुनिया के परिजनों को झुकना पड़ा। हालांकि बाद में परिजनों के कहने पर पुलिस ने बाकी प्रदर्शनकारियों को अलग करते हुए अंतिम संस्कार कराने में मदद की, लेकिन पुलिस के ऊपर भी जबर्दस्ती अंतिम संस्कार कराने का आरोप लगाया गया है।
मध्यप्रदेश में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन का इतिहास बहुत पुराना है। नर्मदा बचाओ आंदोलन मध्यप्रदेश की जमीन से उठकर सारे भारत में फैला। अंतत: सरकार ने मुआवजा देकर तथा पुनर्वास पैकेज देकर जनाक्रोश को शांत करने का प्रयास किया किंतु आंदोलन अभी भी जारी है। कुछ माह पूर्व आंदोलनकारी पानी में खड़े होकर विरोध जता रहे थे, जिनकी पूरी मांगों को सरकार को मानना पड़ा। मध्यप्रदेश में यह आंदोलन लगातार चल रहे हैं क्योंकि मध्यप्रदेश उन राज्यों में से है जहां जमीनों का सबसे ज्यादा अधिग्रहण हुआ है और इस विस्थापन की पीड़ा आदिवासियों, गरीबों तथा वंचितों को भोगनी पड़ी है। यह बड़े कौतूहल का विषय है कि जब भी विस्थापन होता है ये ही लोग उसकी चपेट में आते हैं। आज तक किसी भी ताकतवर व्यक्ति को अपनी जमीन विस्थापन के चलते नहीं गंवानी पड़ी। इसी कारण आंदोलन भड़कते हैं और भड़काए जाते हैं। क्योंकि जनाक्रोश हर विस्थापन के साथ बढ़ रहा है। कटनी में भी किसानों ने पहले चिता बनाकर विरोध किया और बाद में अन्य तरीकों से अपना विरोध जताया। विरोध करने वालों का आरोप है कि वेलस्पन एनर्जी को 14 सौ एकड़ जमीन की आवश्यकता है। जिसका जबरन अधिग्रहण किया जा रहा है। जबकि किसान अपनी पुस्तैनी और कृषि भूमि को बेचने से कतरा रहे हैं आरोप यह भी है कि कंपनी ने मध्यप्रदेश सरकार के कुछ अफसरों से सांठगांठ करते हुए डीआईए रिपोर्ट में असत्य भ्रामक एवं बेबुनियाद तथ्य प्रस्तुत किए हैं। इन आरोपों में कितनी सच्चाई है यह तो विस्तृत पड़ताल से ही पता लगेगा किंतु प्रारंभिक जानकारी में जो सच्चाई सामने आई है उसके अनुसार कुछ हिस्सा बफर जोन (टाइगर रिजर्व) में आता है और यहां पर सबसे बड़ा खतरा महानदी के अस्तित्व को लेकर जताया जा रहा है जो कि क्षेत्र की एकमात्र सदानीरा नदी है। इस नदी का पानी उक्त प्लांट में उपयोग के लिए लिया जाएगा। दूसरी तरफ पानी में प्रदूषण की आशंका भी जताई जा रही है जिसके कारण हजारों एकड़ कृषि भूमि अनुपयोगी हो सकती है। भीतर की बात यह भी है कि इन तथ्यों से बीते वर्ष मार्च माह में पर्यावरण मंत्रालय को अवगत करा दिया गया था और उस समय जनसुनवाई में किसानों ने अपनी आपत्तियां भी दर्ज कराई थी, लेकिन आपत्तियों पर ध्यान दिए बगैर वेलस्पन एनर्जी को पर्यावरण की स्वीकृति मिल गई यह स्वीकृति संदेह उत्पन्न कर रही है किस आधार पर यह स्वीकृति दी गई क्योंंकि भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही गैरकानूनी तरीके से की गई है तथा ग्राम सभा का जो प्रस्ताव कंपनी ने बनाया है वह भी फर्जी बताया जाता है। पूर्व विधायक सरोज बच्चन नायक ने भी इस मामले में सरकार से हस्तक्षेप की मांग की थी और उन्होंने विरोध भी किया था। स्थानीय निवासियों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण के विरोध में ग्राम सभा कई बार प्रस्ताव पारित कर चुकी है, लेकिन सरकार द्वारा लगातार इसकी उपेक्षा की जा रही है, उधर कंपनी द्वारा वोटर लिस्ट के आधार पर फर्जी अनापत्ति प्रमाण पत्र दर्ज कराने की बात भी सामने आई है। कहा जा रहा है कि जिन लोगों के द्वारा यह अनापत्ति दी गई है वह जीवित ही नहीं हंै और उनकी मृत्यु काफी पहले हो चुकी है (देखें संलग्न सूची) इस बात की जानकारी पाक्षिक अक्स के पास है यह भी बताया जा रहा है कि एक ही व्यक्ति ने कई बार अनापत्ति प्रमाण पत्र देकर गुमराह करने की कोशिश की है। किसानों की आपत्ति से कहीं अधिक महत्वपूर्ण तथ्य है कंपनी द्वारा पर्यावरण मानकों का उल्लंघन। इस क्षेत्र में जैव विविधता को लेकर पहले से ही चिंता जताई जा रही है क्योंकि क्षेत्र में स्थापित अन्य औद्योगिक इकाईयों ने आसपास के जैवतंत्र को पर्याप्त नुकसान पहुंचाया है। वेलस्पन एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड जो प्लांट लगाने वाली है उसके लिए महानदी के पानी का 60 एमसीएम हिस्सा उपयोग में लाया जाएगा। जबकि नदी की कुल जल क्षमता ही 500 एमसीएम है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि क्षेत्र में 17 दूसरे उद्योग भी स्थापित किए जा रहे हैं। जाहिर है ये भी अपनी जरूरतों का पानी इस नदी से ही प्राप्त करेंगे। पानी प्राप्त करना एक अलग विषय है, लेकिन औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के साथ ही नदियां दम तोड़ देती है इसका उदाहरण भारत में प्राय: हर औद्योगिक शहर में मौजूद है कहने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट नदी को जहरीला बना देता है। दूसरी सबसे बड़ी समस्या इस प्लांट से उडऩे वाली धूल और राख की है। राजधानी भोपाल से लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर दूर सारणी ताप विद्युत घर ने जंगलों का क्या हश्र किया है यह वहीं जाकर देखा जा सकता है। खुली आंखों से दिखता है कि उड़ती हुई कोयले की कालिख ने जंगलों की खूबसूरती खत्म करके जंगलों को नष्ट कर डाला है। कटनी में स्थापित होने जा रहे विद्युत प्लांट के लिए भी केवल 350 एकड़ का फ्लाइएश तालाब निर्मित किया जा रहा है यह तालाब उत्पादन होने के पांच वर्ष के भीतर ही राखड़ से भर जाएगा। बाद में यह राखड़ तालाब से ओवरफ्लो होकर पूरे जंगल में फैलेगी और जंगल लील लेगी। इसकी बानगी सारणी में देखी जा सकती है। बाकी अन्य जगह भी कमोबेश यही स्थिति है। यही कारण है कि किसान विरोध पर उतर आए हैं। पहले पहल उन्हें लगा था कि अच्छा पुनर्वास पैकेज मिलने से वे आजीविका के वैकल्पिक साधन जुटाने में कामयाब रहेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। बाद में जब पर्यावरण प्रेमियों ने किसानों को भविष्य में होने वाली दुर्दशा के प्रति आगाह किया तो उनका विरोध प्रदर्शन और बढ़ गया। अब यह विरोध सरकार के लिए बहुत बड़ा सरदर्द बनता जा रहा है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने किसानों को संतुष्ट करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए हैं। इसी वर्ष फरवरी माह में मध्यप्रदेश के पुनर्वास विभाग ने एक आदेश पारित करते हुए लगभग 15 बिंदुओं में कंपनी को यह निर्देश दिए थे कि वह पुनर्वास कार्यक्रम को उचित तरीके से अंजाम दे, लेकिन लगता है कंपनी ने सरकार के दिशा-निर्देशों को ठीक से सुना नहीं। सरकार ने कहा था कि सभी वर्गों को उचित मुआवजा देते हुए प्रति विस्थापित परिवार परिवहन व्यय तथा अन्यत्र जगह अधोसंरचना बनाने के लिए उचित शुल्क कंपनी द्वारा अदा किया जाना चाहिए इसके अलावा विकलांगों, विधवाओं, वरिष्ठ नागरिकों को पेंशन, विस्थापित परिवारों के सदस्यों को योग्यता अनुसार किसी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में प्रवेश करने पर 500 सौ रुपए प्रतिमाह छात्रवृत्ति तथा इंजीनियरिंग कॉलेज या अन्य व्यावसायिक उपाधि संस्थान में प्रवेश करने पर एक हजार रुपए प्रतिमाह की छात्रवृत्ति के साथ-साथ कक्षा 1 से लेकर 12 तक के विस्थापित विद्यार्थियों को अलग-अलग मद में प्रतिमाह छात्रवृत्ति देने का निर्देश भी सरकार ने कंपनी को दिया था। सरकार का आदेश था कि कम से कम प्रत्येक विस्थापित परिवार को ढाई लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए। मुआवजे की अधिकतम रकम तय नहीं की गई थी, लेकिन किसानों का कहना है कि कंपनी उनके साथ धोखाधड़ी कर रही है। गलत दस्तावेज लगाकर और गलत रिपोर्ट प्रस्तुत कर कंपनी द्वारा जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है जो कि अनुचित है।
कटनी का यह विरोध अब लगातार नई लड़ाई के साथ सामने आ रहा है। गांव के कई किसानों ने धमकी दी है कि वे अपनी जमीन वापस चाहते हैं। उधर आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज का मामला राजनीतिक रंग पकडऩे लगा है। कांग्रेस ने कटनी में किसानों के ऊपर अत्याचार का हवाला देकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस्तीफे की मांग की है। नेताप्रतिपक्ष अजय ङ्क्षसह का कहना है कि सरकार को सभी विस्थापितों को पूर्ण सुविधा मुहैया कराना चाहिए। उसके बाद ही कंपनी को अपना काम शुरू करना होता है, लेकिन पूर्ण सुविधा मुहैया कराए बगैर कंपनी ने बाउंड्रीवाल का निर्माण कर लिया है। श्री सिंह का आरोप है कि वेलस्पन एनर्जी कंपनी के एमडी विनीत मित्तल मुख्यमंत्री के साथ तीन बार विदेश यात्रा कर चुके हैं। उधर जनतादल यूनाइटेड के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद यादव ने जमीन अधिग्रहण की समूची प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की है। यादव का कहना है कि वेलस्पन कंपनी को थर्मल पॉवर उत्पादन का कोई अनुभव नहीं है इसीलिए क्षेत्र में थर्मल पॉवर प्लांट लगाने से महानदी और सोन नदी में खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों का जमाव बढ़ेगा तथा जहरीले प्रदूषण की समस्या पैदा होगी। जनतादल यूनाइटेड की पूर्व विधायक सरोज बच्चन नायक इस पूरी परियोजना के विरोध में अनशन भी कर चुकीं हैं। यह मुद्दा इस बार मध्यप्रदेश विधानसभा में भूचाल भी ला सकता है जिसका सत्र आगामी चार दिसंबर से शुरू हो रहा है। कांग्रेस का आरोप है कि वेलस्पन कंपनी को बंजर और असंचित भूमि देने की बात हुई थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
द्यकुमार राजेंद्र