मैं किसी का कृपापात्र नहीं : अरुण यादव
18-Feb-2014 07:50 AM 1234868

राजस्थान और मध्यप्रदेश के कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की घोषणा एक ही दिन होनी थी। किंतु मध्यप्रदेश में यह दो दिन बात हुई क्या इसके पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका थी। कहते हैं सिंधिया के कृपा पात्र होने के कारण आपको यह पद मिला है।
मध्यप्रदेश के प्रदेशाध्यक्ष की घोषणा भी उसी दिन हुई। मुझे प्रदेशाध्यक्ष बनाने का निर्णय राहुल गांधी ने लिया। सिंधिया मेरे कलीग हो सकते हैं। मैं किसी का कृपा पात्र नहीं हूं। मुझे राहुल गांधी ने ये जवाबदारी दी है। उन्होंने मुझे इस लायक समझा कि मैं प्रदेश के अंदर कुछ कर सकता हूं।
यह जवाबदारी देने में काफी विलंब हुआ क्योंकि यहां कोई आने को तैयार नहीं था। जिस तरह की पराजय विधानसभा चुनाव में हुई उसे देखते हुए आपको ऐसा नहीं लगता कि लोकसभा चुनाव से 100 दिन पूर्व आपको बली का बकरा बनाया गया।
कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है इतने सारे कार्यकर्ता और काम करने वाले लोग इस पार्टी में हैं। राहुल गांधी ने समझा कि मैं पार्टी में प्रदेश में कुछ मदद कर पाऊंगा और इसीलिए मुझे भेजा गया। निश्चित रूप से आगामी लोकसभा चुनाव पार्टी के लिए महत्वपूर्ण चुनाव हैं और हमारा प्रयास यह है कि हम सब मिलकर इसको जीतें और पार्टी को मजबूत करें। समय कम हैं, लेकिन हम लोग निश्चित रूप से यह प्रयास कर रहे हैं।
आपके अध्यक्ष बनने की घोषणा के बाद राहुल गांधी आए और वे केवल महिलाओं से मिलकर चले गए। उन्होंने कहा कि घोषणा पत्र पर कुछ बात करनी है तो क्या केवल वे महिलाओं का वोट सुनिश्चित करने आए थे। उन्होंने युवाओं से, पार्टी कार्यकर्ता से, एनएसयूआई जैसे संगठनों से मिलना क्यों उचित नहीं समझा।
देखिए कांग्रेस ने एक कान्सेप्ट तैयार की है सारे देश में। जिसके तहत अलग-अलग विषय पर अलग-अलग लोगों से चर्चा होती है। मध्यप्रदेश में महिलाओं से चर्चा हुई थी कि घोषणा पत्र में हम आपकी क्या मदद कर सकते हैं। पंचायत राज के लिए वर्धा में मीटिंग हुई जिसमें सारे देश के लोग आए। दिल्ली में मीटिंग हुई वहां चर्चा की गई। हर जगह इस तरह से राहुल जी जाकर लोगों से चर्चा कर रहे हैं कि हमारे घोषणा पत्र में और क्या शामिल किया जाना चाहिए ताकि हम सभी वर्ग के लोगों को साधकर उनकी मदद कर सकें यह एजेंडा है। राहुल गांधी ने महिलाओं से घोषणा पत्र पर चर्चा की। उसके बाद वे पीसीसी में आए वहां सभी लोगों से मिले, पदाधिकारियों से मिले।
यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई अभी कांग्रेस को सपोर्ट करती है या नहीं।
बिल्कुल करती है। राहुल गांधी ने युवाओं को जोडऩे के लिए कार्यक्रम चलाया है। ऐसे-ऐसे लोग पार्टी से जुड़े हैं जो कभी पार्टी की मुख्यधारा में आने की कल्पना भी नहीं करते थे। जो एनएसयूआई का व्यक्ति है, जो सदस्य बना रहा है, चुनाव लड़ रहा है वह आगे बढ़ रहा है तो इसमें उसका अनुभव काम आता है।
वही तो उसका ईगो है। वह कहता है मैं चुनाव जीतकर आया हूं।
मैं आपकी बात से इसलिए सहमत नहीं हूं क्योंकि जो चुनाव जीतकर आता है वह उन लोगों को पार्टी की मदद के लिए तैयार करता है जिनके भरोसे वह जीता था। इससे निश्चित रूप  पार्टी को फायदा मिलता है।
मेरी जानकारी में 50 एमएलए से आपकी बात हुई है। उन्होंने कहा कि जो यूथ कांग्रेस की चुनाव की परंपरा है वह गलत है। इस परंपरा के कारण वह कहते हैं कि हम तो इलेक्ट होकर आए हैं। हम आपका काम क्यों करें।
मैं तो नहीं समझता कि इससे कोई नुकसान हुआ है। यह एक ऐसी अवधारणा है जिससे लाभ हुआ है। मैं खुद इस प्रक्रिया से आगे आया, बाकी लोगों को भी आगे आने का मौका मिला।
आप निमाड़ से हैं और निमाड़ में भी कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा।
2008 के विधानसभा चुनाव में हमारे पास एक सीट थी। 2009 में लोकसभा चुनाव हुआ हमारे पास पहले एक भी लोकसभा सीट नहीं थी। हम लोकसभा जीतकर आए। 2013 के विधानसभा चुनाव में हमने 4 सीटें जीती और तीन सीटें ऐसी हैं जहां हमारी हार का अंतर पांच हजार है। कहीं न कहीं इंप्रूवमेंट तो हुआ यदि प्रत्याशियों का चयन अच्छा होता तो ज्यादा सीटें जीत सकते थे।
आपके पिता स्व. सुभाष यादव कांग्रेस अध्यक्ष थे उसके बाद सुरेश पचौरी आए जिनके कार्यकाल में स्थिति थोड़ी सुधरी लेकिन कांतिलाल भूरिया सफल नहीं हो सके। अब लोकसभा चुनाव में आप क्या परिदृश्य देख रहे हैं।
निश्चित रूप से लोकतंत्र में अंतिम शक्ति जनता के पास ही होती है। इस दृष्टि से यदि आप 2009 का चुनाव देखें तो परिस्थितियां वैसी ही थी हम लोग सरकार में नहीं थे। उस समय कांग्रेस के पास तीन सीटें थी, लेकिन जब लोकसभा चुनाव हुआ तो 12 सीटें कांग्रेस ने प्राप्त की। इसलिए प्राप्त की क्योंकि कांग्रेस ने नए लोगों को मौका दिया। मैं उनमें से एक था, मीनाक्षी नटराजन थीं, सज्जन वर्मा थे। युवाओं को मौका मिली उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया। अभी स्थिति वैसी ही हैंं। यदि हमारा प्रत्याशी चयन अच्छा हुआ तो हम जीतेंगे।
मात्र 90-100 दिन बचे हैं ऐसे में कितनी सीट जीत सकते हैं आप।
देखिए निश्चित संख्या तो मैं नहीं दे सकता, लेकिन इतना कह सकता हूं कि पहले से बेहतर प्रदर्शन करेंगे हम। उस रणनीति पर काम जारी है और यह प्रयास भी कर रहे हैं कि इस बार नए लोगों को मौका मिलना चाहिए।
आपने हाल ही में एक भाषण में कहा था कि चुनाव परिणाम से कांग्रेस में मायूसी छा गई है। इस मायूसी को आप कैसे दूर करेंगे।
मैं लगातार दौरे कर रहा हूं, लोगों से कार्यकर्ताओं से मिला हूं। हार से थोड़ी सी मायूसी तो आ गई है, लेकिन लोकसभा चुनाव तक हम यह मायूसी दूर कर लेंगे।
विधानसभा के बाद लोकसभा चुनाव हो तो मतदाता को यह लगता है कि एक बार हमने उस पार्टी को जिताया था।
देखिए लोकसभा और विधानसभा चुनाव का परिदृश्य अलग होता है। 2003 में अटल जी की सरकार के समय इंडिया शाइनिंग जैसे नारे दिए गए, लेकिन जनता का निर्णय अलग आया। लगातार दो बार कांग्रेस जीती।
कांग्रेस में गुटबाजी की बात कही जाती है। राहुल गांधी भी इसे स्वीकार चुके हैं कि मध्यप्रदेश कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान है। दिग्विजय, सिंधिया, पचौरी, कमलनाथ के अलग-अलग गुट हैं। बाद में आपका, मीनाक्षी नटराजन और सज्जन वर्मा का नाम भी गुटबाजी में आया, तो कांग्रेस गुटबाजी की ही राजनीति करेगी या यह गुट एक साथ भी आएंगे।
हमारा एजेंडा यह है कि जो काम करे उसे आगे बढऩा चाहिए। जो काम न करे उसे मौका नहीं मिलेगा। चाहे वह किसी के भी साथ क्यों न जुड़ा हो। जब काम करने वाले लोग जुडऩे लग जाएंगे तो निश्चित रूप से बाकी लोग पीछे हो जाएंगे।
जो लोग पीछे से भितरघात कर रहे हैं उनका क्या इलाज करेेंगे। आपने अखबारों में भी पढ़ा होगा कुछ लोग गड़बड़ी फैला रहे हैं।
मेरा मानना है कि यदि सही काम करने वाले लोग आपके साथ जुड़ जाए तो समस्या अपने आप हल हो जाती है। जो किसी विधानसभा में काम कर रहे हैं जमीनी आदमी हैं तो वह स्वत: ही आगे निकल जाएगा। अगर अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव का आंकलन देखें तो 58 विधायकों में से 42 नए विधायक जीतकर आए हैं। उन लोगों ने अपने क्षेत्र में अच्छा काम किया।
विधानसभा चुनाव से पूर्व मध्यप्रदेश के बड़े नेताओं को, जो कांग्रेस को अपनी जागीर समझते हैं राहुल गांधी ने बुलाकर समझाने की कोशिश की, लेकिन वे भी नहीं समझा पाए तो आप उन्हें कैसे समझा पाएंगे।
मैंने सभी नेताओं से बात की है और कहा है कि हमें मिल-जुलकर पार्टी को आगे बढ़ाना है। मुझे उम्मीद है कि सभी नेता एकजुट होकर काम करेंगे और पार्टी आगे बढ़ेगी।
विधानसभा चुनाव के पहले सभी नेताओं ने एक मंच पर आकर एकजुटता प्रकट की थी फिर भी पार्टी चुनाव क्यों नहीं जीत पाई।
देखिए कहीं न कहीं कोई कमी रही होगी जिसकी वजह से हम चुनाव नहीं जीत पाए।

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