योगीराज पर लोकायुक्त की नरमी क्यों?
18-Feb-2014 06:33 AM 1234917

स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन संचालक योगीराज शर्मा के खिलाफ  स्वास्थ्य विभाग ने एक-एक जांच फिर खोलनी चालू कर दी है। किन्तु लोकायुक्त ने अभी तक उनके खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया है। योगिराज के विरुद्ध जितने मामले दर्ज हैं यदि उनमें त्वरित कदम उठाया जाता तो वे अब तक जेल की सलाखों के पीछे होते लेकिन उनके प्रति नरमी समझ से परे है। उल्लेखनीय है कि विभागीय जांच आयुक्त ने वैसे तो डॉ. योगीराज की आधा दर्जन अनियमितताओं के मामले में जांच की है परंतु मटीज कार को छोड़कर बाकी सभी मामलों में उन्हें क्लीनचिट दे दी है। परंतु शासन ने विभागीय जांच आयुक्त द्वारा जिन जांचों में डॉ. शर्मा को निर्दोश करार दिया था उन्हें दोबारा जांच कराने का निर्णय लिया है। इन सभी मामलों की जांच में खुले रूप से भण्डार क्रय नियमों के उल्लंघन के साथ वित्तीय अनियमितताएं पाई गई। बीपीएल परिवार स्वास्थ्य कार्ड बनवाने में कथित घोटाले के आरोपी योगीराज शर्मा को निर्दोश पाते हुए दोषमुक्त कर दिया था किन्तु बाद में विभाग ने जो जांचें करवाई उनमें शर्मा के विरुद्ध आर्थिक अनियमितता की बात प्रमाणित हुयी थी। प्रारंभिक जांच में करीब 110.62 लाख रुपये की अनियमितताएं पायी गयी  हैं।
नियम विरुद्ध खरीदी की होगी एफआईआर
सेक्टर निवेश कार्यक्रम (एसआईपी) में नियम विरुद्ध 4.24 करोड़ की खरीदी की शिकायत 17.8.2007 को लोकायुक्त में की गई थी। बाद में इस शिकायत में वर्णित गंभीर अनियमितताओं को दृष्टिगत रखते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को एक माह के भीतर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का कहा गया। इस मामले में यूरोपियन कमीशन की सहायता से संचालित सेक्टर निवेश कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 2005-06 के दौरान संचालक डॉ. योगीराज शर्मा द्वारा उक्त खरीदी की गई थी। उक्त खरीदी में मध्यप्रदेश राज्य भंडार क्रय नियमों का पालन नहीं किया गया तथ सामग्री भी घटिया खरीदी गई। इस पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रमुख सचिव स्वास्थ्य मदन मोहन उपाध्याय की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन दिनांक 1.4.2006 को चिकित्सा महाविद्यालयों के प्राध्यापकों के माध्यम से उक्त सामग्री जो जिलों में प्रदाय की गई थी उसका सत्यापन करने को कहा गया। सत्यापन में इंदौर के डॉ. अनिल भराणी एवं सुनील राजन द्वारा जांच में सामग्री की गुणवत्ता को घटिया पाया गया। डॉ. योगीराज शर्मा ने भी स्वीकार किया था कि लिनेन आदि का क्रय भंडार क्रय नियमों के अनुरूप हाथकरघा आयुक्त के माध्यम से किया जाना चाहिए था। किंतु उनके द्वारा उद्योग विभाग के परिपत्र क्रमांक एफ-14/पावरलूम/05/247 दिनांक 12.9.2005 का हवाला देते हुए क्रय आदेश सीधे मध्यप्रदेश राज्य हस्तकरघा एवं बुनकर सहकारी समिति जबलपुर तथा मध्यप्रदेश पॉवरलूम बुनकर सहकारी बैंक मर्यादित, बुरहानपुर को उनकी ही दरों पर दिए गए। यह दरें आयुक्त हाथकरघा द्वारा निर्धारित दरों से कहीं बहुत अधिक थी। खरीदी का यह आदेश बिना किसी पूर्व विभागीय क्रय समिति के अनुमोदन के दिया गया। सामग्री के नमूने प्राप्त नहीं किए गए। जिलों से मांग प्राप्त किए बिना ही लगभग 52 लाख रुपयों की गॉज बेंडेज खरीदी बुनकर सहकारी संघों के माध्यम से की गई।  6 फरवरी 2006 को एसआईपी की गर्वर्निंग काउंसिल की बैठक के कार्रवाई विवरण के बिंदु क्रमांक 4 द में भी इसका उल्लेख किया गया है। तत्कालीन स्वास्थ्य आयुक्त अशोक वर्णवाल ने उक्त खरीदी से संबंधित नस्ती पर टीप दर्ज की थी जिसमें उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि उन्होंने भी दिनांक 29 मार्च 2006 को स्वीकृति प्रदान की थी तथापि 7 अप्रैल 2006 को जब दो शिकायतें मिली थी। इस पर उन्होंने प्रकरण का गहनता से अध्ययन किया और पाया कि संपूर्ण खरीदी मध्यप्रदेश भंडार क्रय नियमों के अनुरूप नहीं थी। टीप में यह भी बताया गया कि 17.78 लाख रुपए मूल्य की हॉफ शीट एवं लगभग एक करोड़ रुपए मूल्य के कंबल एवं बेबी कम्बल के क्रय आदेश मध्यप्रदेश भंडार क्रय नियमों का उल्लंघन करके दिए गए। खास बात यह है कि अशोक वर्णवाल की टीप के बावजूद लिनेन सामग्री का भुगतान कर दिया गया।
सबसे पहले उठाया अक्स ने
पाक्षिक अक्स के मार्च 2007 के अंक में स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. राजेश राजौरा ने क्रय प्रक्रिया में प्रक्रियात्मक त्रुटि की बात स्वीकार की थी एवं इसके लिए बुनकर सहकारी संघों को तीन प्रतिशत राशि काटकर भुगतान कर दिया। बाद में इस वित्तीय अनियमितता पर तत्कालीन संयुक्त संचालक डॉ. केके ठस्सू ने पूर्व स्वास्थ्य आयुक्त अनुराग जैन द्वारा इस खरीदी से संबंधित ब्यौरा का पूर्ण विवरण दिया। अनुराग जैन ने इस बहुत गंभीरता से लेते हुए नस्ती पर निर्देश दिए थे कि पिंग-पांग खेलने के स्थान पर तयशुदा प्रक्रिया अपनाई जाए। खास बात यह है कि अशोक वर्णवाल और संयुक्त संचालक डॉ. केएल साहू द्वारा जब इस खरीद को संदेह के दायरे में खड़ा कर दिया। उक्त भुगतान से संबंधित नस्ती अपर संचालक वित्त को भेजी ही नहीं गई थी। तत्कालीन संचालक और आयुक्त द्वारा इस खरीदी का भुगतान कर दिया गया। बाद में जब विभागीय जांच में पूरे मामले का पर्दाफाश हो गया तो अब कहीं जाकर एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन सवाल वही है कि लोकायुक्त ने शिकंजा क्यों नहीं कसा। इस मामले में लोकायुक्त महोदय का कहना है कि विभागीय जांच आयुक्त द्वारा जांच करने पर विभाग सहमत नहीं था इसलिए सारे प्रकरणों की जांच विभाग द्वारा दोबारा की गई। प्रकरण मेरे पास पेंडिंग था मुझे बताया गया जब लोकायुक्त महोदय से पूछा गया कि जांच में भारी अनियमितताएं पाई गई हैं तो आपके द्वारा एफआईआर क्यों नहीं की गई। जवाब में कहा गया कि अगर फिर भी इन सब मामलों में विभाग एफआईआर नहीं करता है और मुझे कोई शिकायत करेगा तो मैं जांच करवाऊंगा। सीधे एफआईआर का कहेगा तो लोकायुक्त की पुलिस विंग जांच करके एफआईआर दर्ज करेगी, किंतु सरकार यदि किसी प्रकरण को एफआईआर के योग्य समझती है तो वह सीधे एफआईआर दर्ज करा सकती है। यदि किसी प्रकरण पर सरकार द्वारा जानबूझकर एफआईआर दर्ज न कराई जा रही हो तो लोकायुक्त उस स्थिति में जांच कर सकता है।
इन मामलों का क्या होगा
इलेक्ट्रॉनिक फिल्म डिवाइस विथ मोबाइल, चार्जर, यूनिट खरीदी, दिल्ली एवं चंडीगढ़ की अनियमित यात्रा स्वीकृति दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना के स्वास्थ्य कार्ड सहित कई घोटाले ऐसे हैं जिनमें मामले या तो परीक्षणाधीन हैं या फिर विभागीय जांच प्रतिवेदन अप्राप्त है। जांच प्रकरण क्रमांक 15/09 में योगीराज शर्मा पर इलेक्ट्रानिक फिल्म डिवाइस विथ मोबाइल चार्जर यूनिट की खरीदी में की गई अनियमितता में विभागीय जांच का प्रतिवेदन अप्राप्त है। इसी प्रकार जांच प्रकरण 16/07,179/07 एवं 148/04 में योगीराज शर्मा द्वारा टीके चेरियन एवं राजेश शर्मा को दिल्ली-चंडीगढ़ की अनियमित यात्रा स्वीकृत करने, डॉ. बीएल अग्रवाल को निर्धारित अनुबंध अवधि के बाद भी अनाधिकृत एवं अनियमित मानदेय का भुगतान करने तथा जेके मिश्रा तत्कालीन लेखापाल की गलत वरिष्ठता निर्धारित करते हुए अनियमित पदोन्नति के संबंध में विभागीय जांच के आदेश पांच नवंबर 2009 को दिए गए थे। इन तीनों प्रकरणों में 12.99 लाख रुपए की आर्थिक क्षति पहुंचाई गई थी। इन पर भी अभी कार्रवाई प्रचलन में है। इसी तरह लोकायुक्त जांच प्रकरण 48/09 में डा योगीराज शर्मा के पद पर रहने के दौरान वर्ष 2006-07 में दीनदयाल अंत्योदय उपचार योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए स्वास्थ्य कार्ड का मुद्रण आदेश वित्तीय प्रावधानों के विपरीत एवं क्षेत्राािकार के बाहर अनियमितता करने के संबंध में विभागीय जांच का निर्णय लिया जाकर दिनांक 24.10.2010 को आरोप पत्रादि जारी किए गए थे। आरोप पत्रादि का प्रतिवाद उत्तर अपचारी अधिकारी डॉ. शर्मा द्वारा प्रस्तुत नहीं करने के कारण विभागीय जांच का निर्णय लिया जाकर विभागीय जांच आयुक्त, भोपाल को जांचकर्ता अधिकारी एवं सुश्री शैलबाला मार्टिन, अपर संचालक, प्रशासन, स्वास्थ्य सेवायें, भोपाल को प्रस्तुतकर्ता अधिकारी नियुक्त किया गया था। जांच अधिकारी द्वारा जांच की कार्यवाही पूर्ण कर दिनांक 03.09.2013 को जांच प्रतिवेदन प्रेषित किया गया है, जिसमें अधिरोपित आरोप प्रमाणित होना नहीं बताया गया है, किन्तु प्रस्तुतकर्ता अधिकारी द्वारा प्रस्तुत संक्षेपिका में आरोप प्रमाणित होना बताया गया है। प्रस्तुतकर्ता अधिकारी द्वारा प्रस्तुत संक्षेपिका में आरोप प्रमाणित होना बताया गया है। प्रस्तुतकर्ता अधिकारी द्वारा विभागीय जांच आयुक्त के समक्ष प्रस्तुत संक्षेपिका में आरोप प्रमाणित होने के कारण डॉ. योगीराज शर्मा, तत्कालीन संचालक, स्वास्थ्य सेवाएं, भोपाल द्वारा शासन को पहुंचाई गई आर्थिक हानि की राशि की गणना करने हेतु वित्तीय सलाहकार, संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं, भोपाल से प्रतिवेदन उपलब्ध कराने हेतु दिनांक 11.11.2013 को लिखा गया था। अपर संचालक (वित्त) संचालनालय स्वास्थ्य सेवायें, भोपाल द्वारा डॉ. योगीराज शर्मा, तत्कालीन संचालक, स्वास्थ्य सेवायें, भोपाल द्वारा शासन को पहुंचाई गई हानि की राशि की गणना कर प्रतिवेदन दिनांक 13.12.2013 को प्रेषित किया गया है, जिसमें 110.62 लाख की अनियमिततायें परिलक्षित हुई है। प्रकरण में डॉ. योगीराज शर्मा से उक्त हानि की राशि वसूली करने के संबंध में कार्यवाही प्रचलन में है।

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