इर्रिटेबल बॉउल सिन्ड्रोम
16-Nov-2013 07:56 AM 1234850

हममें से बहुत से लोग ऐसे होंगे जो किसी प्रकार का मानसिक दबाव होने पर बार-बार मोशन या टायलेट की हाजत महसूस करते हैं। डॉक्टरों के अनुसार इर्रिटेबल बॉउल सिन्ड्रोम नामक यह रोग पाचन तंत्र की समस्या होने के साथ-साथ तनाव जनित मानसिक परेशानी भी है।
आईबीएस अर्थात् इर्रिटेबल बॉउल सिन्ड्रोम के लक्षण बहुत हद तक डाइरिया रोग से मिलते जुलते होते हैं। दोनों में अंतर सिर्फ यह है कि डायरिया रोग का कारक बैक्टीरिया होता है जबकि आईबीएस एक नॉन पैथोलॉजिकल समस्या है। पाचनतंत्र की गड़बड़ी के साथ-साथ तनाव तथा मानसिक दबाव भी इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। आजकल की भागमभाग भरी महानगरीय जिंदगी ऐसे तनाव को जन्म दे रही है कि आज लगभग हर पांचवां व्यक्ति तनावग्रस्त है। महिलाएं तथा टीनएजर्स भी इसके बड़े शिकार हैं। इन तनावग्रस्त लोगों में से एक बड़ा हिस्सा आईबीएस से भी ग्रसित होता है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह कोई बीमारी नहीं है अपितु एक तनावजनित समस्या है। जब किसी को यह शिकायत हो कि कुछ खाते ही मोशन जाना पड़ता है। या कुछ पचता ही न हो और सुबह दो-तीन बार मोशन जाना पड़ता है तो यह एक गंभीर समस्या है। चिकित्सकीय दृष्टि से यदि किसी व्यक्ति को मानसिक तनाव, डिप्रेशन या पेट के आसपास दर्द के साथ-साथ झाग भी आ रहे हों तो वह व्यक्ति आईबीएस का शिकार है।
दरअसल पाचन तंत्र हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लगभग सभी बीमारियों की शुरुआत पाचन तंत्र की गड़बड़ी से ही होती है। तनाव, चिंता, डिप्रेशन के कारण अमाशय की सक्रियता बढ़ जाती है जिस कारण थोड़ी-थोड़ी देर में या कुछ खाते ही मोशन जाना पड़ता है।
इस रोग में रोगी को शरीर में कमजोरी, जीवन के प्रति नीरसता, नींद न आना जैसी समस्याएं महसूस होती हैं। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता। चूंकि चिकित्सकों का मानना है कि आईबीएस एक मानसिक तनाव जनित समस्या है इसलिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाएं ताकि आप पर तनाव हावी न हो सके। अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय स्वयं के लिए निकाल कर आराम करें और छोटी-मोटी परेशानियों को तनाव का कारण न बनाएं। साथ ही संतुलित आहार लेना भी जरूरी है। भोजन में ऐसे खाद्य पदार्थों को शामिल करें जिनमें प्रोटीन, विटामिन तथा फाइबर्स अधिक हों। डिप्रेशन को कम करने में सुबह की सैर, व्यायाम तथा ध्यान की भूमिका महत्वपूर्ण होती है अत: इनको अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं। नींद न आना या नींद पूरी न होना भी इस रोग का एक महत्वपूर्ण कारण है इसलिए आपकी जिन्दगी चाहे जितनी व्यस्त हो सोने के लिए प्रतिदिन सात-आठ घंटे जरूर निकाल लें। शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि संगीत काफी हद तक तनाव को कम करता है। संगीत मानव के तंत्रिका तंत्र पर सीधा प्रभाव डालता है और न्यूरॉन तथा डेट्रोन के बीच खिंचाव को दूर करता है जोकि तनाव का मूल कारण होता है। इन सबके अतिरिक्त डॉक्टर की सलाह से बहुत आवश्यक हो तो एंटी डिप्रेशन दवाएं ली जा सकती हैं।
कुछ खाते ही यदि थोड़ी-थोड़ी देर में मोशन जाना पड़ रहा हो तो भोजन में से दूध निकाल दें। दूध का प्रयोग बिल्कुल न करें क्योंकि दूध में नेक्ट्रोजन होता है। इसके स्थान पर दही का प्रयोग किया जा सकता है। रोगी को छिलके वाली कोई भी दाल खाने को न दें। दैनिक आहार में रूक्षांश की मात्रा बढ़ाई जानी बहुत जरूरी है। आईबीएस से बचने का मूलमंत्र है खुश रहें और बेवजह का तनाव न पालें।

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