06-Nov-2013 07:31 AM
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हर चुनाव से पहले वंशीय राजनीति की पताका पहराने वाली कांगे्रस के भीतर से कुछ आवाजें उठती हैं। गांधी परिवार की अगली पीढ़ी के लिए। राहुल गांधी को तो हाथ-पैर जोड़कर राजनीति में आने के लिए मना ही लिया गया था। अब प्रियंका

की बारी है। कांग्रेसियों को लग रहा है कि लगातार लोकप्रियता खोती जा रही कांग्रेस में एक तुरुप का पत्ता बाकी है उसे भी चल दिया जाना चाहिए ताकि किसी तरह सत्ता हासिल हो सके। कांग्रेसी प्रकट रूप से भले ही न कहें लेकिन दबे रूप में यह मानते हैं कि राहुल की अपेक्षा प्रियंका गांधी राजनीति के लिए ज्यादा मुफीद हैं। जिस तरह की कार्यशैली से प्रियंका काम करती हैं उसे कांग्रेसी हलको में बेहद पसंद किया जाता है और वे प्रियंका में उनकी दादी इंदिरा गांधी को तलाशने की कोशिश करते हैं, लेकिन प्रियंका राजनीति से सुनियोजित तरीके से अलग हैं। उन्हें मालूम है कि वे सक्रिय राजनीति में आती हैं तो कांग्रेस में फिर से दो धु्रवीय राजनीति युद्ध शुरू हो जाएगा और प्रियंका तथा राहुल के नाम से गुटबाजी बढ़ जाएगी जो कि पहले से ही काफी है। इसीलिए प्रियंका ने पारिवारिक जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए स्वयं को राजनीति से अलग ही रखा है। वैसे भी उनका अनुभव न के बराबर है। भाई और माता के चुनाव क्षेत्र में प्रचार करने के अतिरिक्त प्रियंका किसी भी रूप में पार्टी में सक्रिय नहीं दिखाई देतीं। वे बहुधा लोकसभा चुनाव के समय बाहर निकलती हैं और एक सीमित क्षेत्र में मतदाताओं से अपील कर फिर अपनी पारिवारिक दुनिया में खो जाती हैं, लेकिन कांगे्रस में लगातार मांग उठ रही है कि प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में आना चाहिए। खासकर राहुल गांधी के ऊपर जिस तरह जिम्मेदारियां बढ़ी हैं उसके मद्देनजर प्रियंका को भार हल्का करने के लिए राजनीति में सक्रिय कराने का प्रयास कांग्रेस का एक धड़ा भीतर ही भीतर कर रहा है। प्रियंका को राजनीतिक तौर पर परखा नहीं गया है। लेकिन प्रियंका के करीबियों का मानना है कि अपने भाई की अपेक्षा वे ज्यादा सुव्यवस्थित और सटीक राजनीतिज्ञ हैं। कुछ लोग तो उन्हें राहुल गांधी के मुकाबले ज्यादा काबिल भी समझते हैं। यह भी कहा जाता है कि प्रियंका सक्रिय होती हैं तो महिलाओं के बीच कांग्रेस की लोकप्रियता में इजाफा होगा। यह सच है कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस में पहले इंदिरा गांधी और अब सोनिया गांधी ने कुशलता से पार्टी का संचालन भी किया और नेतृत्व भी प्रदान किया। लेकिन भारतीय जनता पार्टी सुषमा स्वराज जैसी योग्य नेत्री का समुचित उपयोग नहीं कर पाई। यहां तक कि जब प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी की घोषणा की बात उठी तो योग्य होते हुए भी और आडवाणी की पसंद होते हुए भी सुषमा स्वराज हाशिए पर धकेल दीं गई। लेकिन कांग्रेस में सोनिया गांधी भले ही प्रधानमंत्री न हों पर एक महत्वपूर्ण भूमिका में हैं और उनकी मर्जी से ही सत्ता चल रही है। इंदिरा गांधी के समय भी यही हालात थे, वे पद पर रहीं या न रहीं, लेकिन सत्ता में उनकी दखलंदाजी भरपूर थी। इंदिरा का अक्स ही प्रियंका में तलाशने का प्रयास किया जा रहा है। सोनिया गांधी उम्र और शारीरिक परिस्थितियों के समक्ष विवश हैं। वे सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद के प्रति न पहले लालायित थीं न अब लालायित हैं। पद की कामना से उन्होंने अपने आपको अलग रखा हुआ है। वैसे भी सोनिया अनिच्छुक राजनीतिज्ञ थीं। कांग्रेस ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगी थी उसे समेटने के लिए सोनिया को सक्रिय राजनीति में आना पड़ा। इसीलिए जब इलाहाबाद में एनएसयूआई के पूर्व जिलाध्यक्ष शिरीश चंद्र दुबे और कांग्रेस कमेटी सचिव हसीब अहमद ने एक फूहड़ सा होर्डिंग्स लगवाकर यह लिखा कि -
मईया अब रहती बीमार
भईया पर बढ़ गया भार
प्रियंका फूलपुर से बनो उम्मीदवार
तो कांग्रेस हलको में तूफान आ गया। आनन-फानन में दोनों पदाधिकारियों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया। यहां तक कि यह बयान भी आया कि दोनों नेताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा भी दर्ज कराया जाएगा। दोनों को पार्टी के किसी भी कार्यक्रम में शरीक नहीं होने दिया जा रहा है।
बताते चलें कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की लोकसभा सीट रही फूलपुर कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यहीं से प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनाव लड़ाने की मांग को लेकर शहर कांग्रेस कमेटी ने एक प्रस्ताव पास करके हाईकमान के पास भेजा, यहां से चुनावी उम्मीदवार बनाने की मांग के लिए बाकायदा शहर में होर्डिंग लगवाए दिए गए। गौरतलब है कि भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के सामने कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी के उतारे जाने की खबर पर जबरदस्त राजनीतिक हलचल मची। खबर आई कि अगले आम चुनाव में प्रियंका वाड्रा देशभर में कांग्रेस के लिए प्रचार करेंगी। खासकर उन इलाकों में जहां मोदी दौरा करेंगे। चैनलों ने कांग्रेस के बड़े नेता का हवाला दिया, पर नाम नहीं बताया।
फौरन बाद भाजपा के कई नेता बहस के मैदान में उतर आए। सबकी एक ही दलील- मोदी के सामने राहुल गांधी फेल हो चुके हैं। इसलिए प्रियंका को उतारा जा रहा है।Ó फिर क्या था... आधे घंटे भी नहीं बीते होंगे कांग्रेस प्रवक्ता अजय माकन सफाई देने खुद मैदान में आए। ठीकरा मीडिया पर फोड़ा, साजिश भाजपा की बताई।