18-Jan-2020 07:58 AM
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3जनवरी की सुबह इराक में बगदाद अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर जो कुछ हुआ, उसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने नए साल की शुरुआत के महज तीसरे ही दिन जिस प्रकार एक ही झटके में ड्रोन हवाई हमला करके ईरान के 62 वर्षीय शीर्ष कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी को मार डाला, उससे उन्होंने पूरी दुनिया को एकाएक एक और विश्वयुद्ध के मुहाने पर धकेल दिया है। हालांकि यह आने वाला समय ही बताएगा कि ईरान के रिवोल्यूनशरी गॉड्र्स कॉप्र्स के शीर्ष कमांडर सुलेमानी को इस प्रकार मार दिए जाने के बाद पहले से ही बेहद खराब चल रहे ईरान और अमेरिका के और कटुतापूर्ण हुए संबंधों का क्या परिणाम सामने आएगा लेकिन जिस प्रकार ईरान द्वारा लाल झंडे लहराकर अमेरिका के इस हमले का बदला लेने की चेतावनियां दी जा रही हैं, उससे इतना तो तय है कि इसका खामियाजा सिर्फ इन दो देशों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा।
ईरानी चेतावनियों और उसके जवाब में अमेरिकी धमकियों को देखते हुए आज हर किसी के दिलोदिमाग में अब एक ही प्रश्न कौंध रहा है कि कहीं यह तीसरे विश्वयुद्धÓ की आहट तो नहीं है? दरअसल एक तरफ जहां ईरान ने अमेरिकी कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन बताते हुए तेल का समुद्री रास्ता बंद करने की चेतावनी दी है और कहा है कि वह वाशिंगटन से अपने शीर्ष कमांडर की हत्या का सही समय पर बदला लेगा तो दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने तेवर कड़े करते हुए बार-बार कह रहे हैं कि अगर ईरान ने उसके हितों पर कहीं भी चोट पहुंचाने की कोशिश की तो अमेरिकी सेनाएं ईरान के चुनिंदा 52 ठिकानों को निशाना बनाने से नहीं चूकेंगी। दूसरी ओर ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला खोमैनी ने अमेरिका को जबरदस्त बदले और अंजाम भुगतने की धमकी दी है। इस पूरे प्रकरण से समूची दुनिया एक और खाड़ी युद्ध की ओर आगे बढ़ती दिख रही है और अगर ऐसा कुछ हुआ तो हर तरफ सिर्फ तबाही का ही मंजर सामने आएगा क्योंकि आज के दौर में साधारण तरीकों से लड़े जाने वाले युद्ध की कल्पना भी नहीं की जा सकती बल्कि अगर युद्ध हुआ तो उसमें अत्याधुनिक तकनीकों से सुसज्जित हथियारों और परमाणु हथियारों का खुलकर इस्तेमाल होगा, जिनका प्रभाव दुनिया के अनेक हिस्सों में देखा जाएगा।
ईरान के खिलाफ अमेरिका के इस कदम के विरोध में रूस, चीन जैसी महाशक्तियां खुलकर आ गई हैं। फ्रांस और जर्मनी जैसे देश भी ट्रंप के इस कदम से खुश नहीं हैं। दूसरी ओर, ब्रिटेन ने तो अमेरिका का साथ देते हुए अपना एक युद्ध पोत खाड़ी की ओर रवाना भी कर दिया गया है। ऐसे में अमेरिका के समर्थकों और विरोधियों की खेमेबंदी कहीं ज्यादा खुलकर सामने लगी है। पर अब अमेरिका के लिए ईरान ही नहीं, इराक भी गले की फांस बन गया है। विदेशी फौज की मौजूदगी खत्म करने को लेकर इराकी संसद ने हाल में जो प्रस्ताव पास किया है, उससे भी अमेरिका की नींद उड़ गई है। बदले में अमेरिका ने इराक पर अभूतपूर्व प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है। इराक की बौखलाहट इसलिए ज्यादा है कि हमले में उसके भी शीर्ष सैन्य अधिकारी मारे गए हैं और यह हमला उसकी जमीन पर हुआ है। इराक में अमेरिका का सबसे बड़ा सैनिक अड्डा है, जहां से अमेरिका ईरान और सीरिया के खिलाफ जंग की रणनीति बनाए हुए है। ऐसे में जोखिम भरे कदम उठाना अमेरिका के लिए भी कम महंगा नहीं पडऩे वाला।
सैन्य ताकत के मामले में ईरान भले ही अमेरिका के समक्ष कहीं टिकता नहीं दिखाई देता हो लेकिन इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि ईरान आज एक ऐसा देश बन चुका है, जिसके पास मिडल-ईस्ट में सबसे ज्यादा मिसाइल पावर है। उसके पास ऐसी मिसाइलों, क्रूज और लड़ाकू विमानों का बड़ा जखीरा मौजूद है, जिसका इस्तेमाल करते हुए वह अपने सबसे बड़े दुश्मन सऊदी अरब सहित खाड़ी के कई अन्य देशों को भी बड़ी आसानी से अपना निशाना बनाने का सामथ्र्य रखता है। हालांकि यह अलग बात है कि अमेरिका के पास ऐसी-ऐसी तकनीकों वाले हथियारों का बहुत बड़ा भंडार मौजूद है, जिससे वह अपनी ही जमीन से ईरान को नेस्तनाबूद करने की क्षमता रखता है। तस्वीर का दूसरा पहलू देखें तो रूस अमेरिकी कार्रवाई के खिलाफ ईरान के साथ खड़ा दिख रहा है और चीन तथा उत्तरी कोरिया जैसे ताकतवर देश भी पहले से ही अमेरिका के खिलाफ हैं और वे भी इस लड़ाई में ईरान का साथ दे सकते हैं। ऐसे में अगर विश्व युद्ध जैसे हालात बनते हैं तो ईरान को इन देशों का सहयोग मिलने से हालात बहुत खतरनाक हो सकते हैं।
वैश्विक स्तर पर नई मोर्चाबंदी की संभावना
बहरहाल, अमेरिका द्वारा सुलेमानी को मारे जाने के बाद आने वाले दिनों में वैश्विक स्तर पर नई मोर्चाबंदी खुलकर सामने आ सकती है। अगर दुनिया एक और खाड़ी युद्ध की ओर आगे बढ़ती है तो यह भी तय है कि भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में तेल की सप्लाई बाधित होगी, जिससे पहले से ही भारी दबाव झेल रही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती खड़ी हो सकती है। इसे अगर भारत के संदर्भ में देखा जाए तो तेल की आपूर्ति प्रभावित होने या कच्चे तेल के दामों में भारी वृद्धि होने से देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि हमारी करीब सत्तर फीसदी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति पश्चिमी एशिया के खाड़ी देशों से ही होती है। पहले से ही मंदी की शिकार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह बेहद मुश्किल दौर होगा। अगर आने वाले दिनों में खाड़ी युद्ध के हालात उत्पन्न होते हैं तो वहां काम कर रहे भारतीयों को स्वदेश लौटना पड़ेगा और इससे वहां से भारत आने वाली अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा का नुकसान भी होगा। भारत को पश्चिम एशिया में कार्यरत 80-90 लाख भारतीयों के जरिए प्रतिवर्ष करीब 40 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
- अक्स ब्यूरो