मौत का अस्पताल
18-Jan-2020 07:57 AM 1235490
राजस्थान का कोटा शहर कभी औद्योगिक नगरी के नाम से मशहूर था। उद्योगों के बंद होने के बाद यह शहर देश में कोचिंग संस्थानों का सबसे बड़ा हब बन गया। मगर पढ़ाई के तनाव में यहां बाहर से पढऩे आने वाले छात्रों के लगातार आत्महत्या करने की घटनाओं ने इस शहर के चेहरे पर एक बदनुमा दाग लगा दिया था। हाईकोर्ट की सख्ती व सरकारी प्रयासों से कोटा में छात्रों के आत्महत्या करने की घटनाओं में काफी कमी आने से यहां लोगों ने राहत की सांस ली थी। मगर कोटा शहर के जेके लोन सरकारी अस्पताल में गत 36 दिनों में 111 बच्चों की मौत ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। इससे कोटा शहर एक बार फिर से देश भर में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। दिल दहला देने वाली इस घटना से राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार भी लोगों के निशाने पर आ गई है। पिछले दिसम्बर महीने में कोटा के जेके लोन अस्पताल में नवजात शिशुओं के मरने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह अभी तक जारी है। नवजात शिशुओं की मौत रोक पाने में अस्पताल प्रशासन व राजस्थान सरकार नाकारा साबित हो रही है। ऊपर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यह कह कर कि प्रदेश के हर अस्पताल में हर दिन तीन-चार बच्चों की मौत होती रहती है। यह कोई नई बात नहीं है। पिछले 6 सालों के मुकाबले इस साल तो सबसे कम मौतें हुई हैंÓ, लोगों को और अधिक नाराज कर दिया है। मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा दिए गए ऐसे असंवेदनशील बयान की चौतरफा आलोचना हो रही है। इसी बीच राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत महांती व न्यायाधीश पुष्पेन्द्र सिंह भाटी की खण्डपीठ ने कोटा सहित राज्य के सभी जिलों के अस्पताओं में नवजात बच्चों की मौत के कारणों की रिपोर्ट तलब करते हुए सरकारी अस्पतालों में सभी रिक्त व स्वीकृत पदों की जानकारी मांगी है। कोटा के जेके लोन अस्पताल में 1 दिसम्बर 2019 से लेकर 6 जनवरी 2020 तक मात्र 36 दिनों में 111 बच्चों की मौत हो चुकी है। कोटा के इसी अस्पताल में वर्ष 2019 में 963 बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं। कोटा के अलावा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिला जोधपुर के डॉक्टर सम्पूर्णानंद राजकीय मेडिकल कॉलेज में दिसम्बर माह में 146 बच्चों की मौत हो जाने की बात सामने आ रही है। जबकि गत दिसम्बर माह में ही बीकानेर के सरकारी पीबीएम अस्पताल में 162 बच्चे दम तोड़ चुके हैं। इनमें 102 नवजात शिशु थे। इसी तरह दिसम्बर माह में बाड़मेर के सरकारी अस्पताल में 29 बच्चों की मृत्यु हुई है। वहीं गत वर्ष बाड़मेर जिले के सरकारी अस्पतालों में 202 नवजात बच्चों की मौत हो गई थी। नवजात बच्चों की मौत पर राजस्थान सरकार को घिरता देख कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राजस्थान के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे को दिल्ली तलब कर पूरी स्थिति की जानकारी ली। सोनिया गांधी ने राजस्थान में स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए उन्हें तत्काल जयपुर भेजा। लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे स्थिति का जायजा लेने अभी तक कोटा नहीं जा पाए हैं। प्रदेश के चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा भी घटना के एक माह बाद कोटा अस्पताल का जायजा लेने गए जहां उन्हें लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। प्रदेश में स्थिति बिगड़ती देख अंतत: कांग्रेस आलाकमान को उपमुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को डेमेज कंट्रोल करने के लिए कोटा भेजना पड़ा। कोटा के हालात का जायजा लेने के बाद सचिन पायलट ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि हम पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर अकेले नवजात शिशुओं की मौत की जिम्मेदारी नहीं डाल सकते हैं। हमारी सरकार को बने हुए भी 13 माह हो गए हैं। प्रदेश में नवजात शिशुओं की मौत होने को हम हमारी सरकार की प्रशासनिक असफलता ही मानेंगे। हम इसे दुरुस्त करने का हर संभव प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि कहीं कोई खामी तो रही होगी जिसके चलते इतने बच्चों को जान गंवानी पड़ी है। जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। सचिन पायलट का बयान एक तरह से मुख्यमंत्री गहलोत व चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा की असफलता को ही उजाकर करता है। कोटा में दिए गए सचिन पायलट के बयान के बाद विपक्षी दल सरकार पर और अधिक आक्रामक हो रहा है। बचाव में अपने-अपने तर्क राज्य के चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने जेके लॉन अस्पताल में हुई बच्चों की मौत के मामले में अपने विभाग को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि बच्चों की मौत चिकित्सकों या मेडिकल स्टॉफ की लापरवाही या संक्रमण के कारण नहीं हुई है। वहीं सरकार की ओर से गठित कमेटी ने अपनी जांच में माना है कि बच्चों की मौत गंभीर रोगों के कारण हुई है। कोटा में बच्चों की मौत का मामला तूल पकडऩे के बाद सरकार हरकत में आई और अस्पताल के अधीक्षक को हटा दिया है। साथ ही हाई लेवल जांच के आदेश दे दिए गए हैं। कोटा में नवजात बच्चों की मौत पर सफाई देते हुए अस्पताल के अधीक्षक डॉ. एचएल मीणा का कहना था कि जांच के बाद हमने पाया है कि सभी मौतें सामान्य हैं। इसमें कोई लापरवाही नहीं हुई है। अस्पताल अधीक्षक के अनुसार उनके पास ज्यादातर मरीज कोटा, बूंदी, झालावाड़ और बांरा जिलों से आते हैं। जिस वक्त वो अस्पताल लाए जाते हैं उनकी तबियत पहले से ही बहुत ज्यादा बिगड़ी हुई होती है। बच्चों के मरने पर कोटा के जेके लोन अस्पताल के पीडियाट्रिक्स प्रमुख डॉ. एएल बैरवा ने राष्ट्रीय एनआईसीयू रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा है कि रिकॉर्ड के अनुसार 20 प्रतिशत शिशु मृत्यु स्वीकार्य हैं। वहीं कोटा में मृत्यु दर का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यहां केवल 10 से 15 प्रतिशत बच्चों की मौत हुई। डॉ. एएल बैरवा के अनुसार ये चिंता का विषय इसलिए भी नहीं है क्योंकि जिस वक्त बच्चों को यहां लाया गया वो गंभीर स्थिति में थे। - जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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