18-Jan-2020 07:57 AM
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दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। 8 फरवरी को यहां वोट डाले जाएंगे और 11 फरवरी को नतीजे आएंगे। पिछले दो विधानसभा चुनाव यहां आम आदमी पार्टी के पक्ष में एकतरफा या उसके और बीजेपी के बीच आमने-सामने के रहे हैं। इस बार कांग्रेस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर सकती है। सीएम अरविंद केजरीवाल के उभार के साथ दिल्ली की सियासत में अपेक्षाकृत युवा नेताओं का दबदबा बढ़ गया है। यहां की राजनीति पर प्रभाव रखने वाले पुराने नेताओं में मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली, मोटे तौर पर कहें तो लगभग सारे ही जा चुके हैं। आम आदमी पार्टी में तकरीबन सारे युवा हैं।
कांग्रेस में अजय माकन के अध्यक्ष पद छोडऩे के बाद सुभाष चोपड़ा ने कमान संभाली है। बीजेपी से कांग्रेस में पहुंचे कीर्ति आजाद की भूमिका भी अहम हो सकती है। बीजेपी में डॉ. हर्षवर्धन और विजय गोयल सीनियर हैं, लेकिन कमान युवा पूर्वांचली नेता मनोज तिवारी के हाथ में है। केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी की सक्रियता को भी गौर से देखा जा रहा है, जो दिल्ली की राजनीति में नए हैं। राज्यों के चुनाव में राष्ट्रीय महत्व के विषयों को ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती पर भारतीय राजनीति का केंद्र होने के कारण इन मुद्दों का असर यहां जरूर होगा। इस चुनाव में सीएए को लेकर जारी बहस और जामिया मिलिया व जेएनयू में हुई हिंसा की छाया पडऩे की संभावना है।
आम आदमी पार्टी केजरीवाल सरकार के कामों के आधार पर वोट मांगने जा रही है, जिसे लेकर वह काफी आश्वस्त है। बीजेपी की दुविधा यह है कि पिछले कुछ असेंबली चुनावों में मोदी मैजिक नहीं चल पाया है। ऐसे में केजरीवाल सरकार के कार्यों में खोट दिखाकर वह बेहतर गवर्नेंस का दावा भी कर रही है। मुश्किल यह है कि उसके पास सुशासन का कोई ताजा मॉडल नहीं है। कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के हाथों खोई अपनी जमीन वापस पानी है। 2015 में आम आदमी पार्टी को रेकॉर्ड 54.34 फीसदी वोट मिले थे, जिनमें ज्यादातर कांग्रेस के थे। अगर बीजेपी को देखें तो उसके वोट कमोबेश ज्यों के त्यों रहे हैं।
2013 के चुनाव में उसने 31 सीटें जीती थीं और वोट मिले थे 33.07 फीसदी, जबकि 2015 में उसकी सीटें घटकर सिर्फ 3 रह गईं लेकिन वोट परसेंट 32.19 रहा। पिछले लोकसभा चुनाव में जिस तरह कांग्रेस ने अपना वोट शेयर सुधारा, वह आम आदमी पार्टी के लिए चिंता का विषय है। 2014 में कांग्रेस को केवल 15 पर्सेंट वोट मिले थे जबकि 2019 में उसका वोट शेयर 22.5 फीसदी पर आ गया। यह ट्रेंड जारी रहा तो आम आदमी पार्टी के लिए समस्या हो सकती है, हालांकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव का ट्रेंड एक सा नहीं होता। 2019 में आपÓ 18 प्रतिशत पर जबकि बीजेपी 57 पर्सेंट पर पहुंच गई। देखें, दिल्ली का वोटर किस मिजाज से वोट देता है।
मतदाताओं में अपनी पैठ और मजबूत बनाने के लिए कांग्रेस नए तेवर और नए कलेवर के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। लाडली योजना, अनधिकृत कॉलोनी, पेंशन में बढ़ोतरी सहित दिल्ली में पूर्व की शीला दीक्षित सरकार के दौरान की योजनाओं का विस्तार कर नए कलेवर में जनता के बीच रखेगी। चुनावी घोषणा पत्र में पूर्व कांग्रेस सरकार की योजनाओं में बदलाव कर शामिल किया जाएगा। पार्टी नेताओं का दावा है कि यदि वह सत्ता में आते हैं तो दिल्लीवासियों को अधिक से अधिक राहत देने के लिए इन योजनाओं को लागू किया जाएगा। खास बात यह है कि इस बार केंद्र के एनआरसी, सीएए और एनपीआर के मुद्दे को भी पार्टी विधानसभा चुनाव में भुनाएगी।
चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने से पहले कांग्रेस लगातार इन मुद्दों को लेकर विपक्षियों पर निशाना साध रही है। अब तक हल्ला बोल रैलियों में कांग्रेस लगातार अनधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा उठाती रही है। कांग्रेस सरकार ने 2012 में 600 से अधिक कॉलोनियों को नियमित करने की पहल की थी। अब नए तेवर के साथ चुनावी मैदान में उतर चुकी है। पार्टी न केवल कॉलोनियों के नियमितीकरण के दावे कर रही है, बल्कि पेंशन योजना को भी नए सिरे से लागू करने के लिए इसे बढ़ाकर 5000 रुपए प्रतिमाह करने का दावा किया है। शिक्षा में तयशुदा बजट से कम खर्च पर चिंता जताते हुए इसे बढ़ाने के अलावा लड़कियों के लिए दोबारा लाडली स्कीम को नए सिरे से लागू करने के लिए भी पार्टी ने खाका तकरीबन तैयार कर लिया है। दिल्ली सरकार पर जवाबी हमला बोलते हुए कांग्रेस ने पहले ही 600 यूनिट तक बिजली फ्री करने की घोषणा कर दी है।
फिर राष्ट्रवाद और मोदी का सहारा
दिल्ली में दमदार चेहरे के अभाव में भाजपा को फिर से पीएम मोदी और राष्ट्रवाद के मुद्दों का सहारा लेना पड़ रहा है। पार्टी की मुश्किल यह है कि जिन नेताओं को राज्यों में सीएम बना कर फ्री हैंड दिया, वह अपना दमदार व्यक्तित्व तैयार करने में नाकाम रहे। हरियाणा में मनोहर लाल, महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस और झारखंड में रघुवरदास अपने दम पर कोई कमाल नहीं दिखा पाए। दिल्ली में भी पार्टी के पास कोई सर्वमान्य कद्दावर नेता नहीं है। दिल्ली में भाजपा की जीत या हार आप और कांग्रेस के प्रदर्शन से तय होगी। पार्टी की दोनों प्रतिद्वंदियों के वोट बैंक (दलित-मुस्लिम-झुग्गी झोपड़ी) करीब करीब एक ही है। ऐसे में अगर आप और कांग्रेस के वोट बंटे तो इसका सीधा लाभ भाजपा को होगा। इसके इतर अगर इन वोटों का किसी एक दल के पक्ष में ध्रुवीकरण हुआ, तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ेंगी। पिछले चुनाव में यह वोट बैंक सीधे आप की झोली में गया था। लोकसभा चुनाव में दलित-मुस्लिम और झुग्गी के मतदाताओं के वोट में बिखराव से भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था। भाजपा की मुश्किल यह है कि वह लोकसभा में विपक्ष पर मिली जबर्दस्त बढ़त को बरकरार नहीं रख पा रही। लोकसभा चुनाव के मुकाबले हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में पार्टी के वोट प्रतिशत में काफी गिरावट दर्ज की गई। लोकसभा चुनाव के मुकाबले हरियाणा और झारखंड में पार्टी के वोट प्रतिशत में क्रमश: 22 फीसदी और 17 फीसदी की कमी आई। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हरियाणा की तरह दिल्ली में भी क्लीन स्वीप किया था। पार्टी को लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 22.5 फीसदी, आप 18.1 फीसदी के मुकाबले 56 फीसदी वोट मिले थे।
- अक्स ब्यूरो