18-Jan-2020 07:57 AM
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इस साल राज्यसभा के दोवार्षिक चुनाव हैं। कुल 73 सीटों के लिए वोटिंग होनी है। ज्यादातर सीटें अप्रैल में खाली हो रही हैं, जिनके लिए मार्च में चुनाव होगा। उत्तर प्रदेश की दस सीटों सहित कुछ सीटों पर साल के अंत में चुनाव होना है। इस साल खाली हो रही 73 सीटों में से सबसे ज्यादा 18 सीटें भाजपा की हैं और 17 सीटें कांग्रेस की हैं। फिलहाल राज्यसभा 83 सांसदों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है और कांग्रेस सांसदों की संख्या 50 से नीचे होकर 46 रह गई है। आमतौर पर यह धारणा बनी थी कि जल्दी ही भाजपा को राज्यसभा में बहुमत मिल जाएगा। भाजपा नहीं तो कम से कम एनडीए को जरूर बहुमत मिल जाएगा। पर इस साल के दो वार्षिक चुनाव के बाद भी संसद के उच्च सदन की तस्वीर में कोई खास बदलाव नहीं आना है।
असल में पिछले 12-13 महीने में हुए विधानसभा चुनावों ने भाजपा या एनडीए को राज्यसभा में बहुमत मिलने की संभावना को खत्म कर दिया है। भाजपा राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले साल सत्ता से बाहर हो गई थी और इस साल महाराष्ट्र व झारखंड की सत्ता से बाहर हो गई है। इससे इन पांच राज्यों में राज्यसभा चुनाव का हिसाब बदल गया है। अब इन राज्यों में ज्यादातर सीटें गैर भाजपा दलों को जाएंगी। कुल मिलाकर भाजपा को लगभग उतनी ही सीटें मिलेंगी, जितनी उसकी खाली हो रही हैं।
इनमें में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा 15 साल से सत्ता में थी। इन दो राज्यों में पांच सीटें खाली हो रही हैं, जिनमें से तीन सांसद भाजपा के रिटायर हो रहे हैं। इसी तरह बिहार में भाजपा और जदयू पिछले करीब 15 साल से सत्ता में हैं। वहां रिटायर हो रहे पांचों सांसद उसके ही हैं, जबकि इस बार उसे सिर्फ तीन सीटें मिलेंगी। भाजपा को उत्तर प्रदेश में बड़ा फायदा होगा। वह खाली हो रही दस में आठ सीटें जीत जाएगी। पर उसे राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार जैसे राज्यों में कुछ सीटों का नुकसान होगा। सो, कुल मिलाकर उसके सांसदों की संख्या जस की तस रहेगी या अगर एक दो अतिरिक्त सीटें भाजपा ने किसी तरह से निकाली तो उसकी संख्या में मामूली इजाफा होगा।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो उसकी स्थिति में भी ज्यादा बदलाव नहीं होगा। उसके जितने सांसद रिटायर हो रहे हैं लगभग उतनी संख्या में ही सांसदों की वापसी हो सकती है। उसे कर्नाटक, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, असम जैसे राज्यों में एक-एक सीट का नुकसान हो सकता है पर कम से कम छह राज्यों में उसे फायदा भी हो रहा है और महाराष्ट्र में वह अपनी एक सीट बचाने में कामयाब रहेगी। सो, संभव है कि उसकी सीटों की संख्या में एक-दो का इजाफा हो जाए। राज्यसभा के चुनाव से पहले कई उम्मीदवारों को लेकर सस्पेंस का माहौल है। जैसे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के बड़े नेता रामगोपाल यादव रिटायर हो रहे हैं। राज्य में विपक्ष को एक सीट मिलने की पक्की संभावना है और वह सीट सपा को ही मिलेगी। पर सवाल है कि क्या पार्टी फिर से रामगोपाल यादव को ही राज्यसभा में भेजेगी या कोई नया चेहरा ट्राई करेगी? यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को भी राज्यसभा में भेजने की चर्चा है। हालांकि खुद अखिलेश लोकसभा सांसद हैं इसलिए कई लोग इस संभावना को खारिज कर रहे हैं।
दूसरी सस्पेंस वाली सीट झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के खाते वाली है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस सीट पर अपने पिता शिबू सोरेन को भेजेंगे या छोटे भाई बसंत सोरेन को? ध्यान रहे जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन इस बार दुमका लोकसभा सीट से चुनाव हारे हुए हैं, जबकि बसंत सोरेन 2016 के राज्यसभा चुनाव में सहयोगी पार्टी के दो सांसदों की क्रॉस वोटिंग की वजह से हार गए थे। इस बार यह भी चर्चा है कि हेमंत सोरेन अपनी जीती दो में से एक विधानसभा सीट खाली करेंगे तो वहां से बसंत सोरेन लड़ सकते हैं। पर उस सीट से अचानक हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन के चुनाव लडऩे की चर्चा शुरू हो गई है।
हरियाणा में खाली हो रही एक सीट का भी सस्पेंस है। बताया जा रहा है कि सरकार बनाने के लिए दुष्यंत चौटाला की पार्टी से तालमेल करते हुए भाजपा ने उनको राज्यसभा की एक सीट देने का वादा किया था। पर यह तय नहीं है कि इस बार सीट दी जाएगी या अगले चुनाव में। राज्य की एक सीट कांग्रेस नेता कुमारी शैलजा के रिटायर होने से खाली हो रही है। कांग्रेस कुमारी शैलजा को कहां से राज्यसभा भेजेगी यह भी सस्पेंस है। कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला एक बार फिर महाराष्ट्र से राज्यसभा के लिए प्रयास कर रहे हैं। बिहार में जदयू के तीन सांसद रिटायर हो रहे हैं पर इस बार उसे दो सीटें मिलेंगी। इनमें एक सीट हरिवंश की हो सकती है क्योंकि वे राज्यसभा के उप सभापति हैं।
सबकी नजर मप्र पर
मध्य प्रदेश में भी राज्यसभा का चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है और इस वजह से सबकी नजर वहां के चुनाव पर है। मध्य प्रदेश के चुनाव में दिलचस्पी के दो कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष की सीटों की संख्या में ज्यादा का अंतर नहीं है। इसलिए कहा जा रहा है कि राज्य में खाली हो रही तीन में से दो सीटें जीतने का प्रयास कांग्रेस भी करेगी और भाजपा भी करेगी। यानी भाजपा तीसरी सीट पर कांग्रेस को वाकओवर नहीं देने जा रही है। उसने अगर अपना उम्मीदवार उतार दिया तो फिर तीसरी सीट पर घमासान पक्का है। ध्यान रहे राज्य में एक सीट जीतने के लिए 58 वोट की जरूरत होगी। कांग्रेस के पास अपने 114 और भाजपा के 108 विधायक हैं। सो, एक-एक सीटें जीतने के बाद कांग्रेस के पास 56 और भाजपा के पास 50 वोट बचेंगे। कांग्रेस को सपा, बसपा और निर्दलियों का भी समर्थन है। इसलिए उसे दिक्कत नहीं होनी चाहिए। पर अगर भाजपा कुछ तोडफ़ोड़ करना चाहिए या क्रास वोटिंग कराने का प्रयास करे तो मामला उलझ सकता है। दिलचस्पी का दूसरा कारण यह है कि कांग्रेस की ओर से दो दिग्गज दावेदार हैं। एक हैं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और दूसरे ज्योतिरादित्य सिंधिया।
- विशाल गर्ग