02-Jan-2020 08:35 AM
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वर्ष 2019 बदलाव और बवाल के लिए चर्चा का विषय बना रहा। इस दौरान केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों तक ने अपने यहां कई तरह के बदलाव किए। इन बदलावों के कारण खूब बवाल भी मचे। खासकर केंद्र सरकार द्वारा किए गए बदलावों के कारण देशभर में बवाल के कई मामले सामने आए। जहां कुछ बदलावों को देश की जनता ने सहर्ष स्वीकार किया, वहीं कुछ बदलाव आंदोलन का कारण बने। इससे आने वाला समय देश के लिए चुनौती भरा होने की संभावना है।
2019में कई कानून बने और कई कानून खत्म किए गए। जैसे नागरिकता संशोधन बिल अब नागरिकता संशोधन कानून बन चुका है, वहीं धारा 370 को मोदी सरकार ने खत्म कर दिया है। इन्हें लेकर विरोध भी खूब हुआ। आखिरकार 2019 भी खत्म हो गया। 2020 ने दस्तक दे दिया है। लेकिन 2019 वो साल रहा है, जिसे भुलाए नहीं भूला जा सकेगा। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि इस साल कई अहम बिल संसद के पटल पर रखे गए। नागरिकता संशोधन कानून बन चुका है, वहीं धारा 370 को मोदी सरकार ने खत्म कर दिया है, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार मिला हुआ था। इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर के दो टुकड़े करके उन्हें केंद्र शासित प्रदेश में भी बदल दिया। मोदी सरकार के इन फैसलों से जहां एक ओर बहुत से लोग खुश हुए, तो वहीं दूसरी ओर नाराजगी जाहिर करने वालों की भी कमी नहीं थी। चलिए एक नजर डालते हैं 2019 में लाए गए विधेयकों पर, जिनके संसद में पहुंचते ही सड़कों पर या सोशल मीडिया पर विरोध के स्वर बुलंद होने लगे थे।
हाल ही में नागरिकता संशोधन बिल 2019 संसद में पारित किया गया था। पहले इसे लोकसभा में मंजूरी मिली और फिर राज्यसभा में ये बिल बहुमत से मंजूर कर दिया गया। इसके बाद राष्ट्रपति ने बिल पर मुहर लगा दी और अब ये कानून की शक्ल ले चुका है। इस कानून के तहत अगर पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान का कोई हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी अल्संख्यक शख्स, जिसे धार्मिक आधार पर प्रताडि़त किया गया हो तो वह भारत की नागरिकता आसानी से ले सकेगा। इन दिनों इसी कानून का पूरे देश में जगह-जगह विरोध हो रहा है। असम से लेकर बंगाल तक तो विरोध हो ही रहा था, अब जामिया यूनिवर्सिटी, लखनऊ का नदवा कॉलेज और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी इसका विरोध होने लगा है।
कांग्रेस भी इसके खिलाफ है और तर्क दे रही है कि इस बिल में बाकी धर्मों के साथ-साथ मुस्लिमों को भी शामिल किया जाना चाहिए था, भेदभाव नहीं किया जा सकता। वहीं दूसरी ओर, भाजपा का तर्क है कि जिन देशों के अल्पसंख्यकों को देश की नागरिकता दी जा रही है वह इस्लामिक देश हैं, ऐसे में वहां के लोगों का धार्मिक आधार पर उत्पीडऩ नहीं हो सकता, इसलिए मुस्लिमों को बिल में शामिल नहीं किया गया है।
5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने धारा 370 को खत्म करने का बिल पारित करवा लिया और इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में कफ्र्यू लगा दिया गया। बता दें कि इसी धारा के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार मिले हुए थे, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर का संविधान तक अलग था, लेकिन मोदी सरकार ने इसे खत्म कर के अब जम्मू-कश्मीर को भी भारत के संविधान के दायरे में ला दिया है। सड़कों पर विरोध ना हो इसके लिए पहले ही मोदी सरकार ने पूरे जम्मू-कश्मीर को छावनी में तब्दील कर दिया था। चप्पे-चप्पे पर कड़ी सुरक्षा थी। जहां जरूरत पड़ी वहां तो कफ्र्यू तक लगा दिया गया। अभी भी भारी मात्रा में सेना की तैनाती जम्मू-कश्मीर में है।
मोदी सरकार के इस कदम का विरोध जम्मू-कश्मीर में ये कहकर हो रहा है कि उनके अधिकार छीने गए हैं और संविधान का उल्लंघन हुआ है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां ये कहकर विरोध कर रही हैं कि बंदूक की नोक पर मोदी सरकार ने धारा 370 को हटाया है। उनका कहना है कि इसके लिए पहले जनता को भरोसे में लेना चाहिए था। बता दें कि किसी तरह की अप्रिय घटनाओं से बचने के लिए मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के उमर अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं समेत बहुत सारे अलगाववादियों को भी नजरबंद किया हुआ था।
मोदी सरकार ने न सिर्फ जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाया, बल्कि जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन का बिल भी पारित कर दिया। इसके तहत जम्मू-कश्मीर के दो हिस्से किए गए। एक बना लेह-लद्दाख और दूसरा जम्मू-कश्मीर। दोनों को ही केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा वापस ले लिया गया। बता दें कि मोदी सरकार के इस एक्शन का सिर्फ कश्मीर से ही अधिक विरोध हो रहा है। जम्मू के लोग तो मोदी सरकार के फैसले से खुश हैं ही, लेह-लद्दाख के लोग भी काफी खुश हैं, जो पहले से ही इसकी मांग कर रहे थे।
जब मोदी सरकार ने मोटर व्हीकल एक्ट में बदलाव किया, तो पूरे देश में जगह-जगह प्रदर्शन हुए। नए नियमों में भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया। ऐसा करने की वजह सिर्फ ये थी कि लोगों में नियमों का उल्लंघन ना करने को लेकर एक डर पैदा हो, जिससे सड़क हादसों में कमी आए। किसी का 23 हजार का चालान कटा, तो किसी के ट्रक का 2 लाख तक का चालान काट दिया गया। देखते ही देखते विरोध और गुस्से की आग और अधिक बढ़ गई। विपक्षी पार्टियों की सरकारों वाले राज्यों ने तो नए कानून को अपने राज्यों में लागू भी करने से मना कर दिया। धीरे-धीरे तमाम बदलावों के साथ राज्यों ने इसे लागू किया। यहां तक कि भाजपा शासित राज्यों ने भी मोदी सरकार के नए कानून के नियमों में कई बदलाव करके उसे लागू किया। महाराष्ट्र और हरियाणा में तो भाजपा को इसका फायदा भी मिला।
एक बिल और है, जो तीन तलाक के नाम से काफी चर्चित है। इस बिल में मुस्लिम महिलाओं की शादी और तलाक से जुड़े अधिकारों को ही लिस्ट किया गया है। मुस्लिम महिलाएं सबसे अधिक परेशान थीं तीन तलाक से। आपको बता दें कि मुस्लिम धर्म में पति अपनी पत्नी अगर सिर्फ तीन बार तलाक, तलाक, तलाक कह भर देता था तो उसका तलाक हो जाता था। मुस्लिम महिलाएं भी इसके खिलाफ थीं, लेकिन बहुत से पुरुषों ने महिलाओं को ताकत देने वाले इस बिल का विरोध किया। विरोध करने वालों में एआईएमआईएम, जेडीयू और कांग्रेस शामिल थीं। तर्क ये था कि बिल में तीन साल की जेल और पुरुष को पत्नी को भरण-पोषण के लिए मुआवजा देने का प्रावधान है। उन्होंने बोला कि इस बिल का इस्तेमाल मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ हो सकता है। हालांकि, विपक्ष के इन तर्कों को खारिज करते हुए मोदी सरकार ने कहा कि इस बिल से महिलाओं को सशक्त बनाने में मदद मिलेगी। वहीं मुस्लिम समाज का एक अलग ही तर्क था कि सरकार उनके शरिया कानून में दखल दे रही है। उनका कहना था कि सरकार का कानून अपनी जगह है, लेकिन मुस्लिम समाज शरिया कानून के तहत चलता है, जिसे मोदी सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया और तीन तलाक बिल पारित हो गया। केंद्रीय सूचना आयोग को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने वाला बिल भी इसी साल पेश किया गया था। हालांकि, इस बिल पर हल्का विरोध देखने को मिला। एक आरटीआई एप्लीकेशन से ही ये बात सामने आई कि सूचना का अधिकार अधिनियम में बदलाव करने से पहले केंद्रीय सूचना आयोग से बातचीत नहीं की गई थी। जुलाई में सरकार पर ये सवाल भी उठा था कि इस संशोधन से पहले पब्लिक कंसल्टेशन क्यों नहीं दिया गया, तो सरकार ने राज्यसभा में कहा था कि बदलाव सरकार और अधिकारियों के बीच थे, ना कि पब्लिक के बीच। जब ये बात सामने आई कि केंद्रीय सूचना आयोग से भी बात नहीं की गई थी तो भी सरकार पर सवालिया निशान लगे।
2019 में ही एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन को लेकर भी खूब बवाल हुआ। जुलाई में जब असम एनआरसी की फाइनल लिस्ट सामने आई तो उसमें 19 लाख लोग लिस्ट से बाहर थे। इनमें हिंदू भी थे और मुस्लिम भी। बहुत सारी खामियां भी सामने आईं। विपक्ष तो इसे लेकर मोदी सरकार पर हमलावर था ही, मोदी सरकार भी कुछ खास संतुष्ट नहीं दिखी। यही वजह थी कि मोदी सरकार ने एनआरसी को पूरे देश में लागू करने से पहले से नागरिकता कानून में संशोधन का मन बनाया और उसमें सफलता भी पा ली।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (संशोधन) विधेयक
लोकसभा में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (संशोधन) विधेयक 2019 पारित तो हो चुका है, लेकिन जब इस पर चर्चा हो रही थी तो अमित शाह और असदुद्दीन ओवैसी के बीच तीखी बहस हुई। तर्क-वितर्क के बीच ओवैसी ने शाह से ये भी कह दिया था कि उंगली मत दिखाइए, मैं डरूंगा नहीं। ओवैसी कहते रहे कि ये बिल कारगर नहीं होगा, क्योंकि बाकी के देश इसकी इजाजत नहीं देंगे। आपको बता दें कि एनआईए संशोधन बिल के तहत एनआईए की जांच का दायरा बढ़ाया गया था। इसके तहत अब एनआईए विदेशों तक जाकर जांच कर सकेगी और यहां तक कि विदेश में किसी भारतीय के खिलाफ हुई घटना की भी जांच कर सकेगी। साथ ही एनआईए मानव तस्करी और साइबर अपराध से जुड़े विषयों पर भी जांच कर सकेगी। वहीं कांग्रेस के मनीष तिवारी ने भी इस बिल का विरोध करते हुए कहा था कि मोदी सरकार कानूनों में संशोधन कर के भारत को पुलिस स्टेट में बदलना चाहती है। वह बोले कि एनआईए का राजनीतिक बदले के लिए दुरुपयोग किया जाता है।
गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन विधेयक
मोदी सरकार ने 2019 में ही गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन विधेयक भी पारित किया, जिसके तहत किसी एक शख्स को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। अपने तर्कों में अमित शाह ने संसद में कहा था कि आतंकवाद कोई व्यक्ति करता है, ना कि संगठन। अगर सिर्फ संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर दें तो उसके सदस्य फिर से कोई नया संगठन खड़ा कर देते हैं। ऐसे में व्यक्ति को आतंकी घोषित करना जरूरी है। अगर पूछताछ का इंतजार करेंगे तो दाउद इब्राहिम और हाफिज सईद जैसों से तो कभी पूछताछ हो ही नहीं सकेगी, तो फिर उन्हें आतंकी कैसे घोषित करेंगे? कांग्रेस इस बिल का विरोध ये कहते हुए कह रही थी कि बिल में ये साफ नहीं है कि किस स्थिति में किसी को आतंकवादी घोषित किया जाएगा, इसके नियम स्पष्ट नहीं हैं। खैर, तमाम विरोध के बीच ये बिल भी भाजपा पारित करवाने में सफल हो गई थी।
- इन्द्र कुमार