पितृदोष निवारण के लिए पितृपक्ष के श्राद्ध
16-Sep-2013 06:49 AM 1235182

भारतीय वैदिक वांगमय के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को इस धरती पर जीवन लेने के पश्चात तीन प्रकार के ऋण होते हैं। पहला देव ऋण, दूसरा ऋषि ऋण और तीसरा पितृ ऋण। पितृ पक्ष के श्राद्ध यानी 16 श्राद्ध साल के ऐसे सुनहरे दिन हैं, जिनमें हम उपरोक्त तीनों ऋणों से मुक्त हो सकते हैं.. श्राद्ध प्रक्रिया में शामिल होकर श्राद्ध से पहले श्राद्धकर्ता को एक दिन पहले उपवास रखना होता है। अगले दिन निर्धारित मृत्यु तिथि को अपराह्न  में गजछाया के बाद श्राद्ध तर्पण तथा बाह्मण भोज कराया जाता है ! मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितर दोपहर बाद श्राद्धकर्ता के घर पक्षी/कौवे या चिडिया के रूप मे आते हैं ! अत: श्राद्धकर्म कभी भी सुबह या 1 बजे से पहले नहीं करना चाहिए क्योंकि तब तक दिवंगत पितर  अनुपस्थित रहते हैं ! कुछ लोग भोजन पकाकर बिना पिण्ड दिये  मन्दिर में थाली दे आते हैं । इससे भी मृतआत्मा की शान्ति नहीं होती  और श्राद्धकर्ता को श्राद्ध का पुण्य नहीं मिलता है।
क्या है श्राद्ध के मुख्य भोज्य पदार्थ: श्राद्ध के दिन लहसुन प्याज रहित सात्विक भोजन घर की रसोई में बनना चाहिए जिसमें  उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध घी बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जो बेल पर लगती है .जैसे ... तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी  कच्चे केले की सब्जी  ही भोजन मे मान्य है ।  आलू. मूली  वैगन  अरबी तथा जमीन के नीचे  पैदा होने वाली सब्जियां पितरो को नहीं चढ़ती है ।
श्राद्ध के लिए तैयार भोजन की तीन तीन आहुतियों और तीन तीन चावल के पिण्ड तैयार करने बाद प्रेत मंजरी के मंत्रोच्चार के बाद ज्ञात और अज्ञात पितरो को  नाम और राशि से सम्बोधित करके आमंत्रित किया जाता है । कुशा के आसन में बिठाकर गंगाजल से स्नान कराकर  तिल जौ और सफेद फूल और चन्दन आदि समर्पित करके चावल या जौ के आटे के पिण्ड आदि समर्पित किया जाता है । फिर उनके नाम का नैवेद्ध रखा जाता है
श्राद्ध का अधिकार महिलाओं को भी?: श्राद्ध करने के लिए मनुस्मृति और ब्रह्मवैवर्तपुराण  जैसे सभी प्रमुख शास्त्रों में यही बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो धेवता (नाती), भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं। कई ऐसे पितर भी होते है जिनके पुत्र संतान नहीं होती है या फिर जो संतान हीन होते हैं। ऐसे पितरों के प्रति आदर पूर्वक अगर उनके भाई, भतीजे, भांजे या अन्य चाचा ताउ के परिवार के पुरूष सदस्य पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते है तो पीडि़त आत्मा को मोक्ष मिलता है।
एक और अहम सवाल है कि आम तौर पर आजकल के विछिन्न पारिवारिक परिस्थितियों मे क्या महिलाएं  भी श्राद्ध कर सकती है या नहीं इस प्रश्न को भी उठाया जाता रहा है। परिवार के पुरुष सदस्य या पुत्र पौत्र नहीं होने पर कई बार कन्या या धर्मपत्नी को भी मृतक के अन्तिम संस्कार करते या मरने के बाद वर्षी श्राद्ध करते देखा गया है। परिस्थितियो के अनुसार यह एक अन्तिम विकल्प ही है, जो अब धीरे धीरे चलन में आने लगा है । इस मामले में धर्मसिन्धु सहित मनुस्मृति और गरुड पुराण भी आदि ग्रन्थ भी महिलाओं  को पिण्डदान आदि करने का अधिकार प्रदान करती है। शंकराचायों ने भी इस प्रकार की व्यवस्थाओं को तर्क संगत इस बताया है कि श्रा़द्ध करने की परंपरा जीवित रहे और लोग अपने पितरों को नहीं भूलें ! अन्तिम संस्कार में भी महिला अपने परिवार /पितर को मुखाग्नि दे सकती है । महाराष्ट्र सहित कई उत्तरी राज्यो में अब पुत्र/पौत्र नहीं होने पर पत्नी बेटी बहिन  या नातिन ने भी सभी मृतक संस्कार करने आरंभ कर दिये ।  काशी आदि के कुछ गुरुकुल आदि की संस्कृत वेद पाठशालाओ  में तो कन्याओं पांण्डित्य कर्म और वेद पठन की ट्रेनिंग भी दी जा रही है  जिसमें महिलाओ को श्राद्ध करने कराने का प्रशिक्षण  भी शामिल है !
किसी भी मृतक के अन्तिम संस्कार और श्राद्धकर्म की व्यवस्था के लिए प्राचीन वैदिक ग्रन्थ गरुडपुराण में कौन कौन से सदस्य पुत्र के नहीं होने पर श्राद्ध कर सकते है उसका  उल्लेख अध्याय .11 के श्लोक सख्या .11, 12, 13  और 14 में विस्तार से किया गया है जैसे:..
पुत्राभावे वधु कूर्यात ..भार्याभावे  च सोदन:!
शिष्यो वा ब्राह्मण: सपिण्डो वा समाचरेत !!
ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातृ:पुत्रश्च: पौत्रके!
श्राध्यामात्रदिकम कार्य पु.त्रहीनेत खग:!!
अर्थात  ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू. पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है ! इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री भी शामिल है ।  अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई  अथवा भतीजा  भानजा नाती पोता आदि कोई भी यह कर सकता है! इन सबके अभाव में शिष्य,  मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुलपुराहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है । इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों का श्राद्धतर्पण  और तिलांजली देकर मोक्ष कामना कर सकती है ।

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