आर्सेनिक का जहर
02-Jan-2020 07:55 AM 1235119
बिहार के 18 जिलों के भूगर्भ जल में आर्सेनिक का जहर फैला हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक बिहार के करीब 1 करोड़ लोग आर्सेनिक युक्त पानी पी रहे हैं। कई इलाकों में तो पानी में आर्सेनिक की मात्रा 1000 पीपीबी से ज्यादा है, जो सामान्य से 20 गुना अधिक है। दिलचस्प बात ये है कि कई क्षेत्रों में अब तक भूगर्भ पानी की जांच नहीं हुई है। सारण जिले के नवरसिया के भूजल में सामान्य से ज्यादा आर्सेनिक के बारे में तब पता चला जब कई मौतें हुईं। बिहार में भूजल में आर्सेनिक की मौजूदगी का सबूत सबसे पहले वर्ष 2002 में अक्टूबर में भोजपुर जिले की सिमरिया ओझापट्टी में मिला था। इसके बाद बिहार के जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग ने गंगा नदी के आसपास 10 किलोमीटर क्षेत्रफल के भूगर्भ जल की जांच कराई। जांच में सारण, वैशाली, समस्तीपुर, दरभंगा, बक्सर, भोजपुर, पटना, बेगूसराय, खगडिय़ा, लखीसराय, मुंगेर, भागलपुर और कटिहार के 50 ब्लॉक में सामान्य से ज्यादा आर्सेनिक मिला। जानकारों का कहना है कि महज 80 हजार जलस्त्रोतों की जांच में ये परिणाम आया था। इसका मतलब है कि जिन स्त्रोतों की जांच नहीं हुई, वहां भी आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा हो सकती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह सभी जलस्त्रोतों की जांच कराए। गौरतलब हो कि बेगूसराय के ज्ञानटोली गांव के पानी की जांच पहले नहीं हुई थी, इसलिए सरकार को इस गांव की जानकारी भी नहीं थी। पिछले साल एएन कॉलेज, यूनिवर्सिटी ऑफ सैलफोर्ड और महावीर कैंसर संस्थान ने इस गांव के के पानी की जांच की, तो वहां आर्सेनिक की मात्रा 500 माइक्रोग्राम प्रति किलो मिली थी, जो सामान्य से काफी ज्यादा थी। महावीर कैंसर संस्थान की तरफ से जांच में शामिल डॉक्टर अशोक घोष ने उस वक्त कहा था कि इस गांव के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी। इस गांव में कैंसर के कई मरीज भी मिले। आर्सेनिक को लेकर काम करने वाले महावीर कैंसर संस्थान के चिकित्सक डॉ. अरुण कुमार कहते हैं, अभी भी बिहार के बहुत सारे हिस्सों में आर्सेनिक का प्रभाव है, लेकिन उनकी शिनाख्त नहीं हुई है। लेकिन, अफसोस की बात है कि आर्सेनिक की गंभीर स्थिति के बावजूद इस बड़ी आबादी तक सरकार साफ पानी मुहैया नहीं करा रही है। सिर्फ भोजपुर में एक प्लांट है, जिसमें गंगा का पानी साफ कर आर्सेनिक प्रभावित 48 गांवों की तीन लाख आबादी तक साफ पानी की आपूर्ति की जा रही है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की मानें तो आर्सेनिक का कहर कानपुर से शुरू हो जाता है। उत्तर प्रदेश में कानपुर से बनारस और फिर बिहार में पटना, भोजपुर, आरा, मुंगेर के बाद पश्चिमी बंगाल के कई जिलों में यह अपना कहर बरपाता है। मंत्रालय के मुताबिक उत्तर प्रदेश और बिहार में आर्सेनिक की भयावहता पश्चिम बंगाल की तुलना में काफी कम है। पश्चिम बंगाल में करीब 70 लाख लोग आर्सेनिक जनित बीमारियों की चपेट में हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि अगर समय रहते उत्तर प्रदेश में आर्सेनिक की रोकथाम के प्रभावी उपाय नहीं किए गए तो उत्तर प्रदेश की अधिकांश आबादी असमय ही बूढ़ी होकर तमाम जानलेवा बीमारियों का शिकार होगी। कोलकाता के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2003 से 2006 के बीच पूर्वांचल में एक दर्जन गांवों के पानी की जांच की थी। जांच के नमूनों में आर्सेनिक की मात्रा तीन सौ माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक पाई गई थी। इस टीम ने गांव वालों के स्वास्थ्य की जांच की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। जांच टीम ने अधिकांश ग्रामीणों की मांसपेशियों में आवश्यकता से अधिक सूजन पाई। उंगुलियों में टेढ़ापन, हाथ-पैर में थक्के बनना, फफोले व दाग पडऩे संबंधी तमाम बीमारियों से ग्रामीण त्रस्त पाए गए। आर्सेनिक के जहर वाला पानी पीकर कई लोग असमय ही मौत का शिकार भी हो चुके हैं, लेकिन जागरूकता न होने के कारण लोग असमय होने वाली इन मौतों का असली कारण समझ नहीं पाते हैं। आर्सेनिक के जहर से बचाव के लिए केंद्र सरकार ने भी राज्य को अपना सहयोग देने की बात तो कही है, लेकिन इसमें भी राजनीति आड़े आने से खामियाजा आम जनमानस भुगत रही है। आर्सेनिक की बहुलता वाले जिलों में ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की बात कही गई, इस पर अमल होना बाकी है। वहीं आर्सेनिक का जहर चावल में भी पहुंच चुका है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक विकास परिषद (सीएसआईआर) के एक शोध में जानकारी दी गई है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के हिस्सों के जल में आर्सेनिक की मात्रा अधिक होने से वहां पैदा होने वाले धान (चावल) में भी आर्सेनिक पहुंच रहा है। पहली बार बिहार में लगेगा सेरामिक फिल्टर बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व एनजीओ वाटरएड की ओर से प्रायोगिक तौर पर बिहार के दो स्थानों पर सेरामिक फिल्टर लगाने की योजना बनाई गई है। ये फिल्डर कोलकाता के सेंट्रल ग्लास एंड सेरामिक रिसर्च इंस्टीट्यूट से मंगवाए जाएंगे। सेंट्रल ग्लास एंड सेरामिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ने मिट्टी की मदद से ये फिल्टर बनाया है। पश्चिम बंगाल के आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में 100 सेरामिक फिल्टर लगाए गए हैं, जहां से किफायती कीमत पर आमलोगों को साफ पानी पहुंचाया जा रहा है। इस फिल्टर की तकनीक के बारे में सेंट्रल ग्लास एंड सेरामिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. स्वच्छ मजुमदार कहते हैं, इसमें मिट्टी से बने फिल्टर में बहुत सूक्ष्म छिद्र होते हैं। इस तकनीक में किया ये जाता है कि पानी में एक केमिकल डाला जाता है, जो आर्सेनिक के बेहद छोटे पार्टिकल को बड़ा कर देता है। ये पार्टिकल फिल्टर के छिद्र व वाटर मॉलिकुल से काफी बड़े हो जाते हैं जिस कारण फिल्टर के छिद्रों से निकल नहीं पाते हैं। इस तरह पानी तो छिद्रों से होकर निकल जाता है, लेकिन आर्सेनिक के पार्टिकल चेंबर में जमा हो जाते हैं।’ डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि दोनों प्लांट से 250-250 घरों को साफ पानी मुहैया कराया जाएगा। - विनोद बक्सरी
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