पावर गेम
18-Nov-2019 07:25 AM 1235050
राजस्थान में कांग्रेस की 11 माह पुरानी सरकार में अभी भी पावर गेम चल रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच खाई दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। इससे आलाकमान भी चिंतित है। राजस्थान में सरकार और संगठन दो धड़ों में बंटा हुआ है। एक धड़ा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो दूसरा उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ है। इस कारण राज्य में पावर गेम चल रहा है। अशोक गहलोत पावर गेम में खुद को मजबूत करने पर उतारू हैं तो दूसरी तरफ जैस-जैसे दिन बीत रहे हैं सचिन उतावले होते जा रहे हैं। पावर ऐसी चीज होती है कि कोई आधे-अधूरे पावर के साथ नहीं जीना चाहता है। और यह समस्या दोनों तरफ है। अशोक गहलोत बार-बार कहते हैं कि जनता ने उनके लोकप्रिय चेहरे पर वोट दिया है। जनता उन्हें मुख्यमंत्री देखना चाहती थी इसलिए कांग्रेस को वोट दिया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बार-बार ऐसा कह रहे हैं इसका मतलब यह है कि वह सचिन पायलट को जताना चाहते हैं कि वो मुख्यमंत्री बनने का मोह छोड़ दें। कई बार ऐसा भी कहा गया कि अशोक गहलोत जब यह कहते हैं कि उनके चेहरे पर वोट मिला है तो यह तो आलाकमान से बगावत है मगर अशोक गहलोत फिर भी नहीं रुकते हैं। साफ है कि यह झगड़ा मिटाना दिल्ली दरबार के वश में नहीं है। कांग्रेस का दिल्ली दरबार इतना कमजोर हो चुका है कि पार्टी को चलाने के लिए क्षेत्रीय क्षत्रपों के ऊपर निर्भर है। गहलोत जब भी इस तरह का बयान देते हैं सचिन पायलट अपना दम दिखाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। कहा जाता है कि अशोक गहलोत यह सब इसलिए कह रहे हैं कि वह सचिन पायलट के खेमे से बेहद परेशान हो चुके हैं। वह चाहते हैं कि सरकार में जो काम हो रहा है उसे पार्टी के कार्यकर्ता जनता तक पहुंचाएं मगर पार्टी पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट का कब्जा है। यानी अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री पद से रोकने के बाद अब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से भी विदाई की चाल चल दी है। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं में शुमार संदीप चौधरी और राज्य में मंत्री हरीश चौधरी जब एक व्यक्ति एक पद की मांग करते हैं तो इशारा साफ है कि पायलट के लिए कहा जा रहा है कि वह प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ दें। मुख्यमंत्री न बनने का मलाल अभी पायलट के दिलो-दिमाग से गया नहीं था कि एक व्यक्ति एक पद की मांग उठाकर गहलोत खेमे ने सचिन पायलट के जले पर नमक छिड़क दिया है। यही वजह है कि इतने दिनों से शांत बैठे सचिन पायलट ने अपने सभ्य तरीके से ही सही मगर हमला करना शुरू कर दिया है। राजस्थान में 2018 में कांग्रेस ने सरकार बना ली और इसके साथ ही सरकार के अंदर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच के झगड़े की खबरें आनी शुरू हो गईं। यह सच है कि दोनों नेता एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के दो खेमे हैं। यह लड़ाई कोई नई नहीं है। दिसंबर 2013 के चुनाव में जब कांग्रेस हारी तब मुख्यमंत्री पद से अशोक गहलोत हटाए गए और राज्य में युवा एवं नए नेतृत्व के नाम पर यूपीए-2 के केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट की राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर ताजपोशी हुई। उस वक्त से ही राज्य के सबसे कद्दावर नेता अशोक गहलोत और कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की पसंद युवा नेता सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस की दो धुरी बन गए। इनके चेलों ने भी अपने अपने हिसाब से कांग्रेस मे दो खेमे बना लिए। अशोक गहलोत के बारे में कहा जाता है कि यह राजनीति के चतुर सुजान हैं। अशोक गहलोत किसी को जाप्ता करने का प्लान बना लेते है तो फिर वह उसे छोड़ते नहीं है। लोग उदाहरण देते हैं कि कैसे अशोक गहलोत ने परशुराम मदेरणा, शीशराम ओला और सीपी जोशी जैसे नेताओं को ठिकाने लगाया था। अशोक गहलोत के बारे में कहा जाता है कि वह चाल कहां चलते हैं और निशाना कहां रखते हैं यह किसी को पता नहीं चलता। जब सचिन पायलट अपनी ताजपोशी की तैयारी कर रहे थे उसी वक्त अशोक गहलोत राजस्थान की सभी विधानसभा सीटों पर अपनी गोटी सेट कर चुके थे, और जब मुख्यमंत्री बनने का मौका आया तो कह दिया लोकतांत्रिक तरीके से चयन होगा। जिसके पास ज्यादा विधायक हैं वही मुख्यमंत्री बनेगा। जाहिर सी बात है कि अशोक गहलोत के पास राजस्थान में 30 साल से ज्यादा का राजनीतिक कैरियर है जबकि सचिन पायलट के पास महज 10 साल का। ऐसे में अशोक गहलोत के साथी ज्यादा होना लाजमी था और राहुल गांधी के भरोसे बैठे रहे सचिन पायलट मौका गंवा बैठे। आबोहवा में बगावत की बू नहीं दरअसल राजस्थान की तासीर ऐसी है कि यहां की आबोहवा में बगावत की बू नहीं आती। राज्य में जब पहली बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर सामने आया तो पंडित जवाहरलाल नेहरू की पसंद पंडित जय नारायण व्यास तीन बार विधानसभा का चुनाव लड़कर तीनों बार हार गए हों, मगर कांग्रेस ने फिर भी उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था। राजीव गांधी को अशोक गहलोत पसंद थे तो उन्होंने 1998 में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कांग्रेस के कद्दावर नेता परसराम मदेरणा समेत कांग्रेस के राजेश पायलट, शीशराम ओला और नवल किशोर शर्मा जैसे नेताओं को किनारे कर अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया। ऐसा लगा कि राज्य में बगावत हो जाएगी, मगर कानाफूसी के अलावा 5 साल में किसी ने भी आवाज नहीं उठाई। यह लोग गाहे-बगाहे एक दो बयान देकर घर बैठ जाते थे और फिर कांग्रेस का नेतृत्व अपनी सुविधा के अनुसार इनका मुंह बंद करने के लिए कोई पद दे देता था। उसी में यह मस्त रहते थे। - जयपुर से आर.के. बिन्नानी
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