18-Sep-2019 08:51 AM
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जैसा कि परंपरा रही है भोपाल के छोटे तालाब में नाव हादसे में 11 युवकों की मौत के बाद अब हादसे की जिम्मेदारी तय करने को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैं। कायदे कानून और मापदंडों को याद किया जा रहा है। लापरवाह बड़े अफसरों को बचाने के लिए छोटे-छोटे अधिकारियों-कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में हाय तौबा मची हुई है। लेकिन इस प्रक्रिया से उन लोगों का दर्द कम नहीं होने वाला जिन्होंने प्रशासनिक चूक के कारण अपने लाल को खो दिया है। मप्र की राजधानी में हुई इस घटना से पूरा देश द्रवित है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आहत हैं। लेकिन मप्र में अब अधिकारी अपना दामन बचाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। उधर सरकार भी
दोषियों पर हर साल में कार्रवाई करने की बात कह रही है।
शासन और प्रशासन की एक लापरवाही से राजधानी के 11 परिवारों के सपने पलक झपकते ही टूट गए। जिसने भी इस दर्दनाक हादसे के बारे में सुना, वह अवाक रह गया। अपनों को खोने वाले परिवारों को तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनका बेटा कुछ घंटे पहले ही तो ये कहकर गया था कि सुबह तक आ जाऊंगा... लेकिन उसके मरने की खबर आई। 12 से 25 साल की उम्र के ये लाड़ले उन्हें रोता-बिलखता छोड़ गए। एक-दूसरे का हर समय साथ निभाने वाले ये सभी दोस्त ऐसे जुदा होंगे, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण :- रोहित पिता नंदू मौर्य (20), प्रवीण पिता नारायण ठाकरे (22), हरि पिता रामू राणा (20), विशाल पिता राजू सुनवाने (25), करण पिता पन्नालाल (19), राहुल वर्मा पिता मुन्नालाल (18), परवेज पिता शाहिद खान (12), आवेश पिता रामनाथ (19), अर्जुन पिता योगेंदर शर्मा (16), राहुल पिता सुनील मिश्रा (18), अरुण पिता सोनीकुमार (18) लौट के घर नहीं आए।
आखिर दोषी कौन?
इतने बड़े दर्दनाक हादसे के लिए कौन जिम्मेदार है इसको लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही है। प्रदेश सरकार के मंत्री पीसी शर्मा ने इस हादसे के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है। शर्मा के अनुसार अगर खटलापुरा घाट पर जिला प्रशासन द्वारा एसडीएम तहसीलदार या फिर नायब तहसीलदार, पुलिस अधिकारी एवं सिपाही और गोताखोर मौजूद होते तो 11 लोगों की अकाल मृत्यु टाली जा सकती थी। इसलिए इस हादसे के जिम्मेदार वह अधिकारी और कर्मचारी हैं जिन्हें वहां ड्यूटी पर लगाया गया था। उन्होंने खटलापुरा घाट में तैनात किए गए प्रशासनिक अधिकारी और कर्मचारी को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने और इस पूरे मामले की मजिस्ट्रीरियल जांच के आदेश देने के लिए कमिश्नर को पत्र लिखा है।
लेकिन दूसरी तरफ प्रदेश की प्रशासनिक वीथिका में यह चर्चा जोरों पर है कि सरकार ने जिस तरह पूरे घर को बदल डालने की तर्ज पर तबादले किए हैं उसके कारण यह हादसा हुआ है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि राजधानी होने के कारण भोपाल हमेशा संवेदनशील रहता है। अत: कम से कम यहां पर तो प्रशासनिक बदलाव क्रमवार करना चाहिए था। यानी सरकार को पहले कुछ अधिकारियों को बदलना था फिर जैसे-जैसे वे अनुभवी होते जाते दूसरे अफसरों को बदला जाता। सरकार अगर एक बार में 25 फीसदी अफसरों को बदलती तब भी कोई नुकसान नहीं होता। लेकिन सरकार ने तो राजस्व, नगर निगम, पुलिस सहित अन्य विभागों के पूरे कुनबे को ही बदल डाला। ऐसे में राजधानी में अनुभवहीन अधिकारियों की फौज खड़ी हो गई जो कागजों पर ही आदेश देने में लगी रही। प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि इस हादसे के लिए सरकार जिम्मेदार है। सरकार पिछले 8 माह से केवल अधिकारियों के तबादले में ही व्यस्त है। अब हादसा होने के बाद उन्हें अपना दोष नजर नहीं आ रहा है।
जिम्मेदारी सौंपकर भूले
गौरतलब है कि गणेशोत्सव को शांतिपूर्ण सम्पन्न कराने के लिए प्रशासन ने पहले से तैयारियां की थी। गणेश विसर्जन को लेकर भी जिला प्रशासन के सभी विभागों ने कई बार बैठकें कीं और अलग-अलग विभागों को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गईं। एमपीईबी, पीडब्ल्यूडी, नगर निगम, पुलिस प्रशासन को अलग-अलग जिम्मा दिया गया था। एमपीईबी की जिम्मेदारी भोपाल के 15 घाटों पर विद्युत व्यवस्था करने और लाइन मैन आदि की ड्यूडी लगाने की थी। पीडब्ल्यूडी की जिम्मेदारी घाट स्थलों पर तार फेंसिंग, घाटों की सीढिय़ों पर बेरिकेटिंग करने और बांसों में लाल कपड़ा बांधने की थी ताकि लोग पानी में न जा सकें। पुलिस की जिम्मेदारी चल समारोह में सुरक्षा व्यवस्था, यातायात व्यवस्था और झांकियों को घाटों तक सुरक्षित पहुंचाने की थी। लेकिन इसका अनुपालन हुआ कि नहीं इसकी पड़ताल किसी ने नहीं की। वरिष्ठ अधिकारियों ने कनिष्ठों को जिम्मेदारी सौंपकर उसकी मॉनीटरिंग करना भी जरूरी नहीं समझा।
नगर निगम की कागजी तैयारी
चल समारोह और विसर्जन की सबसे महत्वपूर्ण व्यवस्था नगर निगम की थी। निगम को साफ-सफाई करने और सुरक्षित नाव, प्रशिक्षित नाविक तैनात करने, गोताखोरों की व्यवस्था करने, किसी भी घटना से बचाव के लिए बचाव दल तैनात करने आदि की जिम्मेदारी थी। विसर्जन घात पर क्रेन की व्यवस्था करने की भी जिम्मेदारी थी। प्रारंभिक रूप से सामने आया कि नगर निगम ने नाव की क्षमता का परीक्षण नहीं किया। नियम अनुसार बड़ी मूर्तियों को विसर्जन के लिए नगर निगम द्वारा तैनात नाविकों और गोताखोरों को ले जाना था। मूर्ति के साथ आए लोगों को घाट पर ही रोकना था, जो कि नगर निगम ने नहीं किया। नाविकों को भी अलग से ड्रेस अथवा आईडी नहीं दिए गए।
नियमानुसार विसर्जन जैसे आयोजन के दिन घाटों पर नगर निगम के छोटे अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों को भी तैनात रहना चाहिए। लेकिन खटलापुरा घाट पर देखने को यह मिला कि वहां न तो निगम का पूरा अमला तैनात था और न ही वरिष्ठ अधिकारी। यही नहीं अधिकारियों ने 12 सितंबर की शाम से लेकर रात तक घाट का जायजा भी नहीं लिया। इसका असर यह हुआ कि तालाब में नाव चलाने वाले नाविक अपनी मर्जी से मूर्तियों का विसर्जन करते रहे।
पुलिस-प्रशासन नदारद
इस दर्दनाक घटना की एक वजह पुलिस की निष्क्रियता भी सामने आई है। हैरानी की बात यह है कि हादसा स्थल के पास ही मप्र होमगार्ड और राज्य आपदा बचाव दल के मुख्यालय है। इनकी तैयारियों और मुस्तैदी भी कटघरे में आ गई है। एनडीआरएफ ने ईदगाह हिल्स पर अपना रीजनल रिस्पांस सेंटर भी खोला है। दावा है कि इसकी टीम नदी-नालों और तालाब में डूबने वालों को बचाने 24 घंटे मुस्तैद है। फेसबुक पर सक्रिय रहने वाले आपदा प्रबंधन के एडीजी दिनेश सागर अकसर दावा करते रहे हैं कि उनकी टीम लोगों को सुरक्षा और दूसरों की रक्षा करने की ट्रेनिंग देती रहती है। सवाल यह है कि क्या गणेश विसर्जन के पहले कोई ट्रेनिंग दी गई थी, तो उसका क्या असर दिखा? लोग बगैर लाइफ जैकेट के कैसे नाव पर सवार हो गए? उन्हें लाइफ जैकेट दी भी गई थी या नहीं?
पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस स्थल पर पुलिस के 50 जवान तैनात किए गए थे जिसमें से 23 ड्यूटी पर ही नहीं पहुंचे। वहीं यहां होने वाले विसर्जन के दौरान सुरक्षा व्यवस्था की मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी जहांगीराबाद थाने के टीआई वीरेंद्र सिंह और महिला थाने की टीआई अनिता नायर को दी गई थी। लेकिन जब घटना हुई उस समय दोनों का पता नहीं था। इसी तरह की स्थिति अन्य महकमों में भी रही।
10 बैठकें फिर भी 11 मौत
गणेश विसर्जन की तैयारियों को लेकर प्रशासन, पुलिस और नगर निगम ने इस बार करीब 10 बैठकें की थी। इसके बावजूद तैयारियों में चूक हुई और विसर्जन के दौरान डूबने से 11 युवकों की मौत हो गई। इससे राजधानीवासी स्तब्ध हैं। वहीं मृतकों के परिजन हादसे के लिए एसडीईआरएफ, जिला और पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। उनका आरोप है कि मौके पर पुलिस बल कम था। एसडीईआरएफ और निगम के गोताखोर नहीं थे। अगर सुरक्षा व्यवस्था होती तो किशोर व युवकों बचाया जा सकता था। 11 युवकों की मौत के बाद अस्पताल में कमिश्नर कल्पना श्रीवास्तव, कलेक्टर तरुण पिथोडे, आईजी योगेश चौधरी, डीआईजी इरशाद वली समेत सभी अधिकारी पीएम होने तक सतर्क दिखे।
मापदंडों का पालन क्यों नहीं?
मप्र की पूर्व मुख्यसचिव निर्मला बुच कहती है कि ऐसे आयोजनों के लिए मापदंड तय रहते हैं। वह कहती हैं कि भोपाल में सिर्फ 6 फीट तक की मूर्ति स्थापना की इजाजत है, इसके बावजूद 17 फीट की मूर्ति की स्थापना कैसे की गयी और यहां उसके विसर्जन की इजाजत किसने दी। उनका कहना है कि नियम तो यह है कि प्रशासन के पास यह पूरा रिकार्ड रहना चाहिए कि इस साल कितनी जगह मूर्तियां बैठाई जा रही हैं। वहां मापदंडों का पालन हुआ है कि नहीं। विसर्जन के दिन आयोजन समिति किस जगह पर मूर्ति की विसर्जन करेगी और उसका मार्ग क्या होगा। लेकिन शायद ही प्रशासन ने यह रिपोर्ट तैयार करवाई हो। अगर ऐसा होता तो जैसा सुनने में आ रहा है कि मूर्ति का विसर्जन... घाट पर होना था, लेकिन उसे बाद में खटलापुरा लेकर पहुंच गए। वह कहती हैं कि निश्चित रूप से इस दर्दनाक हादसे के लिए प्रशासन की लापरवाही जिम्मेदारी है।
अगर देखा जाए तो यह बात सही है कि क्या गणपति विसर्जन के लिए किसी भी मापदंड का पालन नहीं किया गया। गणपति की बड़ी मूर्ति जिसको क्रेन के जरिए विसर्जित किया जाना था उसको नाव से ले जाने की अनुमति क्यों दी गई? क्या हादसे के वक्त मौके पर गोताखोरों की टीम नहीं मौजूद थी या मौजूद थी तो तुरंत रेस्क्यू क्यों नहीं शुरु किया गया? यह कुछ ऐसे सवाल है जो भोपाल में दर्दनाक नाव हादसे के बाद उठ रहे हैं। पहली नजर में इस बड़े हादसे के पीछे साफ तौर पर प्रशासन की लापरवाही जिम्मेदार दिख रही है। जब घटना स्थल पर प्रत्यक्षदर्शियों से बात की तो उन्होंने बताया कि नाव पर क्षमता से अधिक लोग सवार थे जिसके चलते नाव अंसतुलित होकर पलट गई। जैसे ही नाव पलटी वहां चीख पुकार मच गई। चश्मदीदों के मुताबिक घटना का काफी देर बाद रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया जा सका। जिससे हादसे के बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं जैसे जिला प्रशासन और नगर निगम की जिम्मेदारी बनती है कि विसर्जन घाट पर गोताखोरों की व्यवस्था रखें। पुलिस और होमगार्ड की जिम्मेदारी है कि नाव में अधिक लोगों को न बैठने दिया जाए।
इस हादसे के पीछे हर स्तर पर
लापरवाही का खुलासा हुआ है। जिला प्रशासन हो या फिर नगर निगम, विजर्सन घाट पर व्यवस्था की जिम्मेदारी इनकी थी। पुलिस प्रशासन सुरक्षा व्यवस्था देखता है। सभी स्तर पर जिम्मेदारों ने लापरवाही बरती। यही वजह रही कि हादसे के आधे घंटे बाद तक पानी में डूब रहे युवकों को मदद नहीं मिली। मौके पर
मौजूद नाविकों ने युवकों की जान बचाने की कोशिश भी की, लेकिन वो केवल पांच को ही बचा सके।
8 बिंदुओं पर होगी जांच
सांप के निकल जाने के बाद लाठी पीटने की परंपरा के अनुसार अब घटना की जांच 8 बिन्दुओं पर की जा रही है। जांच के तहत मृत्यु की सूचना पुलिस को कब मिली और पुलिस ने तत्काल क्या कार्रवाई की, घटना किन परिस्थितियों में हुई, क्या घटना के लिए कोई जिम्मेदार है, विसर्जन के दौरान ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या प्रयास किए गए थे- जैसे बिन्दुओं की जांच की जाएगी। इसके अलावा क्या मृत व्यक्तियों का पोस्टमॉर्टम कराया गया और बिसरा रिपोर्ट में क्या साक्ष्य मिले, इसकी भी विस्तृत जांच होगी। प्रशासनिक आदेश में कहा गया है कि स्थानीय नागरिकों की संपूर्ण घटनाक्रम में क्या भूमिका रही, इसकी भी पड़ताल की जाए। साथ ही ऐसी दुर्घटना दोबारा न हो, इसको लेकर भी जांच में सुझाव दिए जाएंगे। मप्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने घटना की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं। सरकार ने मृतकों के परिजनों को 11-11 लाख रुपए मुआवजा देने का ऐलान किया है।
बड़े अफसरों पर होगी कार्रवाई
इस हादसे के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार बड़े अफसरों पर कार्रवाई करेगी। क्योंकि पूरे विसर्जन कार्यक्रम को संरक्षित संपन्न कराने की जिम्मेदारी इनकी थी। लेकिन अभी तक इस हादसे के लिए जिम्मेदार मानकर 4 नाविकों आकाश, चंगु, शुभम और अभिषेक बाथम को पुलिस ले गिरफ्तार किया है।
सरकार ने किसी बड़े अधिकारी पर कार्रवाई नहीं की है। छोटे ही कर्मचारियों को जिम्मेदार मानकर एक्शन लिया है। वहां गोताखोर नहीं थे। गहरे पानी में जाने से रोकने रस्सी तक नहीं लगी थी। लेकिन सिर्फ कार्यपालन यंत्री आरके सक्सेना व अग्रिशमन अधिकारी साजिद खान को ही निलंबित किया है। बड़ी मूर्ति होने पर पुलिस ने नाविकों को नहीं रोका।
मौके पर बड़े अधिकारी नहीं थे फिर भी सिर्फ एएसआई शिववचन यादव को ही निलंबित किया गया है। सरकार का यह कदम निराशाजनक है।