18-Sep-2019 07:30 AM
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प्रदेशभर में जो संकेत मिल रहे हैं उससे तो केवल एक बात साफ लग रही है, और वह है नीतीश कुमार का एक बार फिर मुख्यमंत्री चुना जाना। खासकर इस कथन को बल बिहार की राजधानी पटना में पिछले दिनों तीन अलग-अलग घटनाओं से मिला। इनका एक-दूसरे से कोई सम्बंध नहीं था लेकिन सबका राजनीतिक अर्थ एक था। पहला मामला है पटना स्टेशन का जहां पर लालू यादव के शासन में शुरू किया गया दूध मार्केट तोड़कर समतल कर दिया गया। रात में तेजस्वी यादव भागे-भागे विरोध करने पहुंचे लेकिन फिर कुछ घंटों में अपना धरना खत्म कर दिया। यह मार्केट यादवों के, खासकर लालू यादव और उनकी पार्टी का बिहार की सत्ता पर पकड़ और हनक की पहचान था।
इस इलाके से मात्र कुछ सौ मीटर की दूरी पर भाजपा के सांसद रामकृपाल यादव का घर है। लेकिन वे तो अपने घर से निकले भी नहीं। जो दर्शाता है कि न केवल लालू-तेजस्वी-रामकृपाल यादव युग का अंत हो चुका है बल्कि इनकी अब इतनी राजनीतिक औकात नहीं बची कि यादव समाज की इज्जत से जुड़े एक दूध मार्केट को जमींदोज किया जा रहा था तब वे कुछ कर सकें। हालांकि इस मार्केट को जब भी पटना स्टेशन के सौंदर्यीकरण के नाम पर तोडऩे की कोशिश होती थी तब लालू यादव अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रुकवा लेते थे।
दूसरे मामले में बिहार के नवनियुक्त राज्यपाल फागू चौहान ने भाजपा के अति पिछड़ी जातियों में से एक वर्ग नोनिया, बेलदार कानु महासंघ के बैनर तले आयोजित एक समारोह में भाग लिया। राजभवन से विशेष रूप से मीडिया वालों को फोन किया गया कि कवरेज करें। इस कार्यक्रम में बिहार भाजपा के सभी नेता मंच पर मौजूद थे। निश्चित रूप से भाजपा ने राज्यपाल को इस मंच पर बुलाकर कोई अच्छी परंपरा की शुरुआत नहीं की लेकिन उसकी परेशानी है कि तमाम प्रयासों के बावजूद समाज के इस वर्ग में वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पैठ का काट नहीं ढूंढ पाई है और वह जानती है कि इस वर्ग का जब तक नीतीश को विश्वास हासिल है तब तक बिहार की सत्ता में परिवर्तन एक बहस का विषय हो सकता है लेकिन सत्ता के शीर्ष पर इसका असर नहीं दिखेगा।
बकौल बिहार भाजपा के नेता जिस प्रकार नीतीश कुमार ने अति पिछड़े के लिए अब तक पूरे बिहार में तीन सीट मुजफ्फरपुर, झंझारपुर और सुपौल से इस बार कटिहार और जहांनाबाद तक से इस समुदाय के अंदर आने वाली जातियों के लोगों को संसद सदस्य बनने का मौका दिया उसके बाद मात्र जाति के सम्मेलन में राज्यपाल को खड़ा कर देने से दाल नहीं गलने वाली। शायद इस वास्तविकता का अंदाजा भाजपा के अलावा राजद को भी है, इसलिए तेजस्वी यादव जब अपने नए घर में जाते हैं तब वहां पहली बैठक अति पिछड़े समुदाय की करते हैं। उनकी जुबान पर अब समाज के अति पिछड़े समुदाय को पार्टी और टिकट में हिस्सेदारी देना है। लेकिन राजद के नेता भी मानते हैं कि इन अति पिछड़ी जातियों को जोडऩे की मुहिम और बिहार की राजनीति में उनका महत्व समझने में लालू तेजस्वी ने बहुत समय गंवाया है। इसके रिजल्ट के लिए अगले साल के विधानसभा चुनाव में उम्मीद करना बेकार है, इसीलिए उन्हें 2025 तक इंतजार करना होगा।
वहीं नीतीश की पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए पोस्टर लगाना शुरू करती है तो भाजपा के नेता सुशील मोदी की सलाह होती है कि एनडीए में नेतृत्व पर कोई संशय नहीं, चुनाव में समय है। उनका मतलब नीतीश कुमार और उनके समर्थकों से ही होगा कि विकास के काम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- विनोद बक्सरी