05-Sep-2019 07:28 AM
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बिहार भाजपा में अध्यक्षी को लेकर अभी असमंजस की स्थिति है। ऐसे में सियासी जगत में इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय के गृह राज्य मंत्री बनने के बाद बिहार भाजपा की कमान किसे मिलेगी। सवाल यह भी उठ रहा है कि इस बारे में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को निर्णय लेने में देरी क्यों हो रही है। इस बारे में प्रदेश भाजपा और पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों से बातचीत करने पर यह समझ में आ रहा है कि पार्टी के किसी अंतिम निर्णय तक न पहुंच पाने के पीछे कई कारण हैं।
भाजपा के एक पदाधिकारी इस बारे में बताते हैं, मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय यादव समाज से हैं। ऐसे में पार्टी के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि अगला अध्यक्ष किस समाज से हो। अन्य पिछड़ा जाति और उसमें से भी यादव प्रदेश अध्यक्ष के पक्ष में कई बातें कही जा रही हैं। कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय जनता दल जिस बुरी स्थिति में है, वैसे में अगर एक यादव को अध्यक्ष बनाकर अगर भाजपा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी में लगती है तो उससे लालू यादव के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाकर वह अपनी स्थिति मजबूत कर सकती है।Ó
वे आगे बताते हैं, इसी तरह से दूसरी पिछड़ी जातियों में से नया अध्यक्ष बनाने पर भी खूब बहस हो रही है। प्रदेश भाजपा में एक तबका ऐसा है जो यह कहता है कि इस वर्ग का प्रतिनिधित्व खुद बिहार भाजपा के सबसे बड़े नेता और मौजूदा उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी करते हैं, इसलिए अगड़ी जाति के किसी व्यक्ति को प्रदेश की कमान सौंपनी चाहिए। इसके पक्ष में यह कहा जा रहा है कि अगड़ी जातियां प्रदेश में भाजपा के साथ रही हैं और बिहार में कांग्रेस के लगातार कमजोर होने की स्थिति में यह वर्ग पूरी तरह से भाजपा के साथ आ सकता है। पर अगर इस वर्ग को यह लगा कि भाजपा पिछड़ों की राजनीति के चक्कर में अगड़ों को नजरंदाज कर रही है तो इससे भाजपा के इस पारंपरिक समर्थन वर्ग के दूर छिटकने का जोखिम भी है।Ó
अलग-अलग सामाजिक वर्गों के भाजपा नेताओं की दावेदारी और इस वजह से केंद्रीय नेतृत्व में बनी भ्रम की स्थिति की वजह से बिहार भाजपा अध्यक्ष के लिए कई नामों को लेकर चर्चा चल रही है। यादव अध्यक्ष की स्थिति में पहले बिहार भाजपा के कद्दावर नेता नंदकिशोर यादव के नाम को लेकर भी चर्चा थी। कहा जा रहा था कि अगर यादव समाज से ही किसी को अध्यक्ष बनाना हो तो वे सबसे विश्वसनीय चेहरा होंगे। लेकिन झारखंड विधानसभा चुनावों के लिए सह प्रभारी के तौर पर उनकी नियुक्ति के बाद अब उनके नाम की चर्चा पर विराम लग गया है। इस कड़ी में अब सीवान के पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव का नाम भी चल रहा है। लेकिन, भाजपा के कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि वे संघ की प्रक्रिया के तहत भाजपा में नहीं आए बल्कि पहले निर्दलीय सांसद थे और बाद में भाजपा में आए, इसलिए उनकी नियुक्ति की संभावना कम है।
चर्चा पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव के नाम की भी चल रही है। लेकिन राष्ट्रीय जनता दल से आए रामकृपाल यादव की दावेदारी के बारे में भी वही बात कही जा रही है जो ओमप्रकाश यादव के बारे में कही जा रही है। अगड़ी जातियों की बात की जाए मिथिलेश तिवारी, राजेंद्र सिंह और देवेश कुमार जैसे नेताओं का नाम चर्चा में है। उधर, ओबीसी से जो नाम चर्चा में हैं उनमें संजय जायसवाल, राजेंद्र गुप्ता और संजीव चौरसिया प्रमुख हैं। पार्टी के लोगों से इन नामों की संभावनाओं पर बात करने पर पक्ष-विपक्ष में दोनों तरह के तर्क दिए जा रहे हैं। इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि संभव है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इनसे
अलग भी कोई नाम प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर तय कर दे।
- विनोद बक्सरी