31-Aug-2013 09:23 AM
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मनचाहे धन की प्राप्ति हेतु श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे संकटनाशन गणेश स्तोत्र के 11 पाठ करें।

प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम। भक्तावासं स्मरैनित्यंमायु कामार्थसिद्धये।।1।।
भगवान गणेश की शास्त्रीय विधि भी इस प्रकार है। इनके क्रमों की संख्या 16 है। आह्वान, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंधपुष्प, पुष्पमाला, धूप-दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, आरती-प्रदक्षिणा और पुष्पांजलि आदि।
भगवान गणेश की पूजा के लिए ऋग्वेद के गणेश अथर्व सूत्र में कहा गया है कि रक्त पुष्पै सुपूजितम अर्थात् लाल फूल से विनायक की पूजा का विशेष महत्व है। स्नानादि करके सामग्री के साथ अपने घर के मंदिर में बैठे, अपने आपको पवित्रीकरण मंत्र पढ़कर घी का दीप जलाएं और दीपस्थ देवतायै नम: कहकर उन्हें अग्निकोण में स्थापित कर दें। इसके बाद गणेशजी की पूजा करें। अगर कोई मंत्र न आता हो, तो गं गणपतये नम: मंत्र को पढ़ते हुए पूजन में लाई गई सामग्री गणपति पर चढाएं, यहीं से आपकी पूजा स्वीकार होगी और आपको शुभ-लाभ की अनुभूति मिलेगी। गणेश जी की आरती और पूजा किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि कार्य निर्विघ्न पूरा हो। यदि भवन में द्वारवेध हो तो वहां रहने वालों में उच्चटन होता है। भवन के द्वार के सामने वृक्ष, मंदिर, स्तंभ आदि के होने पर द्वारवेध माना जाता है। ऐसे में भवन के मुख्य द्वार पर गणोशजी की बैठी हुई प्रतिमा लगानी चाहिए किंतु उसका आकार 11 अंगुल से अधिक नहीं होना चाहिए। जिस रविवार को पुष्य नक्षत्र पड़े, तब श्वेतार्क या सफेद मंदार की जड़ के गणेश की स्थापना करनी चाहिए। इसे सर्वार्थ सिद्धिकारक कहा गया है। इससे पूर्व ही गणेश को अपने यहां रिद्धि-सिद्धि सहित पदार्पण के लिए निमंत्रण दे आना चाहिए और दूसरे दिन, रवि-पुष्य योग में लाकर घर के ईशान कोण में स्थापना करनी चाहिए। घर में पूजा के लिए गणेश जी की शयन या बैठी मुद्रा में हो तो अधिक उपयोगी होती है। यदि कला या अन्य शिक्षा के प्रयोजन से पूजन करना हो तो नृत्य गणेश की प्रतिमा या तस्वीर का पूजन लाभकारी है। संयोग से यदि श्वेतार्क की जड़ मिल जाए तो रवि-पुष्य योग में प्रतिमा बनवाएं और पूजन कर अपने यहां लाकर विराजित करें। गणोश की प्रतिमा का मुख नैर्ऋत्य मुखी हो तो इष्टलाभ देती है, वायव्य मुखी होने पर संपदा का क्षरण, ईशान मुखी हो तो ध्यान भंग और आग्नेय मुखी होने पर आहार का संकट खड़ा कर सकती है। पूजा के लिए गणेश जी की एक ही प्रतिमा हो। गणेश प्रतिमा के पास अन्य कोई गणेश प्रतिमा नहीं रखें। गणेश को रोजाना दूर्वा दल अर्पित करने से इष्टलाभ की प्राप्ति होती है। दूर्वा चढ़ाकर समृद्धि की कामना से ऊं गं गणपतये नम: का पाठ लाभकारी माना जाता है। वैसे भी गणपति विघ्ननाशक तो माने ही गए हैं।
गणेश प्रतिमा से कीजिए वास्तु दोष का निवारण
किसी भी धार्मिक व शुभ कार्य में भगवान श्रीगणेश का बहुत महत्व है, परन्तु वास्तुशास्त्र के दृष्टिकोण से भी श्रीगणेश की महिमा कुछ कम नहीं..
वास्तुशास्त्र के दोष दूर करने के लिहाज से भगवान गणेश की प्रतिमा बेहद उपयोगी सिद्ध हो सकती है। नए घर में प्रवेश से लेकर उसमें रहते हुए आप कई तरह से गणेशजी की प्रतिमा का इस्तेमाल कर सकते है।
- यदि किसी भवन का मुख्यद्वार दक्षिण दिशा में खुलता हो तो उस द्वार की चौखट के ऊपर, बाहर व भीतरी हिस्से में गणेश जी की छोटी सी प्रतिमा लगाने से भवन का दक्षिण मुखी दोष समाप्त हो जाता है।
- यदि भवन में प्रवेश करने पर आपको किसी अनजानी नकारात्मकता का बोध होता हो तो घर के भीतर बिल्कुल सामने की ओर मुख्य द्वार की ओर देखती हुई भगवान गणेश की नौ इंच की प्रतिमा लगाई जा सकती है।
- नए घर में प्रवेश के समय अपने घर की लॉबी में पूर्व की दिशा की दीवार पर आठ अंगुली के माप की यानी कि लगभग छह इंच ऊंची गणेश जी की प्रतिमा का प्रयोग करें। घर में जब सामान पूरी तरह व्यवस्थित तरीके से रख दिया जाए तो इस प्रतिमा को पूजाघर में लगा लें।
- हर शुभ अवसर पर ऑफिस, फैक्ट्री या दुकान में श्री गणेश जी के प्रतिरूप अर्थात स्वास्तिक के चिह्ल को ताम्रपत्र या पूजा की थाली पर अंकित कर के उसकी पूजा करें तो व्यापार में सहायक सिद्ध होता है।
- भवन की हर किसी दिशा में भगवान श्रीगणेश कि प्रतिमा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बल्कि सामान्यतया इस मूर्ति या फोटो को कुछ इस प्रकार रखें कि इन्हें नमन करते समय हमारा मुख सदा पूर्व या फिर उत्तर दिशा की ओर हो। अर्थात ऐसे में श्रीगणेश जी की तस्वीर या मूर्ति का मुख स्वत: ही दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा की ओर होगा।
- आजकल मार्केट में श्रीगणेश जी की बंदनवार भी मिलती है। विभिन्न त्योहारों पर इस बंदनवार को भी मुख्य प्रवेश द्वार की चौखट पर प्रयोग कर सकते हैं।
- वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन के मुख्य प्रवेशद्वार के दाहिनी व बाई ओर रोली, हल्दी या बिना केमिकल वाले लाल रंग से स्वास्तिक का चिह्ल बनाकर प्रवेश द्वार को और भी सकारात्मक बनाया जा सकता है।
- पहले से बने भवन के मध्य भाग यानी कि ब्रह्मास्थल में तुलसी के पौधे के साथ श्रीगण्ेाश जी की भी पूजा अर्चना करने से संपूर्ण भवन को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी।
इन बातों पर भी विचार
कर सकते हैं
- जगह-जगह व हर कमरे में या हर स्थान पर श्री गणेश जी की प्रतिमा का प्रयोग करने से बचने की कोशिश करनी चाहिए। पूजाघर के अलावा बच्चों की स्टडी में इसका इस्तेमाल कर सकते है।
- आवासीय भवन में श्री गणेश जी का बैठा व आशीर्वाद देता रूप प्रयोग करें। जबकि व्यावसायिक परिसर में भगवान की अन्य मुद्राओं वाले रूप का प्रयोग भी कर सकते हैं।