स्वांत: सुखाय रघुनाथगाथा
19-Jun-2019 08:11 AM 1241481
ईश्वर के अवतार, लोक कल्याण के लिये सभी निजी इच्छाओं का बलिदान देने वाले नायक, तुलसी के राम का रूप आध्यात्मिक क्षेत्र में कवि-मनीषी के अपने विकास को अनेक प्रकार से प्रतिबिंबित करता है। तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा भी है... नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि। स्वांत: सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा भाषानिबंधमतिमंजुलमातनोति॥ यानी अनेक पुराण, वेद और शास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध रघुनाथ की कथा को तुलसीदास अपने अंत:करण के सुख के लिए अत्यंत मनोहर भाषा रचना में निबद्ध करता है। जनप्रिय मिथक के अनुसार यदि रत्नावली ने अपने पति पर कटाक्ष नहीं किया होता तो युवा रामबोला दुबे आत्मन् की तलाश में नहीं निकले होते और रामचरित मानस भी कभी नहीं लिखी गई होती, अंतत: उनका रूपांतरण उन तुलसी दास में नहीं होता जिनसे हम सब परिचित हैं। तुलसी की राम कथा का वृतांत वाल्मीकि के वृत्तान्त से इस अर्थ में भिन्न है कि वे कथा-वस्तु को भक्ति के परिप्रेक्ष्य से देखते हैं, न कि एक नायक के प्रशंसक के रूप में। तुलसी दास के लिये राम सच्चिदानंद ब्रह्म की मूर्ति हैं। अखण्ड के लिये कवि की तलाश को एक निजी ईश्वर- इष्टदेव राम में आधार मिला। तुलसी दास के अनुसार स्वयं राम से बड़ा राम का नाम था। अत: वे राम नाम के जाप को बहुत मूल्यवान् तथा अखण्ड की दिशा में ले जाने वाला विश्वसनीय रास्ता मानते हैं। तुलसी मानस में लिखते हैं कि... नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन। करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन॥ यानी जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण हैं, जिनके पूर्ण खिले हुए लाल कमल के समान नेत्र हैं और जो सदा क्षीरसागर पर शयन करते हैं, वे (नारायण) मेरे हृदय में निवास करें। रामचरित मानस राम के लिये तुलसी दास की गहन भक्ति तथा मोक्ष प्राप्ति की विधि के रूप में भक्ति मार्ग में उनकी गहन आस्था को प्रतिबिंबित करता है। कथा है कि तुलसी दास जब परिव्राजक के रूप में भटक रहे थे तब हनुमान एक वृद्ध व्यक्ति के वेश में रामायण पर उनका प्रवचन सुनने आया करते थे। माना जाता है कि उन्होंने ही तुलसी दास को राम के प्रथम दर्शन कराये थे। अपने स्वामी के लिये हनुमान का दासभाव तुलसी दास को इतना प्रभावित कर गया कि राम की महिमा वर्णन करते हुये उन्होंने भी यही भाव धारण कर लिया। उनके तथा उनके समकालीन निर्गुण-सगुण भक्ति के अन्य मनीषियों को जिस दैवी आवेश ने घेर रखा था उसकी प्रेरणा विशिष्टाव्दैत संप्रदाय से मिली थी जो पूर्ण ब्रह्म को निजी इष्टदेव के रूप में देखता है। रामानुज के काशीनिवासी शिष्य रामानंद के माध्यम से इस संप्रदाय का प्रभाव फैला। तुलसीदास मानस में लिखते हैं... श्रीगुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥ दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥ यानी श्री गुरु के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करने वाला है, वह जिसके हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं। काशी में तुलसीदास ने आम आदमी की भाषा में राम की वीर गाथाओं का महाकाव्यात्मक वर्णन प्रस्तुत किया और इसे चार पदों वाले चौपाई छंद में बांधा। धर्म रक्षा की केंद्रीय विषय-वस्तु के भीतर राम के जीवन के विभिन्न वीरतापूर्ण तथा त्रासद आयामों को उद्घाटित करते हुये भी तुलसी दास अपने लेखन के केंद्र में राम के प्रति अपनी भक्ति की सुगंध बनाये रखते हैं। राम, मुझमें कोई गुण नहीं है, मैं योगी नहीं, मैं ध्यानी नहीं, मैं धनी नहीं, मेरे पास आपको देने के लिये केवल मेरा प्रेम है। अत: केवल मेरे प्रेम के साथ मेरी नैया पार लगाओ। तुलसीदास लिखते हैं कि बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥ सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥ यानी सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और राम की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में मिलता नहीं। सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। सत्संग की सिद्धि ही फल है और सब साधन तो फूल है। शरणागति अथवा पूर्ण के प्रति समर्पण की यह प्रखर अनुभूति राम के प्रति हनुमान के दास के भाव के समान है और यह प्रवृत्ति अथवा आत्म-समर्पण के वैष्णव सिद्धान्त की अंतर्निहित विषय-वस्तु की तरह रामचरित मानस में समाया हुआ है और आत्म-साक्षात्कार का एक माध्यम है। तुलसी दास की रामायण आम आदमी की उपनिषद है, ज्ञान का अपेक्षाकृत अधिक समझ आने वाला स्रोत है जहां से वह अपने जीवन के अनेक उतार चढ़ाव समझने की क्षमता ग्रहण करता है। संकट और उलझन के क्षणों में वे सहारे के लिये राम की तरफ मुड़ते हैं और राम के वीर एवं धार्मिक व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने की कोशिश करते हैं। अपनी विनय-पत्रिका को तुलसीदास राम के पास छ: वासनाओं तथा नौ दुर्गुणों के विरूद्ध अरजी देते हुये प्रस्तुत करते है! इस विश्वास के साथ कि राम इंद्रियों की दुर्बलताओं को जीतने में मदद करेंगे, क्योंकि राम का नाम स्वयं राम से बड़ा है। तुलसी दास की जीवन यात्रा एक साधारण गृहस्थ जीवन से एक भक्ति कवि और आध्यात्मिक अन्वेषी तक की यात्रा क्षणिक ऐंद्रिक आनंद से आत्मा के आंतरिक अनुभव तक आत्मा के विकास का प्रतीक है। -ओम
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^