तुलसी नारी विरोधी नहीं
17-Apr-2019 08:39 AM 1235621
तुलसीदास रचित रामचरित मानस में मनुष्य जीवन की कई परेशानियों का हल लिखा है। इस धार्मिक ग्रन्थ की हर पंक्ति रामायण काल की गाथा सुनाने के साथ व्यक्ति को ज्ञान, जीवन उद्देश्यों और उपदेशों से भी परिचित कराती है। भारतीय संस्कृति में तुलसीदास जी का अहम स्थान है। तुलसी ने रामचरितमान के जरिए न सिर्फ राम को महापुरुष के रूप में प्रस्तुत किया है बल्कि इस धार्मिक ग्रंथ के जरिए समाज में स्त्रियों की महत्ता को भी तमाम चौपाईयों के जरिए व्यक्त किया है। आइए जानते हैं कि भक्तिभाव से पढ़ी जाने वाली श्री रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसी ने नारी के बारे में क्या विचार प्रकट किए हैं। जननी सम जानहिं पर नारी। तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे।। मानव जीवन में नारियों के प्रति सम्मान को प्रतिस्थापित करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं कि जो पुरुष अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को अपनी मां के सामान समझता है, उसी के ह्रदय में ईश्वर का वास होता है। जबकि इसके विपरीत जो पुरुष दूसरी स्त्रियों के संग संबंध बनाता है वह पापी होता है और वह ईश्वर से हमेशा दूर रहता है। ढोल गंवार शूद्र पशु नारी। सकल ताडना के अधिकारी।। तुलसीदास जी की इस चौपाई के जरिए कुछ लोग तुलसीदास जी को नारी विरोधी बताते हैं लेकिन वास्तविकता ये है कि जो संत माता पर्वती के लिखते समय इस वाक्य का प्रयोग करते हैं कि उनके जन्मते ही धरती पर चारो तरफ खुशहाली छा गई। इसी तरह रामचरित मानस में माता सीता के सम्मान में तमाम तरह के शब्दों का प्रयोग करते हैं। उनके द्वारा लिखी गई रामचरित मानस में श्री हनुमान जी को अष्ट सिद्धि नव निधि दाता होने का आशीष भी माता सीता के द्वारा दिए जाने की बात कही जाती है। धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी।। तुलसीदास जी ने मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए जिन प्रमुख लोगों के योगदान की चर्चा अपनी चौपाई में की है, उसमें नारी को विशेष रूप से शामिल किया गया है। तुलसीदास जी ने चौपाई के जरिए कहा है कि धीरज, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा कठिन परिस्थितियों में ही की जा सकती है। सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥ तुलसीदास जी इस चौपाई के माध्यम से मनुष्यों को समझाने के प्रयास कर रहे हैं कि जो व्यक्ति अपना-अपना कल्याण, सुंदर यश, सुबुद्धि, शुभ गति और नाना प्रकार के सुख चाहता हो, वह उसी प्रकार परस्त्री का मुख न देखें जैसे लोग चौथ के चंद्रमा को नहीं देखते। तुलसीदास जी ने लोगों को इस चौपाई के जरिए स्त्री के सम्मान को सुरक्षित करते हुए मनुष्य को कुदृष्टि से बचने को कहा है। मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना। नारी सिखावन करसि काना।। लोकनायक महाकवि तुलसीदास एक ऐसे सचेष्ट समाजदृष्टा हैं जो समाज के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल का रेखांकन अत्यंत गंभीरता के साथ करते हैं। इस गंभीर पड़ताल का रेखांकन सूचनार्थ नहीं है बल्कि सहृदयता के साथ संवेदना के धरातल पर किया गया सकारात्मक एवं मानवीय दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण कार्य है। तुलसीदास ऐसे संवेदनशील महाकवि हैं जो रामचरित मानस जैसी महान कृति का उद्घाटन करने में सफल सिद्ध होते हैं। रामचरित मानस ऐसी लोकग्राह्य कृति है जिसमें समाज के लगभग हर एक वर्ग के रेखांकन की सूक्ष्मता को अत्यंत पैनी एवं गंभीर दृष्टि से देखा जा सकता है। तुलसीदास समन्वयवादी लोककवि हैं, जो रामचरित मानस में राजा-प्रजा, नर-नारी, नर-वानर, दास-स्वामी, भक्त-भगवान-जैसे अनेक वर्गों में समन्वय का दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। रामचरित मानस में नारी के सुझाव की महत्ता तो इतनी है कि वही रावण पत्नी मंदोदरी की बात नहीं मानता है और उसकी मृत्यु होती है। इसी तरह बालि अपनी पत्नी तारा की बात मानने से बिल्कुल इन्कार कर देता है, जिसका परिणाम होता है कि बालि मारा जाता है। बालि जब पूछता है कि राम तुमने मुझे क्यों मारा! तो राम नीतिगत बात बताते हैं- अनुज वधू भगिनी सुत नारी। सुन सठ कन्या सम ये चारी। इनहिं कृदृष्ट बिलोकहिं जोई। ताहि बधे कछु पाप न होई। और, अधम ते अधम अधम अति नारी। का जहां तक प्रसंग है, वह है कि शबरी यह बात अपने ईष्ट राम से कहती है। इससे शबरी या नारी जाति की महत्ता बिल्कुल कम नहीं होती है। क्योंकि ईष्ट के सामने अपनी प्रशंसा करना क्या हास्यास्पद नहीं लगता है। आज का यह दौर आधुनिकता से भी क्रमश: आगे उत्तर-आधुनिकता के रूप में दिखाई दे रहा है। आज विमर्शों का दौर चल रहा है। जैसे-दलित-विमर्श, आदिवासी-विमर्श, स्त्री-विमर्श। हम देखते हैं कि समाज की स्थिति क्रमश: उत्तरोत्तर विकासमान है। समाज आज आदि से उत्तर आधुनिकता की ओर अग्रसित हो रहा है जो उसके वैज्ञानिक विकास को दर्शाता है। किंतु दु:ख तब होता है जब समाज में असमानता, असहिष्णुता-जैसे भाव आज भी मात्रात्मक रूप में विद्यमान हैं। -ओम
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