पिय हिय की सिय जाननिहारी
12-Feb-2019 07:47 AM 1238090
रामायण के अनुसार जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए निकले तो रास्ते में उन्हें गंगा नदी पार करना थी। तब नाव के केवट ने श्रीराम के पैर पखारने की बात कही तो श्रीराम भी इस बात के राजी हो गए। केवट ने श्रीराम के पैर धोए। इसके बाद केवट ने श्रीराम, लक्ष्मण, सीता को अपनी नाव में बैठाकर गंगा नदी पार करवा दी। गंगा नदी के दूसरे किनारे पर पहुंचकर श्रीराम और सभी नाव से उतर गए, तब श्रीराम के मन में कुछ संकोच हुआ। इस संबंध में श्रीराम चरित मानस में लिखा है कि - पिय हिय की सिय जाननिहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी।। कहेउ कृपाल लेहि उतराई। केवट चरन गहे अकुलाई।। इस दोहे का अर्थ यह है कि जब सीता ने श्रीराम के चेहरे पर संकोच के भाव देखे तो सीता ने तुरंत ही अपनी अंगूठी उतारकर उस केवट को भेंट स्वरूप देनी चाही, लेकिन केवट ने अंगूठी नहीं ली। केवट ने कहा कि वनवास पूरा करने के बाद लौटते समय आप मुझे जो भी देंगे मैं उसे प्रसाद स्वरूप स्वीकार कर लूंगा। इस प्रसंग में पति और पत्नी के लिए एक गहरा संदेश छिपा हुआ है। इस संदेश को समझ लेने पर वैवाहिक जीवन में किसी भी प्रकार परेशानियां नहीं आती हैं और आपसी तालमेल बना रहता है। जब सीता ने श्रीराम के चेहरे पर संकोच के भाव देखे तो उन्होंने समझ लिया कि वे केवट को कुछ भेंट देना चाहते हैं, लेकिन उनके पास देने के लिए कुछ नहीं था। यह बात समझते ही सीता ने अपनी अंगूठी उतारकर केवट को देने के लिए आगे कर दी। यह प्रसंग बताता है कि पति और पत्नी के बीच ठीक इसी प्रकार की समझ होनी चाहिए। जब दोनों के बीच प्रेम गहरा होता है तो कुछ बताने के लिए शब्दों की आवश्यकता नहीं होती, जीवन साथी के हाव-भाव को देखकर ही उसकी भावनाएं समझी जा सकती हैं। वैवाहिक जीवन में दोनों की आपसी समझ जितनी मजबूत होगी, वैवाहिक जीवन उतना ही ताजगीभरा और आनंददायक बना रहेगा। अयोध्या के राजा रामचंद्र का चरित्र पिछली कई सदियों से भारतीय जनमानस, खास कर हिंदुओं के जीवन मूल्यों का आदर्श है। गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानसÓ की रचना के बाद राम की छवि एक मर्यादित पुरुष के तौर पर स्थापित हो गई है। उस पुरुष की छवि जो अपने व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन में मूल्यों का पालन करता है। जो अनुशासन में बंधा है और यह कोई कानून का बनाया अनुशासन नहीं है। यह आंतरिक अनुशासन है। आज जब हिन्दुस्तान में लोगों के व्यक्तिगत, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में मर्यादाओं को तोडऩे की होड़ मची है तो राम के इस मर्यादित रूप की अहमियत और बढ़ गई है। राम की कहानी एक मर्यादित, नियंत्रित और वैधानिक अस्तित्व की कहानी है। राम की सबसे बड़ी महिमा उनके उस नाम से मालूम होती है जिसमें कि उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कह कर पुकारा जाता है। राम मर्यादा पुरुष थे। ऐसा रहना उन्होंने जान-बूझ कर और चेतन रूप से चुना था। आज जब दुनिया भर में हड़पने और विस्तार की महत्वाकांक्षा सिर उठाए खड़ी है तो राम की मर्यादा को याद करना जरूरी हो जाता है। राम का जीवन बिना हड़पे हुए फैलने की एक कहानी है। उनका निर्वासन देश को एक शक्ति केंद्र के अंदर बांधने का मौका था। राम ने अयोध्या से लंका तक की अपनी यात्रा में कभी अतिक्रमण नहीं किया। दायरे से बाहर नहीं गए। पहली बार उन्हें वानर नरेश बालि के साम्राज्य पर अधिकार करने का मौका मिला था। वे चाहते तो बालि के भाई सुग्रीव का साथ देने के बहाने उसका साम्राज्य हड़प सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया है। यह एक विशाल हृदय राजकुमार की मर्यादा थी। यह नीतिशास्त्र की मर्यादा थी और राजनीति की भी। राम के मर्यादा पुरुष बन कर उभरने का सबसे शुरुआती प्रसंग उनका वनवास स्वीकारना है। राजा दशरथ कैकेयी को वचन दे चुके थे। राम चाहते तो विद्रोह कर सकते थे। शक्ति संतुलन उनके पक्ष में था। वह अयोध्या के राजकुमार थे और गद्दी पर बैठना उनके लिए बेहद आसान था। लेकिन राम ने पारिवारिक संबंधों की मर्यादा को सबसे ऊपर रखा। राम सौम्य हैं। वह शालीन हैं। शील और मर्यादा के देवता हैं। वह धर्म में धीर, ध्यान और ध्येय के प्रतीक हैं। उनकी राजनीति में मर्यादा है। वह व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अनुशासित हैं। राजा होकर भी 14 साल का वनवास और फिर मर्यादाओं को भीतर रह कर अनुशासित जीवन उनकी जिंदगी से निकलने वाले सबसे अहम सबक हैं। भारतीय जनमानस को खुद को संतुलित रख कर एक ध्येय के साथ राष्ट्र निर्माण करना हो तो प्रेरणा के लिए उसे बाहर देखने की जरूरत नहीं है। राम के चरित्र में व्यक्ति, समाज और राष्ट्र निर्माण की सारा विधान और अभिव्यक्तियां मौजूद हैं। -ओम
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^