18-Jan-2019 06:42 AM
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यह देश को विचलित करने वाला है कि दहेज रोकथाम के कड़े कानून के बाद भी महिलाओं की हत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। मादक पदार्थ और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) की ओर से प्रकाशित नए अनुसंधान के अनुसार पिछले साल दुनिया भर में करीब 87 हजार महिलाओं की हत्या की गई जिनमें बड़ी संख्या भारतीय महिलाओं की रही। मारी गई महिलाओं में 50 हजार यानी 58 फीसदी महिलाओं की हत्या उनके करीबी साथी अथवा परिजनों ने की है। अध्ययन बताता है कि हर घंटे करीब 6 महिलाएं परिचितों के हाथों मारी जाती हैं जिनमें एक प्रमुख कारण दहेज है।
भारत में 1995 से 2013 के आंकड़ों के अनुसार 2016 में महिला हत्या दर 2.8 फीसदी थी जो कि विश्व के अन्य पिछड़े देशों मसलन केन्या (2.6), तंजानिया (2.5), जार्डन (0.8) और तजाकिस्तान (0.4) से अधिक है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में 15 से 49 की उम्र की 33.5 फीसदी महिलाओं और लड़कियों ने व पिछले एक साल में 18.9 फीसदी महिलाओं ने अपने जीवन में कम से कम एक बार शारीरिक हिंसा का सामना जरूर किया है। भारत में दहेज से संबंधित हत्याओं का मामला कितना गंभीर है वह राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों से उजागर होता है। आंकड़े बताते हैं कि दहेज से संबंधित हत्या के मामले महिलाओं की हत्या के सभी मामलों का 40 से 50 फीसदी है। इसमें 1999 से 2016 के दौरान एक स्थिर प्रवृत्ति देखी गई है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि भारत सरकार की ओर से 1961 में लागू दहेज विरोधी कानून बेअसर साबित हो रहा है और देश में दहेज के मामले कम होने के बजाए बढ़ रहे हैं, जबकि दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनी अपराध है।
भारत में दहेज को हुंडा या वर-दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है। आज के आधुनिक समय में भी दहेज प्रथा फैली हुई है। प्राचीन समय से ही पिता द्वारा अपनी कन्या को उपहार इत्यादि देने का चलन था, लेकिन उपहार देने की इस परंपरा में कोई विवशता नहीं थी। दोनों पक्षों के सगे-संबंधी वर-वधु को घर बसाने के उद्देश्य से स्वेच्छा से उन्हें भेंट दिया करते थे। तब यह कुरुपता नहीं थी, लेकिन आगे चलकर राजाओं, जमींदारों और धनाढ्यों ने स्वेच्छा से दी जाने वाली इस भेंट को बढ़ा-चढ़ाकर दहेज के रूप में परिवर्तित कर दिया। धीरे-धीरे यह
कुरुपता समाज के सभी वर्गों में फैल गई और यह प्रथा अब महिलाओं की जिंदगी पर भारी पडऩे लगी है।
अब विवाह एक सौदा बन गया है। अक्सर देखा जाता है कि जब वधु पक्ष वर पक्ष के मुताबिक दहेज नहीं दे पाता है तो वर पक्ष के सदस्य वधु पर जुल्म ढाना शुरू कर देते हैं। आज उसी का कुपरिणाम है कि देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला मौत का शिकार बनती है। 2007 से 2011 के बीच इस तरह के मामलों में काफी वृद्धि देखी गई। यह स्थिति तब है जब देश में दहेज विरोधी कानून लागू है। दहेज विरोधी 1961 के कानून के मुताबिक दहेज लेने-देने या इसमें सहयोग करने पर 5 साल की कैद और 15 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है।
दहेज के लिए उत्पीडऩ करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों की ओर से संपत्ति या कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अंतर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। धारा 406 के तहत अगर ससुराल वाले स्त्रीधन लड़की को सौंपने से मना करते हैं तो लड़की के पति व ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। इस कानून में यह भी प्रावधान है कि अगर किसी लड़की के विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताडि़त किया जाता था तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के तहत पति और रिश्तेदारों को सात साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। महिला एवं विकास मंत्रालय ने 2015 में संसद में एक सवाल के जवाब में कहा कि उसके पहले के तीन साल में हर साल 8000 से ज्यादा महिलाओं की मौत दहेज की वजह से हुई।
मौजूदा महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक लिखित ब्योरा प्रस्तुत किया है जिसके मुताबिक, पिछले तीन साल में 24,771 महिलाओं की मौत दहेज के कारण हुई है। उनके मुताबिक, पिछले तीन साल में 8 लाख से भी ज्यादा मामले धारा 304-बी के तहत दर्ज हुए। दहेज प्रथा के कारण हुई मौतों में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। दूसरे नंबर पर बिहार और तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है।
-ज्योत्सना अनूप यादव