18-Jan-2019 05:53 AM
1235125
कहते हैं गीता सारे सवालों का जवाब है। आखिर क्यों। क्योंकि यह सिर्फ ग्रंथ नहीं, संपूर्ण जीवनशैली है। सोने-जागने, खाने-पीने से लेकर चलने तक के मामूली सवालों का जवाब भी इसमें है। अगर आप गीता को आत्मसात कर लें तो स्वत: ही सारे विकार नष्ट हो जाते हैं। व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। गीता आस्था ही नहीं जीवन पद्धति भी है। गीता में निहित निष्काम कर्म के संदेश से प्रेरित हरियाणा सरकार सबका साथ-सबका विकास और जनकल्याण में समर्पित है। दिनभर में हम जो भी आचार-व्यवहार करते हैं, अगर वो गीता के अनुसार होगा तो सांसारिक जीवन में कोई भी विकार शेष नहीं रह जाएगा। लोभ, मोह, काम, क्रोध, अहंकार स्वत: ही दूर हो जाएंगे।
भगवान कृष्ण ने मानो सारे संसार का ज्ञान इसमें निचोड़कर रख दिया है। गीता का शुद्घ व्याकरण से पाठ करने से मनुष्य की ऊर्जा उध्र्वगामी होती है, यानी ऊपर की ओर बहने लगती है। पाठ के नियमित अभ्यास से ऊर्जा एक से दूसरे चक्र को पार कर सहस्त्रार तक पहुंच जाती है। यह घटना धरती पर जीवित इंसान को भगवान बना देती है। भगवद्गीता आपको किसी की जान लेने या युद्ध के लिए प्रेरित नहीं करती और न ही इसमें किसी दूसरे धर्म या समाज का उल्लेख है। गीता का ज्ञान किसी भी प्रकार से सामाजिक मतभेद को नहीं बढ़ाता। गीता को पढऩे के बाद व्यक्ति को ईश्वर, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्यों की जानकारी मिलती है, युद्ध की नहीं। बस यह पहला और दूसरा अध्याय ही है जिसमें युद्ध की चर्चा की गई है, लेकिन इसमें कहीं पर भी सामाजिक मतभेद बढ़ाने या युद्ध को बढ़ावा देने की बात नहीं है। इसमें अर्जुन रणभूमि पर युद्ध को छोड़कर जाने की बात कहता है। ऐसे में श्रीकृष्ण उसे सभी तरीके से यह समझाने का प्रयास करते हैं कि अब इस असमय युद्ध से विमुख होना कायरता और नपुंसकता होगी। इतिहास में तुम्हारी कोई जगह नहीं होगी। युद्ध नहीं करोगे तो बेमौत मारे जाओगे। सिर्फ तुम ही युद्ध के परिणाम को लेकर शोकाकुल और संवेदनशील हो लेकिन सामने कौरव पक्ष में से कोई भी ऐसा नहीं सोचता।
दरअसल, अर्जुन ने जब कौरवों के पक्ष में अपने बुजुर्गों को देखा, रिश्तेदारों पर नजर डाली तो श्रीकृष्ण से कहने लगा कि मैं इस युद्ध को नहीं लडूंगा, इसमें मेरे अपने ही लोग मारे जाएंगे। तब कृष्ण, अर्जुन को समझाते हैं कि मुद्दा यह नहीं है कि तुम युद्ध लड़ोगे या नहीं, हिंसा होगी या नहीं। सवाल यह है कि तुम्हारी इस निष्क्रियता से अधर्म और पाप को समर्थन मिल जाएगा। तुम्हारा कर्तव्य है गलत को रोकना और ध्यान रखो कि काम करते समय मैं कर रहा हूं यह भाव हटाओ, क्योंकि कर्म में यदि मैं आता है, तो सफल होने पर अहंकार आ जाता है और असफल होने पर अवसाद आ जाता है इसलिए शस्त्र उठाओ और युद्ध करो। तुम्हारा दायित्व है काम करना। सही काम करोगे तो परिणाम सही मिलेगा।
श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को इसलिए दिया, क्योंकि वह कर्तव्य पथ से भटक कर संन्यासी और वैरागी जैसा आचरण करके युद्ध छोडऩे को आतुर हो गया था, वह भी ऐसे समय जबकि सेना मैदान में डटी थी। ऐसे में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उन्हें उनका कर्तव्य निभाने के लिए यह ज्ञान दिया। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में जब यह ज्ञान दिया गया तब तिथि एकादशी थी। संभवत: उस दिन रविवार था। उन्होंने यह ज्ञान लगभग 45 मिनट तक दिया था।
लड़ाई से डरने वाले मिट जाते हैं : जिंदगी एक उत्सव है, संघर्ष नहीं। लेकिन जीवन के कुछ मोर्चों पर व्यक्ति को लडऩे के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। जो व्यक्ति लडऩा नहीं जानता, युद्ध उसी पर थोपा जाएगा या उसको सबसे पहले मारा जाएगा। महाभारत में पांडवों को यह बात श्रीकृष्ण ने अच्छे से सिखाई थी। पांडव अपने बंधु-बांधवों से लडऩा नहीं चाहते थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने समझाया कि जब किसी मसले का हल शांतिपूर्ण या किसी भी अन्य तरीके से नहीं होता है तो फिर युद्ध ही एकमात्र विकल्प बच जाता है। कायर लोग युद्ध से पीछे हटते हैं इसीलिए अपनी चीज को हासिल करने के लिए कई बार युद्ध करना पड़ता है। अपने अधिकारों के लिए कई बार लडऩा पड़ता है। जो व्यक्ति हमेशा लड़ाई के लिए तैयार रहता है, लड़ाई उस पर कभी भी थोपी नहीं जाती है।
-ओम